क्या फाइनल डाइवोर्स डिक्री को मॉडिफाई किया जा सकता है?

Can a Final Divorce Decree be modified?

जब तलाक का मामला कोर्ट में तय हो जाता है, तो अदालत एक फाइनल डाइवोर्स डिक्री जारी करती है। इसका मतलब है कि यह आदेश अब अंतिम है और इसके बाद दोनों पार्टियों को तलाक मिल चुका है। आमतौर पर लोग इसे “अंतिम” मानते हैं, लेकिन क्या यह सच में बदलने के लिए “अंतिम” होता है?

क्यों कुछ लोग बाद में उसे बदलवाना चाहते हैं? 

कभी-कभी फाइनल डिक्री के बाद भी लोग महसूस करते हैं कि कुछ परिस्थितियाँ बदल गई हैं। जैसे, मेंटेनेंस कम या ज्यादा किया जा सकता है, या बच्चों की कस्टडी में बदलाव किया जा सकता है। इसलिए लोग इसे बदलने की कोशिश करते हैं।

कुछ आम जीवन स्थितियाँ, जब बदलाव की ज़रूरत महसूस होती है

  • नौकरी में बदलाव हो जाए
  • वित्तीय स्थिति में उथल-पुथल हो
  • बच्चों की परवरिश के तरीके में कोई फर्क आ जाए
  • एक पार्टनर ने फिर से शादी कर ली हो

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डाइवोर्स डिक्री क्या होती है?

फाइनल डिवोर्स डिक्री वो कानूनी आदेश है जो आपके तलाक के मामले को समाप्त करता है। इसमें अदालत यह तय करती है कि दोनों पक्षों को कैसे अलग किया जाएगा, जैसे कि संपत्ति का बंटवारा, बच्चों की कस्टडी, मेंटेनेंस आदि।

क्या शामिल होता है फाइनल डिक्री में?

  • संपत्ति बंटवारा: अदालत यह तय करती है कि संपत्ति जैसे व्यक्तिगत संपत्तियां, संयुक्त संपत्तियां, बैंक खाते, वाहन आदि का बंटवारा कैसे होगा। बंटवारा आर्थिक स्थिति, योगदान, और विवाह के दौरान की मेहनत को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।
  • मेंटेनेंस: यह आर्थिक मदद है जो एक पति या पत्नी को दूसरे से तलाक के बाद मिलती है। इसमें पत्नी को वित्तीय सहायता मिल सकती है, और कभी-कभी पति को भी। इसमें बच्चों के मेंटेनेंस का खर्च भी शामिल हो सकता है।
  • बच्चों की कस्टडी: तलाक के बाद अदालत यह तय करती है कि बच्चों की कस्टडी किसके पास जाएगी। कस्टडी फिजिकल (किसके साथ रहेंगे) और लीगल (महत्वपूर्ण फैसलों में अधिकार) हो सकती है। इसके अलावा, विजिटेशन राइट्स भी निर्धारित होते हैं, ताकि दूसरा पक्ष बच्चों से मिल सके।

डिक्री पास होना और डिक्री मॉडिफाई में अंतर

  • पास होना: इसका मतलब है कि अदालत ने तलाक का फैसला दे दिया।
  • मॉडिफाई करना: इसका मतलब है कि किसी समय के बाद, आपको अदालत से उस निर्णय को बदलवाने का अधिकार मिल सकता है, अगर हालात बदल जाएं।

क्या सभी फाइनल डिक्री को बदला जा सकता है?

किन हिस्सों को बदला जा सकता है:

  • मेंटेनेंस: अगर पति या पत्नी की वित्तीय स्थिति बदल जाए, तो मेंटेनेंस बढ़ाया या घटाया जा सकता है।
  • बच्चों की कस्टडी: अगर बच्चों के जीवन में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव आता है, जैसे कि उनकी पसंद या माता-पिता का व्यवहार, तो कस्टडी का आदेश बदला जा सकता है।
  • विजिटेशन राइट्स: अगर कोई माता-पिता बच्चों से मिलने में असमर्थ हैं या अन्य कारणों से बदलने की जरूरत है तो विजिटेशन राइट्स में बदलाव हो सकता है।

किन हिस्सों को नहीं बदला जा सकता:

  • तलाक का निर्णय: तलाक का फैसला एक बार हो जाने के बाद उसे नहीं बदला जा सकता।
  • भूतकालीन संपत्ति वितरण: जो संपत्ति पहले ही बांटी जा चुकी है, उसे वापस बदलना मुश्किल होता है।

कानूनी आधार: कब और कैसे डिक्री को बदला जा सकता है?

कोड ऑफ़ सिविल प्रोसीजर (CPC) की धारा 152 और 114

  • धारा 152: यह धारा अदालत को अपने आदेश या डिक्री में त्रुटियों को सुधारने का अधिकार देती है, जैसे गणना या टाइपिंग की गलती। इसका उद्देश्य स्पष्टता और सही आदेश सुनिश्चित करना है।
  • धारा 114: धारा 114 के तहत, कोई पक्ष अदालत से पुनर्विचार की याचिका दाखिल कर सकता है, जिससे अदालत अपने पूर्व निर्णय पर पुनः विचार करके उसे बदल सकती है या सुधार सकती है।
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हिन्दू मैरिज की एक्ट की धारा 25 (2)

  • इस धारा के तहत, अगर तलाक के बाद एक व्यक्ति को गुज़ारा भत्ता दिया जाता है, तो उसे जीवनसाथी की वित्तीय स्थिति के आधार पर संशोधित किया जा सकता है।
  • अगर जीवनसाथी की आय में वृद्धि या कमी होती है, तो गुज़ारा भत्ता को बदलने का अधिकार अदालत को होता है।
  • इसके अलावा, अगर जीवनसाथी की स्थिति में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन आता है (जैसे कि स्वास्थ्य या रोजगार में बदलाव), तो भत्ता में मॉडिफाई  किया जा सकता है।
  • यह धारा पति या पत्नी को यह सुनिश्चित करने का अधिकार देती है कि वे एक-दूसरे के जीवन की परिस्थितियों के अनुरूप उचित सहायता प्राप्त करें।

गुआर्डिआस एंड वार्डस एक्ट, 1910

  • यह कानून बच्चों की कस्टडी से संबंधित मामलों में बदलाव की अनुमति देता है, विशेषकर तब जब बच्चे के भले के लिए बदलाव जरूरी हो।
  • अदालत बच्चों की कस्टडी पर विचार करते समय उनके सर्वोत्तम हितों को प्राथमिकता देती है।
  • अगर किसी कारणवश बच्चे के जीवन की परिस्थितियाँ बदलती हैं (जैसे कि एक माता-पिता की स्थिति में सुधार या किसी पक्ष द्वारा बच्चे की देखभाल में लापरवाही), तो अदालत कस्टडी आदेश में बदलाव कर सकती है।
  • यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि बच्चे को सही और उपयुक्त देखभाल मिलती रहे और उसका कल्याण सर्वोपरि हो।
  • कस्टडी आदेश में बदलाव का फैसला हमेशा बच्चे के सबसे अच्छे हित को ध्यान में रखते हुए लिया जाता है।

मेंटेनेंस में बदलाव: कब अनुमति मिल सकती है?

  • नौकरी में परिवर्तन: अगर किसी व्यक्ति की नौकरी बदल जाती है और उसकी आय में वृद्धि या कमी होती है, तो मेंटेनेंस बढ़ाया या घटाया जा सकता है।
  • पुनर्विवाह: यदि किसी व्यक्ति ने फिर से शादी कर ली है, तो मेंटेनेंस में बदलाव हो सकता है।
  • वित्तीय स्थिति में गिरावट या वृद्धि: अगर किसी की वित्तीय स्थिति में बड़ा बदलाव आता है, तो मेंटेनेंस पर असर पड़ सकता है।

के.एस. सुंदरम बनाम पी. उमादेवी (2006)

  • पति की आय में वृद्धि के बाद पत्नी ने मेंटेनेंस बढ़ाने की मांग की।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि पति की आय बढ़ती है, तो मेंटेनेंस में वृद्धि की जा सकती है, ताकि पत्नी की आवश्यकताएं पूरी हो सकें। भत्ता का निर्धारण पति की आय और पत्नी की जरूरतों के आधार पर होना चाहिए।

समर घोष बनाम जया घोष (2007)

  • पत्नी ने पति की बढ़ी हुई आय के आधार पर गुज़ारा भत्ता में वृद्धि की मांग की।
  • कोर्ट ने कहा कि अगर पति की आय में वृद्धि होती है, तो गुज़ारा भत्ता बढ़ाया जा सकता है, और यदि पत्नी की आर्थिक स्थिति सुधरती है, तो भत्ता घटाया भी जा सकता है। निर्णय दोनों पक्षों की आर्थिक स्थिति और जीवन स्तर के आधार पर लिया जाता है।

चाइल्ड कस्टडी और विजिटेशन में मॉडिफिकेशन

  • जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उनकी अपनी इच्छाएं होती हैं कि वे किसके साथ रहना चाहते हैं। अगर बच्चा कोर्ट को बताता है कि वह किसी विशेष माता-पिता के पास रहना चाहता है, तो कस्टडी का आदेश बदल सकता है।
  • अगर किसी माता-पिता का व्यवहार या स्थिति बदल जाती है, जैसे कि मानसिक स्वास्थ्य, तो कस्टडी में बदलाव हो सकता है।
  • अगर माता-पिता का स्थानांतरण होता है या बच्चे की मानसिक स्थिति में बदलाव आता है, तो कस्टडी और विजिटेशन राइट्स में मॉडिफाई  किया जा सकता है।
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गौरव नागपाल बनाम सुमेधा नागपाल (2009)

  • मामला: यह मामला बच्चों की कस्टडी से संबंधित था, जिसमें पिता ने बच्चों की कस्टडी में बदलाव की मांग की, यह कहते हुए कि वह बच्चों के सर्वोत्तम हित में बेहतर देखभाल कर सकते हैं।
  • विवाद: माता-पिता के बीच कस्टडी पर विवाद था, जहां पिता ने अपनी स्थिति को बेहतर बताया, जबकि मां ने अपनी कस्टडी बनाए रखने की कोशिश की।
  • निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के सर्वोत्तम हितों को प्राथमिकता दी और कहा कि कस्टडी का निर्णय बच्चों की इच्छाओं और उनकी भलाई के आधार पर होना चाहिए। कोर्ट ने यह भी माना कि बच्चों की कस्टडी में बदलाव किया जा सकता है, यदि यह उनके लिए बेहतर हो।
  • महत्वपूर्ण विचार: इस मामले ने यह स्पष्ट किया कि बच्चों के कस्टडी के फैसले में उनकी इच्छाओं और उनके भले को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है।

कोर्ट में मॉडिफाई की प्रक्रिया क्या है?

  • कौन सी कोर्ट में अर्जी डालनी है?: मॉडिफाई की अर्जी उसी कोर्ट में डाली जाती है, जिसमें आपका मामला निपटाया गया था। यदि मामला फेमिली कोर्ट में था, तो मॉडिफाई के लिए भी फेमिली कोर्ट में ही आवेदन करना होता है, ताकि कोर्ट उस आदेश पर पुनर्विचार कर सके।
  • क्या वकील ज़रूरी है?: वकील का होना अनिवार्य नहीं है, लेकिन वकील की मदद लेने से प्रक्रिया आसान और सही तरीके से हो सकती है। वकील आपके मामले को सही ढंग से समझाकर उचित दलीलें और दस्तावेज़ पेश करने में मदद कर सकते हैं।
  • टाइमलाइन और फीस से संबंधित जानकारी: मॉडिफाई की प्रक्रिया में समय लग सकता है, आमतौर पर यह 6 महीने से 1 साल तक हो सकता है, मामले की जटिलता के अनुसार। फीस कोर्ट और मामले के प्रकार पर निर्भर करती है, और प्रत्येक कोर्ट की फीस अलग होती है।

अगर डाइवोर्स आपसी सहमति से हुआ हो, तो क्या मॉडिफिकेशन संभव है?

आपसी सहमति से तलाक के बाद, अगर किसी एक पक्ष को लगता है कि डिक्री में बदलाव की आवश्यकता है, तो इसे मॉडिफाई करने की अनुमति मिल सकती है, लेकिन इसके लिए विशेष शर्तें हैं। सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि दोनों पक्षों की सहमति की आवश्यकता होती है। यदि दोनों पक्षों में से एक पक्ष डिक्री में बदलाव चाहता है, तो उसे दूसरे पक्ष से सहमति प्राप्त करनी होगी। इसके बिना, कोर्ट बदलाव को स्वीकार नहीं करेगा।

क्या दोनों पक्षों की सहमति फिर से ज़रूरी है?: जी हां, अगर तलाक आपसी सहमति से हुआ है, तो किसी भी मॉडिफिकेशन के लिए दोनों पक्षों की सहमति अनिवार्य होगी। इसका मतलब है कि अगर एक पक्ष डिक्री में कोई बदलाव चाहता है, तो वह दूसरे पक्ष से सहमति प्राप्त करने के बाद ही कोर्ट में आवेदन कर सकता है। अगर दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बनती, तो कोर्ट मॉडिफिकेशन का आदेश नहीं दे सकती।

क्या फाइनल डाइवोर्स डिक्री को रिव्यु या अपील करा जा सकता है?

  • रिव्यु पेटिशन: रिव्यू पेटिशन तब दायर की जाती है जब आपको लगता है कि कोर्ट ने डाइवोर्स डिक्री में कोई कानूनी या तथ्यों से संबंधित गलती की है। इसका उद्देश्य कोर्ट से अपनी गलती सुधारने की मांग करना होता है।
  • अपील: अगर डाइवोर्स डिक्री से आप असहमत हैं, तो आप अपील कर सकते हैं। अपील के माध्यम से आप हाई कोर्ट से डिक्री को पुनः जांचने की मांग करते हैं और फैसले में बदलाव की कोशिश करते हैं।
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क्या NRI मामलों में डिक्री को भारत में मॉडिफाई किया जा सकता है ?

अगर तलाक का फैसला विदेशी कोर्ट से हुआ है, तो उसे भारत में मॉडिफाई करने के लिए भारतीय कोर्ट में आवेदन करना होगा। भारतीय कोर्ट यह सुनिश्चित करती है कि विदेशी डिक्री भारतीय कानून और सार्वजनिक नीति के खिलाफ नहीं हो। इसके बाद, कोर्ट मॉडिफाई की प्रक्रिया शुरू करती है।

विदेशी कानून और भारतीय कानून में विभिन्नताएं हो सकती हैं, जैसे कस्टडी, मेंटेनेंस, और संपत्ति बंटवारे के मामलों में। यदि विदेशी डिक्री भारतीय कानून के खिलाफ है, तो भारतीय कोर्ट उसे स्वीकार नहीं कर सकती। इस कारण, मॉडिफाई  की प्रक्रिया जटिल हो सकती है, क्योंकि सार्वजनिक नीति का पालन जरूरी होता है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तलाक की डिक्री को रद्द किया क्योंकि सहमति वापस ली गई थी

स्मिता ज्योति वर्मा बनाम प्रशांत कुमार वर्मा (2023) मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तलाक की डिक्री को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि तलाक के लिए आपसी सहमति पूरे प्रक्रिया के दौरान बनी रहनी चाहिए। अगर एक पक्ष सहमति वापस लेता है, तो फेमिली कोर्ट केवल शुरुआती सहमति के आधार पर तलाक नहीं दे सकता। इस फैसले ने यह स्पष्ट किया कि तलाक के मामलों में लगातार सहमति की जरूरत होती है।

निष्कर्ष

हालांकि तलाक की डिक्री को “अंतिम” माना जाता है, लेकिन विभिन्न परिस्थितियों में उसे बदलने की संभावना होती है। जैसे, जीवन की स्थितियों में बदलाव, कस्टडी, मेंटेनेंस या संपत्ति बंटवारे में मॉडिफाई  की आवश्यकता हो सकती है। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने अधिकारों को समझें और किसी भी मॉडिफाई  के लिए उचित कानूनी सलाह लें, ताकि आप अपने हितों की रक्षा कर सकें और सही प्रक्रिया का पालन कर सकें।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs

1.    क्या बच्चों की कस्टडी कोर्ट के आदेश के बाद भी बदली जा सकती है?

हां, बच्चों की कस्टडी में परिवर्तन संभव है यदि परिस्थितियों में महत्वपूर्ण बदलाव होते हैं, जैसे माता-पिता की आय में वृद्धि, जिससे बच्चों की भलाई प्रभावित हो।

2.    अगर पूर्व पत्नी की आय बढ़ गई हो, तो क्या गुज़ारा भत्ता बंद हो सकता है?

पूर्व पत्नी की आय में वृद्धि पर, कोर्ट गुजारा भत्ता की राशि कम या बंद कर सकता है, बशर्ते कि वह अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हो।

3.    क्या बिना वकील के डिक्री मॉडिफाई  की अर्जी लगाई जा सकती है?

डिक्री मॉडिफाई  के लिए वकील की सहायता लेना उचित है, लेकिन कानूनी प्रक्रिया समझने पर, कोई भी व्यक्ति स्वयं भी अर्जी दायर कर सकता है।

4.    क्या डिक्री पास होने के कितने वर्षों बाद भी उसे बदला जा सकता है?

डिक्री पास होने के बाद, परिस्थितियों में महत्वपूर्ण बदलाव पर, कोर्ट डिक्री में मॉडिफाई कर सकता है, चाहे कितने भी वर्ष क्यों न बीत गए हों।

5.    क्या पति-पत्नी दोनों की सहमति ज़रूरी है डिक्री मॉडिफाई  के लिए?

डिक्री मॉडिफाई के लिए दोनों पक्षों की सहमति आवश्यक नहीं; कोर्ट एकतरफा आवेदन पर भी मॉडिफाई  कर सकता है, यदि वैध आधार प्रस्तुत हो।

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