एडॉप्शन एक कठिन और लम्बा प्रोसेस है। खासतौर पर सिंगल वीमेन के लिए, पहले समय में जब एक सिंगल वीमेन एडॉप्शन के लिए आगे बढ़ती थी। तो उनसे कुछ इस तरह के सवाल किये जाते थे। जैसे – आपकी शादी क्यों नहीं हुई, आप किनके साथ रहती है, आप बच्चे को अकेले कैसे पालेंगी, आप सिंगल है तो बच्चे क्यों चाहती है, क्या आप बच्चे का खर्च अकेले उठा भी पाएंगी आदि। अगर वे किसी एजेंसी की मदद से प्रोसेस पूरा करती भी थी। तब भी पूरे प्रोसेस में बहुत ज्यादा समय लगता था। लेकिन अब ये सरल हो गया है। अब सिंगल वीमेन एडॉप्शन में आने वाली चुनौतियां बहुत कम हो गयी है।
एडॉप्शन में सबसे एहम भूमिका (CARA) (सीएआरए) सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स ऑथोरिटी निभाती है। CARA (सीएआरए) एक सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स एजेंसी है। 2015 में, CARA की गाइडलाइन आने के बाद जहाँ पहले सिंगल वीमेन लड़का अडॉप्ट नहीं कर सकती थी। वहीं अब वे किसी भी जेंडर के बच्चे को अडॉप्ट कर सकती है। जिसके लिए उनका विवाहित होना या उनके पार्टनर का होना जरुरी नहीं है। अब जो महिला फाइनेंसियल ऐबल है, चाहे उसकी उम्र 40 से ज्यादा हो बच्चा अडॉप्ट कर सकती है। आजकल एडॉप्शन के लिए दूसरे लोगों के बजाय सिंगल वीमेन को ज्यादा बढ़ावा दिया जा रहा है क्योंकि आज उन्हें बच्चे कि परवरिश के लिए ज्यादा सक्षम और जिम्मेदार देखा जा रहा है।
जो लोग बच्चा अडॉप्ट करने के लिए इच्छुक होते है, वो इनकी ऑफिसियल वेबसाइट पर फॉर्म भर सकते है। CARA के CEO (सीईओ) दीपक कुमार कहते है कि सिंगल वीमेन एडॉप्शन प्रोसेस में पिछले कुछ सालों में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हुई है। जिसका एक कारण सेलिब्रिटीज का इस तरफ रुझान भी है। पूर्व मिस यूनिवर्स सुष्मिता सेन ने सन 2000 में रेने को अडॉप्ट किया था। तब वो सिर्फ 25 वर्ष की थी और अभिनेत्री रवीना टंडन ने 1995 में दो बेटियों को अडॉप्ट किया था। तब वे केवल 21 वर्ष की थी। उनके अपनी शादी से भी बायोलॉजिकल 2 बच्चे है। इसी कड़ी में अभिनेत्री शोभना और रेवथी ने भी एक एक बेटी को अडॉप्ट किया है। जबकि शोभना ने कभी शादी नहीं की और रेवथी डायवोर्सी है। ऐसे ही और भी कारण है जैसे तलाक, अलग हो जाना और बगैर शादीशुदा महिला खुद बच्चे पालना चाहती है। इसके अलावा लिटरसी और बढ़ती फाइनेंसियल इंडिपेंडेन्सी ने इसे लोकप्रिय बना दिया है।
अब लोग समझ रहे है की पेरेंटिंग के लिए शादी करना जरुरी नहीं है। आजकल लड़का हो या लड़की सभी अपने करियर पर ज्यादा फोकस कर रहे है। जिस वजह से वे बायोलॉजिकल चाइल्ड नहीं चाहते है और एडॉप्शन की तरफ बढ़ना पसंद करते है।
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सिंगल पैरेंट एडॉप्शन के रूल्स:-
आगे सिंगल पैरेंट एडॉप्शन के रूल्स जानते है।
(1) भारत में सिंगल मदर एडॉप्शन की एज लिमिट 30 से घटकर 25 वर्ष कर दी गयी है।
A. एडॉप्शन के लिए एक महिला को 25 वर्ष का होना जरुरी है।
B. 45 वर्ष तक की महिला 4 वर्ष से कम उम्र के बच्चे गोद ले सकती है।
C. 50 वर्ष की महिला 5 से 8 वर्ष तक के बच्चे को अडॉप्ट कर सकती है। उससे छोटे बच्चे को अडॉप्ट करने का अधिकार उनको नहीं दिया गया हैं।
D. 55 वर्ष की महिला 9 से 18 वर्ष के बच्चे को अडॉप्ट कर सकती है। उससे छोटे बच्चे को अडॉप्ट करने का अधिकार उनको नहीं दिया गया है।
E. 55 वर्ष से ज्यादा की उम्र की महिलाओ को बच्चा अडॉप्ट करने की अनुमति नहीं दी गयी है।
(2) भारत के किसी भी हिस्से से आप बच्चा अडॉप्ट कर सकते है। लेकिन अडॉप्ट किये जाने वाले बच्चे के बारे में इन्क्वारी उसी राज्य की एजेंसी करेगी जहाँ आप रह रहे है।
(3) सिंगल पैरेंट और अडॉप्ट किये जाने वाले बच्चे की उम्र में कम से कम 21 वर्ष का अंतर होना चाहिए। 21 वर्ष से कम गैप होने पर बच्चे की कस्टडी नहीं दी जाती है।
(4) एक महिला किसी भी जेंडर के बच्चे को अडॉप्ट कर सकती है। लड़की हो या लड़का महिलाओं के द्वारा अब किसी को भी अडॉप्ट किया जा सकता है।
(5) विकलांग महिलायेँ भी अपनी अक्षमता की प्रवर्ति और सीमा के आधार पर बच्चा अडॉप्ट कर सकती है।
(6) सिंगल पैरेंट के रूप में गे या लेस्बियन (3rd जेंडर) लोग भी बच्चा अडॉप्ट कर सकते है। 3rd जेंडर के लोगो को भी अडॉप्ट करने का और अपने ममत्व के भाव को जीने का पूरा अधिकार है।
(7) आमतौर पर लोगो के पहले से ही 3 या इससे अधिक बच्चे है। ऐसे लोग अडॉप्ट नहीं कर सकते लेकिन विशेष परिस्तिथियों में वो भी बच्चे अडॉप्ट कर सकते है।
इन सभी के साथ इस प्रोसेस में खर्चा भी होता है। CARA के अनुसार इस प्रोसेस में 50,000 रु तक लग जाते है। इसके अंतर्गरत रजिस्ट्रेशन फी, होम स्टडी कास्ट और चाइल्ड केयर एन्ड डेवेलपमेंट फण्ड जैसी सभी ऑफ़िशियल फीस होती है। यह रकम एक ही बार में नहीं देनी होती है, बल्कि एडॉप्शन पूरा होने तक टुकड़ो में भी दी जा सकती है।
भारत में एडॉप्शन प्रोसेस इस प्रकार है:-
एडॉप्शन की प्रक्रिया में यह सभी स्टेप्स शामिल है :-
(1) सबसे पहले CARA की वेबसाइट पर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करना होता है। यह रजिस्ट्रेशन जिला बाल सरक्षणं अधिकारी या डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर (DCPO) से भी कर सकते है। इसका एप्लीकेशन फॉर्म CARA की ऑफिसियल वेबसाइट पर उपलब्ध रहता है।
(2) रजिस्ट्रेशन के बाद 30 दिनों में एडॉप्शन एजेंसी होने वाले पैरेंट कि होम स्टडी और अलग अलग फैक्टर पर नोट तैयार करती है। फिर इसके डेटाबेस के आधार पर इसे पोस्ट कर दिया जाता है।
(3) अडॉप्ट करने वाले पैरेंट गोद लेने वाले बच्चे को 48 घंटे तक अंडर ऑब्जरवेशन रख सकते है।
(4) अडॉप्ट करने वाले पैरेंट की, उनके द्वारा चुने गए बच्चे के साथ मीटिंग कराई जाती है। इस मीटिंग में पैरेंट और बच्चे दोनों की बातचीत कराते है। देखा जाता हैं की वे लोग आपस में कम्फर्टेबल है या नहीं, बच्चा परेशान या डरा हुआ तो नहीं है। इन सभी बातो का आंकलन किया जाता है।
(5) अगर किसी भी वजह से बच्चे और पैरेंट के बीच तालमेल नहीं बैठता है, अगर बच्चा और पैरेंट एक दूसरे के साथ कम्फर्टेबल नहीं है या एक दूसरे को पसंद नहीं कर रहे है, तो फिर ये सारा प्रोसेस दोबारा से शुरू किया जाता है। इस पूरे प्रोसेस को मैचिंग प्रोसेस कहते है। मैचिंग प्रोसेस में 15 दिन का समय लगता है। इससे ज्यादा या कम समय भी लग सकता है। कितना समय लगेगा ये पैरेंट और एजेंसी पर डिपैंड करता है।
सावधानी :-
अडॉप्ट करने वाले पैरेंट को बच्चे की फोटो, उसके बारे में सारी जानकारी जैसे मेडिकल कंडीशन एंड हिस्ट्री, बच्चे का नेचर जांच लेना चाहिए। ताकि वे अपनी पसंद के अनुसार बच्चा चुन सकें।