लोन न चुकाने पर क्या कानूनी कार्रवाई की जा सकती है?

What legal action can be taken in case of non-payment of loan

लोन आजकल की ज़िन्दगी का अहम हिस्सा हैं, जो व्यक्तियों और व्यवसायों को जरूरी खरीदारी या निवेश करने के लिए पैसे उपलब्ध कराते हैं। चाहे होम लोन, कार लोन, स्टूडेंट लोन या पर्सनल लोन हो, उधारी लेने वाले को वह पैसा चुकाना कानूनी रूप से जरूरी है। हालांकि, कभी-कभी उधार लेने वाले को लोन चुकाने में मुश्किल हो सकती है, जैसे वित्तीय परेशानी, गलतफहमी या अन्य कारणों से।

लोन न चुकाने का मामला गंभीर हो सकता है और इसके लिए लेंडर्स कई कानूनी कदम उठा सकते हैं, ताकि वे अपनी रकम वापस पा सकें। इस ब्लॉग में हम बताएंगे कि लोन न चुकाने पर लेंडर्स कौन से कानूनी कदम उठा सकते हैं, इसकी प्रक्रिया क्या है, और अगर किसी को लोन चुकाने में परेशानी हो, तो उसे क्या करना चाहिए।

लोन डिफ़ॉल्ट क्या है?

लोन डिफॉल्ट तब होता है जब उधार लेने वाला, लोन एग्रीमेंट की शर्तों को पूरा नहीं करता। इसका मतलब हो सकता है कि भुगतान समय पर नहीं किया, कम राशि चुकाई, या लंबे समय तक बिल्कुल भी भुगतान नहीं किया। लोन डिफॉल्ट माना जाएगा या नहीं, यह लोन एग्रीमेंट की शर्तों पर निर्भर करता है, लेकिन आमतौर पर कई किस्तें मिस करने के बाद लोन डिफॉल्ट माना जाता है।

उदाहरण के लिए, अगर आप एक किस्त मिस करते हैं, तो लेंडर आपको देर से भुगतान करने की फीस लगा सकता है और भुगतान करने के लिए याद दिला सकता है। लेकिन अगर आप कई महीनों तक भुगतान नहीं करते, तो स्थिति गंभीर हो जाती है और कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

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लोन के प्रकार क्या हो सकते हैं?

  • पर्सनल लोन: यह एक असुरक्षित लोन होता है, जिसे बिना किसी संपत्ति के गिरवी रखे लिया जाता है। अगर लोनधारी इस लोन को चुकता नहीं करता है, तो बैंक या वित्तीय संस्थाएं उसे कानूनी तरीके से वसूलने की प्रक्रिया शुरू कर सकती हैं।
  • बिजनेस/कारोबारी लोन: व्यवसायिक लोनों में भी यह संभव है कि जब लोनधारी अपना लोन चुकाने में असमर्थ होता है, तो बैंक उसके व्यवसाय के खिलाफ कानूनी कदम उठा सकते हैं।
  • बैंक से लिया गया लोन: यह लोन संपत्ति के साथ जुड़ा होता है। यदि लोनधारी घर, गाड़ी या शिक्षा के लिए लिया गया लोन चुकता नहीं करता है, तो बैंक उस संपत्ति को कुर्क कर सकती है।
  • निजी लेनदेन: कई बार दोस्त, रिश्तेदार या जान-पहचान वाले व्यक्ति बिना किसी लिखित अनुबंध के उधार दे देते हैं। ऐसे मामलों में सबूत न होने के कारण कानूनी कार्यवाही थोड़ी कठिन हो सकती है, लेकिन अदालत में दस्तावेज़, संदेश या अन्य प्रमाणों के आधार पर दावा किया जा सकता है।
  • चिट फंड या सोसाइटी से लिया गया लोन: चिट फंड और सोसाइटी से लोन लेने पर भी कानूनी कदम उठाए जा सकते हैं यदि व्यक्ति लोन चुकाने में असमर्थ होता है।
  • सहमति आधारित या गारंटी आधारित लोन: कुछ लोनों में गारंटर (सह-लोनधारी ) होता है। यदि मुख्य लोनधारी चुकता नहीं करता है, तो गारंटर को भी जवाबदेह ठहराया जा सकता है।

अगर लोन नहीं चुकाया गया तो क्या होगा?

  • बैंक या लोनदाता द्वारा नोटिस भेजना: जब लोनधारी समय पर भुगतान नहीं करता, तो बैंक या लोनदाता उसे एक कानूनी नोटिस भेजते हैं। यह नोटिस लोनधारी को उसके बकाए की याद दिलाता है और उसे भुगतान करने के लिए 15 से 30 दिन का समय दिया जाता है।
  • रिकवरी एजेंट की कॉल या विज़िट: अगर लोनधारी नोटिस का पालन नहीं करता, तो बैंक रिकवरी एजेंट को भेज सकता है। एजेंट लोनधारी से संपर्क कर सकता है, फोन कॉल्स या व्यक्तिगत विज़िट्स के माध्यम से भुगतान की वसूली करने की कोशिश करता है।
  • नोटिस की वैधता और जवाब देने का अधिकार: लोनधारी को नोटिस का जवाब देने का पूरा अधिकार है। वह अपनी स्थिति को स्पष्ट कर सकता है, कानूनी मार्गों का उपयोग कर सकता है या बैंक से समझौता करने की कोशिश कर सकता है, ताकि भुगतान की समस्या सुलझ सके।
  • सिविल व क्रिमिनल प्रक्रिया की शुरुआत: अगर लोनधारी समय पर भुगतान नहीं करता, तो बैंक या वित्तीय संस्थाएं सिविल या आपराधिक कार्यवाही शुरू कर सकती हैं।
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लोन न चुकाने पर क्या सिविल कानूनी कार्रवाई की जा सकती है?

  • मनी रिकवरी सूट: यदि लोनधारी लोन चुकाने में असफल रहता है, तो बैंक या वित्तीय संस्था दीवानी अदालत में वाद दायर कर सकती है, जिससे अदालत लोनधारी से बकाया राशि वसूलने का आदेश देती है।
  • एक्जीक्यूशन रिकवरी: अदालत के निर्णय के बाद, यदि लोनधारी भुगतान नहीं करता, तो कोड ऑफ़ सिविल प्रोसीजर, 1908 के तहत एक्जीक्यूशन रिकवरी की प्रक्रिया शुरू होती है, जिसमें लोनधारी की संपत्ति कुर्क की जा सकती है।
  • डिक्री के बाद कुर्की/जब्ती की कार्यवाही: अदालत द्वारा डिक्री जारी होने के बाद, यदि लोनधारी भुगतान नहीं करता, तो बैंक या वित्तीय संस्था लोनधारी की संपत्ति जब्त कर सकती है या जब्ती की कार्यवाही कर सकती है, ताकि बकाया राशि वसूली जा सके।
  • ब्याज और पेनल्टी का दावा: लोन एग्रीमेंट के अनुसार, बैंक या वित्तीय संस्थाएं बकाया राशि पर ब्याज और पेनल्टी वसूलने का अधिकार रखती हैं, जो लोन न चुकाने पर लागू होती हैं।

आपराधिक कार्रवाई की स्थिति कब आती है?

  • जानबूझकर धोखा देना: यदि लोनधारी जानबूझकर धोखा देकर लोन नहीं चुकाता, तो यह भारतीय न्याय संहिता की धारा 318 के तहत अपराध है, जिसमें धोखाधड़ी करने पर पर तीन वर्ष तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
  • जाली दस्तावेज बनाना: लोनधारी यदि जाली दस्तावेज़ बनाता है, तो BNS की धारा 336 के तहत या जानबूझकर जाली दस्तावेज़ का असली के रूप में उपयोग करता है, तो BNS की धारा 340 के तहत, यह अपराध है, जिसमें फोर्जरी के समान सजा का प्रावधान है।
  • जानबूझकर चेक बाउंस करना: यदि लोनधारी जानबूझकर चेक बाउंस कराता है, तो यह नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत अपराध है, जिसमें दो वर्ष तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

क्या दिवालिया घोषित किया जा सकता है?

  • यदि लोनधारी पूरी तरह से लोन चुकाने में असमर्थ हो, तो वह दिवालिया घोषित हो सकता है।
  • व्यक्तिगत दिवालिया घोषित करने के लिए लोनधारी को इन्सॉल्वेंसी  एंड  बैंकरप्सी  कोड  (IBC) के तहत आवेदन करना होता है।
  • यह प्रक्रिया लोनधारी की वित्तीय स्थिति पर निर्भर करती है। अगर लोनधारी अपने सभी लोन को चुकता नहीं कर सकता, तो वह दिवालिया घोषित हो सकता है।
  • दिवालिया घोषित होने की स्थिति में लोनधारी की संपत्ति का बंटवारा किया जा सकता है। साथ ही, उसके ऊपर कोई नया लोन चुकाने की जिम्मेदारी नहीं होगी।
  • दिवालिया घोषित होने पर लोनधारी की संपत्ति को बेचकर लोन की वसूली की जाती है।
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रिकवरी एजेंट की कानूनी सीमा और उत्पीड़न के खिलाफ सुरक्षा

RBI द्वारा निर्धारित नियम:

  • लोन वसूली एजेंटों को लोनधारी  के साथ सम्मानपूर्वक और सभ्य तरीके से पेश आना चाहिए, जिससे मानसिक तनाव या उत्पीड़न से बचा जा सके।
  • एजेंटों को सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे के बीच ही लोनधारी  से संपर्क करना चाहिए; अन्य समय पर संपर्क करना निषिद्ध है।

गैर-कानूनी दबाव या धमकी देने पर BNS की धाराएं:

  • यदि एजेंट लोनधारी  या उनके परिवार को धमकाते हैं, अपमानित करते हैं या अवैध दबाव डालते हैं, तो यह भारतीय दंड संहिता की धारा 351 के तहत अपराध है।
  • ऐसी परिस्थितियों में, लोनधारी पुलिस में शिकायत दर्ज कर सकते हैं, जिससे उचित कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित हो सके।

पुलिस में शिकायत कैसे करें:

  • लोनधारी  स्थानीय पुलिस स्टेशन में लिखित शिकायत दर्ज कर सकते हैं, जिसमें उत्पीड़न के सभी विवरण और प्रमाण शामिल हों।
  • शिकायत के साथ सभी संबंधित दस्तावेज़, जैसे कॉल रिकॉर्ड, संदेश या अन्य प्रमाण प्रस्तुत करें।
  • पुलिस को कानूनी रूप से उत्पीड़न की जांच करनी होती है और आवश्यक कार्रवाई करनी होती है।
  • यदि पुलिस उचित कार्रवाई नहीं करती है, तो लोनधारी  मजिस्ट्रेट के पास शिकायत दर्ज कर सकते हैं या भारतीय रिजर्व बैंक के शिकायत निवारण तंत्र का उपयोग कर सकते हैं।

लोनधारी  के अधिकार:

  • एजेंटों को लोनधारी की अनुमति के बिना उनके निजी विवरण साझा करने या गोपनीयता का उल्लंघन करने का अधिकार नहीं है।
  • लोनधारी  की सुविधा के अनुसार, एजेंटों को उचित समय पर ही संपर्क करना चाहिए।
  • एजेंटों को लोनधारी  की सहमति के बिना उनकी लोन जानकारी सार्वजनिक रूप से साझा करने से बचना चाहिए।
  • लोनधारी  को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना चाहिए और किसी भी प्रकार के उत्पीड़न या अवैध गतिविधि के खिलाफ उचित कानूनी कदम उठाने चाहिए।

बचाव के लिए लोनदार के कानूनी अधिकार क्या है?

  • लोनधारी  को अपनी सभी भुगतान पावतियाँ सुरक्षित रखनी चाहिए, क्योंकि ये अदालत में लोन  चुकौती की पुष्टि करने में सहायक होती हैं।
  • यदि लोन वसूली एजेंट अवैध दबाव या उत्पीड़न करते हैं, तो लोनधारी  इसकी शिकायत संबंधित बैंक या वित्तीय संस्थान में दर्ज करवा सकता है।
  • लोन  वसूली पर लिमिटेशन एक्ट, 1963 के तहत एक निश्चित समय सीमा लागू होती है; लोनधारी  इस अवधि का उपयोग अपनी रक्षा में कर सकता है।
  • लोनधारी अदालत से स्थगन आदेश प्राप्त कर कुछ समय के लिए वसूली कार्रवाई को रोक सकता है, जिससे उसे पुनर्भुगतान की व्यवस्था करने का अवसर मिलता है।
  • लोनधारी अपने लोनदाता को पुनर्भुगतान की नई योजना या पुनर्गठन का प्रस्ताव दे सकता है, जिससे लोन चुकौती में सुविधा हो सकती है।

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम गौरिशंकर पोद्दार, 2025

नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) ने 6 जनवरी 2025 को ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम गौरिशंकर पोद्दार’ मामले में महत्वपूर्ण निर्णय दिया। इस निर्णय के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • लोनदाता और गारंटर की समान जिम्मेदारी: NCLAT ने कहा कि मुख्य लोन दाता और गारंटर की जिम्मेदारियाँ एक साथ चलती हैं। गारंटर की जिम्मेदारी तभी शुरू होती है जब मुख्य लोनदाता के द्वारा बकाया राशि का भुगतान नहीं किया जाता।
  • लोन  की स्वीकृति का प्रभाव: मुख्य लोनदाता द्वारा लोन  की स्वीकृति या स्वीकारोक्ति को गारंटर द्वारा भी लोन  की स्वीकृति माना जाएगा, जिससे गारंटर की जिम्मेदारी बढ़ती है।
  • सीमित अवधि की शुरुआत: गारंटर के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की अवधि तब शुरू होती है जब गारंटर से विशेष रूप से मांग की जाती है। यदि मुख्य लोनदाता लगातार भुगतान करता है, तो गारंटर के खिलाफ कोई मांग नहीं होती, जिससे अवधि शुरू नहीं होती।
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स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम राजेश अग्रवाल, 2022

सुप्रीम कोर्ट ने ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया बनाम राजेश अग्रवाल’ मामले में महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें लोनधारी को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने से पहले सुनवाई का अवसर प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। इस निर्णय के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  • प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन: कोर्ट ने कहा कि प्राकृतिक न्याय, विशेषकर ‘ऑडी अल्टरम पार्टेम’ (दूसरी पक्ष को सुनने का अधिकार), को धोखाधड़ी वर्गीकरण प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे लोनधारी  ओं के अधिकार प्रभावित होते हैं।
  • सुनवाई का अवसर प्रदान करना आवश्यक: लोनधारी को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने से पहले, बैंक को उन्हें आरोपों के बारे में सूचित करके अपनी रक्षा प्रस्तुत करने का अवसर देना चाहिए।
  • वर्गीकरण के गंभीर परिणाम: लोनधारी के खाते को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने से उनकी प्रतिष्ठा और भविष्य की वित्तीय संभावनाओं पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, इसलिए यह निर्णय लोनधारी  के अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।

इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि बैंकिंग प्रक्रियाओं में लोनधारी के अधिकारों की रक्षा के लिए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना अनिवार्य है।

निष्कर्ष

लोन न चुकाने के गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जैसे क्रेडिट स्कोर में गिरावट, कानूनी कार्रवाई, संपत्ति की जब्ती और मानसिक तनाव। इनसे बचने के लिए, लोन  की समय पर अदायगी सुनिश्चित करें और वित्तीय कठिनाइयों के समय बैंक से संवाद स्थापित करें। यदि उत्पीड़न का सामना हो, तो कानूनी सलाह लें और अपने अधिकारों की रक्षा करें। इससे आपका वित्तीय भविष्य सुरक्षित रहेगा।

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FAQs

1. क्या लोन न चुकाने पर जेल हो सकती है?

लोन न चुकाने पर सजा का सवाल तभी उठता है जब मामला धोखाधड़ी या अन्य आपराधिक गतिविधियों से संबंधित हो।

2. क्या निजी उधार देने वाला व्यक्ति कोर्ट जा सकता है?

हाँ, यदि लोनदार चुकता नहीं करता, तो निजी उधारदाता भी कोर्ट में केस दायर कर सकता है।

3. चेक बाउंस और लोन डिफॉल्ट में क्या फर्क है?

चेक बाउंस तब होता है जब चेक की राशि बैंकों में उपलब्ध नहीं होती, जबकि लोन डिफॉल्ट तब होता है जब लोन दार समय पर लोन  चुकता नहीं करता।

4. क्या EMI न भरने पर संपत्ति तुरंत जब्त हो सकती है?

नहीं, बैंक या वित्तीय संस्थाएं पहले आपको नोटिस देती हैं, फिर कानूनी कार्रवाई करती हैं।

5. मैं मानसिक रूप से परेशान हूं, क्या मुझे राहत मिल सकती है?

अगर आप मानसिक उत्पीड़न महसूस कर रहे हैं, तो आप पुलिस में शिकायत कर सकते हैं और मानसिक आघात की वजह से राहत प्राप्त कर सकते हैं।

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