आपने दहेज़ के कई मुकदमे देखें होंगे जिनमे ससुराल पक्ष और पति ने विवाहिता को खूब सताया होगा। पुलिस और कोर्ट केस की शरण लेने के बाद उन्हें इन्साफ मिला होगा। लेकिन ऐसा नहीं है कि सारे पुरुष अत्याचारी होते हैं और दहेज़ का मुकदमा करने वाली महिला हमेशा सही? हाल ही में बोम्बे हाईकोर्ट ने अपने फैसले में ना सिर्फ प्रताड़ित पुरुष को इन्साफ दिया बल्कि झूठी पत्नी पर जुर्माना भी लागाया।
मुम्बई से जुड़े इस मामले में पत्नी ने अपने पति पर दहेज़ का झूठा मुकदमा लगा दिया, जिसके चलते पति और उसके परिजन काफी परेशान रहे। प्रताड़ित पति ने बोम्बे हाईकोर्ट की शरण ली और अदालत के सामने वो सभी सबूत रखे जिनसे साबित हो सका कि पत्नी ने झूठा मुकदमा किया। जज साहब ने मुकदमा खारिज करते हुए पत्नी पर 50 पचास हजार रूपये का जुर्माना भी लगाया और पति को तलाक की डिक्री भी दिलवाई।
जहाँ दहेज़ के केस में कई महिलाओं को इन्साफ दिलवाया है वहीं इस ताकतवर क़ानून के कारण कई निर्दोष पुरुष और उनके परिवाओं को अन्याय और मुसीबत झेलना पडा है। एक समय था जब 498A के केस में ना सिर्फ तुरंत गिरफ्तारी के आदेश थे बल्कि इसमे जमानत भी नहीं मिलती थी। बिना जांच पड़ताल के पहले पुरुष और उसके परिजनों को गिरफ्तार किया जाता था।
लेकिन जब इस कानून का दुरुपयोग होने लगा तब इसमे संशोधन किया गया और सीधे गिरफ्तारी के प्रोविजन पर रोक लगा दी गयी। लेकिन आज भी ऐसे मुकदमे हैं जिनमे निर्दोष लोग प्रताड़ित हो रहे हैं लेकिन भारत में देर है अंधेर नहीं।
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क्या कहता है दहेज़ कानून
भारत में दहेज़ लेना और देना दोनों ही जुर्म है। दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार इस में 5 साल की कैद और 15,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।
दहेज़ निषेध अधिनियम 1961 की धारा 498-ए के अनुसार अगर ससुराल पक्ष के लोग और पति या उनमे से कोइ भी दहेज़ के लिए विवाहिता उत्पीड़न करते हैं तो ये कानून जुर्म है और इसमे 3 साल की सजा और जुर्माना दोनों ही हो सकते हैं। इसमे ससुराल पक्ष के रिश्तेदार भी अगर शामिल हैं तो उन्हें भी यही सजा मिलती है।
दहेज़ निषेध अधिनियम 1961 की धारा 406 के अनुसार यदि विवाहिता के पति या ससुराल वाले उसे शादी में मिला स्त्रीधन सौंपने से मना करते हैं तो उन्हें 3 साल की सजा का प्रावधान है| या फिर इसमे सजा और जुर्माना दोनों ही हो सकते हैं।