19 जुलाई को मशहूर अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति राज कुंद्रा को अश्लील फिल्मे बनाने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया। एक मॉडल ने उन पर आरोप लगाया था कि उनकी कंपनी स्ट्रगलिंग ऐक्ट्रेस को काम दिलाने के नाम पर उनसे पोर्नोग्राफी करवाती है।
इसके बाद राज कुंद्रा पर IPC की धारा 292, 293 के अलावा धारा 420 के तहत केस दर्ज किया गया है। क्योंकि मामला इंटरनेट और OTT प्लेटफॉर्म्स से जुडा है तो आईटी एक्ट की धारा 67 और 67 A के तहत भी चार्ज लगाए गए हैं। महिलाओं से जुड़े अन्य कुछ धाराओं में भी कुंद्रा के ऊपर शिकंजा कसने की कोशिश की गयी है। दरअसल भारत में इस तरह के अपराध के लिए कोइ अलग से कानून नहीं है वर्त्तमान में भारत में महिला (प्रतिषेध) अश्लील प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1986 लागू है।
लेकिन इसके प्रोविजन ज्यादातर इलैक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया या विज्ञापन की सामग्री के दायरे में ही सिमटे हैं। इसमे डिजिटल, सोशल या OTT के बारे में कोइ जिक्र नहीं है।
दुर्भाग्य से इस तरह के अपराध को रोकने के लिए भारत में अभी कोइ अलग से सख्त कानून नहीं आया है। पुराना क़ानून अब के हालातों में उतना सख्त नहीं दिखाई देता कि इतने बड़े अपराध में कुंद्रा जैसे पावरफुल आदमी को सख्त सजा दिलवा सके।
कुंद्रा के बहाने अभी इस पुराने हो चुके क़ानून की प्रासंगिकता पर सवाल उठ रहे है। अब समय आ गया है कि इस पुराने कानून में संशोधन होना चाहिए।
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क्या है कानूनी प्रावधान
‘आईपीसी’ की धारा 292 अश्लील सामग्री और अश्लीलता के विषय में बताती है। इसके अनुसार कोइ भी सामग्री चाहे वो कोइ किताब हो, पेंटिंग हो, मूर्ति हो या को प्रस्तुति अगर वो कामुक पाई जाती है या उसका प्रभाव कामुक रुचि जगाने होता है तो वो अश्ल्लील मानी जाएगी।
यह कानून कहता है कि यदि इस तरह की किसी भी सामग्री को खरीदा बेचा या विज्ञापन की तरह इस्तेमाल किया जाता है तो वह अपराध है। इस तरह की किसी भी सामग्री का संचालन भी अपराध की श्रेणी में आता है।
इसी तरह यदि को व्यक्ति सार्वजनिक स्थल पर अश्लील कृत्य करता है या अश्लील गाने गीत गाता या बजाता है तो आईपीसी की धारा 293 और 294 के तहत अपराध है।
आईपीसी की धारा 293 और 294 कहती है कि 20 वर्ष से कम आयु के लोगों को ऐसी सामग्री दिखाई या बेची जाती है तो ये भी अपराध है। युवाओं को अश्लील सामग्री परोसना संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। धारा 293 के मामले में 3 साल सजा और जुर्माना या 7 साल और जुर्माने का प्रावधान है। ये एक जमानतीय अपराध है।
राज कुंद्रा पर आरोप है कि उन्होंने अपने एप के माध्यम से इस तरह की सामग्री का संचालन किया। इसी वजह से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।
मजे की बात तो ये है कि भारत में अश्लील सामग्री देखना अपराध नहीं है हाँ लेकिन अश्लील सामग्री बनाना वितरण करना दिखाना और बेचना अपराध है।
राज कुंद्रा पर आरोप है कि उनकी कंपनी ने मोडल्स को अश्लील फिल्मों में काम करने के लिए मजबूर किया और उसे एक एप पर अपलोड किया गया। इसका संचालन ब्रिटेन से होता है और भारत का कानून उसके खिलाफ ज्यादा कुछ कर नहीं सकता।
हाल ही में आईटी रूल 2021 में OTT को लेकर कुछ नियम लाये गए हैं। लेकिन ये नियम भी OTT प्लेटफॉर्म्स पर दिखाई जाने वाली सामग्री के लिए कोइ सख्त क़ानून नही है।
कुल मिलाकर कहा जा रहा है कि अश्लीलता रोकने का कानून ऐसे संगठित अपराधों को रोकने में अब नाकाफी है। ये कानून 1860 में बना था। तब से आज तक दुनिया चाँद पर पहुँच गयी है। इंटरनेट की तो उस जमाने में कल्पना भी नहीं हुई थी।
वर्तमान में जो अपराध हो रहे हैं उनमे डिजिटल माध्यम सबसे आगे है। ऐसे में एक पुराने क़ानून से काम चलाना बस जुगाड़ है।
इस तरह के मामलों में आईटी एक्ट का सहारा लिया जाता है। लेकिन अब वक्त आ गया है कि अश्लीलता को लेकर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सख्त कानून बनाने की जरूरत है।
हालांकि पुराने क़ानून के सीमित दायरे को देखते हुए महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय ने इसमे कुछ जरूरी बदलावों के सुझाव दिए थे, जो इस प्रकार हैं-
- डिजिटलाइजेशन को देखते हुये विज्ञापन की परिभाषा में डिजिटल और इलेक्ट्रोनिक फोर्मेट को भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि एसएमएस और एमएमएस को भी इसके दायरे में लाया जा सके।
- सूचना एवं तकनीकी विकास के साथ संचार में अब नए माध्यम भी जुड़ गए हैं अत: अब डिस्ट्रीब्यूशन की परिभाषा में प्रकाशन, कम्प्युटर और मोबाइल कंटेंट अपलोडिंग, और लाईसेन्स देना को भी शामिल किया जाना चाहिए
- महिलाओं की प्रेसेंटेशन गरिमामयी होनी चाहिए, अभद्र नहीं। इस तरह के कंटेंट का प्रकाशन या डिस्ट्रीब्यूशन नहीं किया जा सकता।
- इसके अलावा एक सेन्ट्रल अथोरिटी बनानी चाहिए जिसमे महिला आयोग, एएससीआई यानि एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया, PCI प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, MIB यानी मिनिस्ट्री ऑफ इन्फॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग तेहा महिलाओं से जुड़े किसी संगठन से सदस्य शामिल होने चाहिए।
- इस क़ानून के अंतर्गत दोषी पाए जाने पर 3 साल की सजा और कम से कम 2 लाख रूपये तक का जुर्माने का प्रावधान होना चाहिए।