कई बार ऐसा होता है की किसी के परेशान करने से व्यक्ति इतना दुखी हो जाता है कि उसे आत्महत्या के अलावा कुछ रास्ता सुझाई नहीं देता।
ऐसे में परेशान करने वाले व्यक्ति पर पीड़ित मृतक को आत्मह्त्या के लिए उकसाने के जुर्म में सजा होती है। दोषी को CRPC की धारा 306 तहत सजा सुनाई जाती है। लेकिन हर बार ऐसा हो ये भी जरूरी नहीं।
हाल ही में वेल्लादुरै बनाम राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुआ कहा कि केवल उत्पीड़न की घटना को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता।
दअरसल मुकदमा संख्या CRA 953 of 2021 मामले में आरोपी की पत्नी ने कीटनाशक पीकर आत्महत्या कर ली थी। आरोपी ने भी कीटनाशक पिया था लेकिन वो बच गया। कोर्ट में मामले को पेश किया गया जिसमें यह बताया गया कि घटना वाले दिन पति-पत्नी में झगड़ा हुआ था। इसके बाद दोनों ने कीटनाशक पिया जिसमें पत्नी की मौत हो गयी।
क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?
इस मामले में जस्टिस एमआर शाह और अनिरुद्ध बोस के कोरम ने कहा कि इस मामले में आरोपी को धारा 306 के अन्दर रख कर नहीं देखा जा सकता। ऐसा करना उच्च अदालत और निचली अदालत की भूल थी, क्योंकि घटना वाले दिन भले ही आरोपी का अपनी पत्नी से झगड़ा हुआ था, लेकिन उसने खुद भी कीटनाशक पीकर आत्म ह्त्या का प्रयास किया था।
गौरतलब है कि इस मामले में आरोपी पति पर धारा 306 यानी आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में 7 साल का सश्रम कारावास और 2500 रूपये जुर्माना लगाया गया था।
आइये जानते हैं क्या है धारा 306 –
परिभाषा
किसी को इस हद तक प्रताड़ित करना या परेशान करना कि वो आत्महत्या कर ले, यह अपराध भारतीय दण्ड संहिता 1860 की धारा 306 के अंतर्गत आता है। यह धारा तभी लागू होती है जब पीड़ित की मौत हो जाती है।
जमानत
यह एक संज्ञेय अपराध है। यह अपराध किसी भी तरह समझौता योग्य नहीं है। इसमे जमानत भी नहीं होती। इस की सुनवाई का अधिकार केवल कोर्ट को होता है। अपराध के लिए कम से कम दस साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान होता है।
उपरोक्त केस में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि केवल झगडा करना या परेशान करना धारा 306 के अन्दर नहीं आता। लेकिन गिरिजा शंकर वर्सेस मध्यप्रदेश राज्य केस में कोर्ट ने एक बहू के आत्महत्या मामले में ससुराल पक्ष के लोगो को दोषी माना था। इस केस में बहू को भूखा प्यासा रखा जाता था। उसे इस हद तक मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया कि उसे आत्महत्या के अलावा कोइ और रास्ता सुझाई नहीं दिया। कोर्ट ने इस हद तक प्रताड़ित करने के मामले को धारा 306 के अंतर्गत अपराधा माना।