क्या कहता है गर्भपात से जुड़ा कानून MTP 19 71

क्या कहता है गर्भपात से कड़ा कानून MTP 1971

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने एक अविवाहित लड़की के गर्भपात को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने 19 वर्षीय गर्भवती लड़की के मेडिकल टर्मिनेशन यानी चिकित्सकीय गर्भपात की अनुमति नहीं दी। दरअसल मामला प्रेम प्रसंग का था। लड़की 19 साल की थी और लडके के साथ करीबन 4 से 5 साल से रिलेशन में थी।

इस बीच वो गर्भवती हुई। गर्भावस्था के 12 हफ्ते बीत जाने के बाद उसने कोर्ट में चिकत्सकीय गर्भपात की अनुमति माँगी। इस मामले में कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुआ कहा कि 19 साल की लड़की यदि इस तरह के असुरक्षित सम्बन्ध बनाती है तो उसके नतीजे वो जानती है। कोर्ट ने माना कि लड़की लडके के साथ गहरे रिश्ते में थी और जो कुछ भी हुआ वो सहमती से हुआ।

लड़की ने रोकी नाम के युवक पर शादी का झांसा देकर रेप का आरोप लगाते हुए केस किया था और अपने 12 हफ्ते से ऊपर की प्रेगनेंसी के अबोर्शन की अनुमति माँगी थी।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

आइये जानते हैं मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 क्या कहता है।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 के अनुसार विशेष परिस्थतियों में 20 से लेकर 24 सप्ताह की प्रेगनेंसी को चिकित्सकीय परामर्श के साथ समाप्त किया जा सकता है।

क्या होती हैं विशेष परिस्थितियां

स्वास्थ्य कारण

ऐसी स्थिति जिसमे गर्भावस्था को जारी रखने में माता के जीवन को खतरा हो, उसे मानसिक या शारीरिक पीड़ा पहुँचती हो तो ऐसी स्थिति में दो रजिस्टर्ड डॉक्टर्स के परामर्श और अनुमति के साथ ऐसी प्रेगनेंसी को समाप्त किया जा सकता है। यानी अबोर्शन किया जा सकता है।

इसे भी पढ़ें:  सारदा एक्ट: जिससे भारत में पहली बार शादी की उम्र तय की गयी थी।

बलात्कार

इसके अलावा इस मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 बलात्कार और अनाचार पीड़ित महिलाओं के हित के लिए भी है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेगनेंसी एक्ट की उप-धारा (2) में जुड़े स्पष्टीकरण (1) में बलात्कार के कारण हुई प्रेगनेंसी को महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट मान कर गर्भपात की अनुमति दी जाती है।

अन्य कमजोर महिलायें

इसमे दिव्यांग महिलाए मानसिक बीमार महिलाएं और नाबालिग बच्चियां, सगे संबंधियों के दुष्कर्म की पीड़ित महिलाए शामिल हैं।

भूर्ण संबंधी विसंगति

इसके अलावा यदि गर्भ में पल रहे बच्चे में स्वास्थ्य संबंधी गंभीर असमान्यताएं हैं तो ऐसे में 24 हफ़्तों के बाद भी गर्भपात की मनुमती है। लेकिन इसके लिए राज्य स्तरीय मेडिकल बोर्ड की राय लेना अनिवार्य होगा। इस बोर्ड में एक स्त्री रोग विशेषज्ञ, एक बाल रोग विशेषज्ञ, एक सोनोलोजिस्ट या रेडियोलोजिस्ट और एक राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित कोइ अन्य सदस्य का होना अनिवार्य है।

हाल ही में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेगनेंसी एक्ट अमेंडमेंट बिल 2020 में पारित हुआ। इसके बाद महिलाओं को विशेष परिस्थितियों में 24 हफ्तों तक गर्भपात कराने का कानूनी अधिकार दिया गया।  इसके पूर्व यह समयावधि 12 से 20 हफ़्तों की थी। संशोधन के बाद इस कानून में गर्भपात कराने वाली महिला के शादीशुदा होने की अनिवार्यता भी समाप्त कर दी गयी है।

लेकिन इस कानून के बहाने एक बहस भी चल रही है कि गर्भपात की अवधि सुनिश्चित करने के स्थान पर महिलाओं को अपने स्वास्थ्य को देखते हुए यह निर्णय लेने का पूरा अधिकार होना चाहिए कि वो बच्चे को जन्म देना चाहती हैं या नहीं।

Social Media

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *