भारत जैसे विविधतापूर्ण और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश में विवाह सिर्फ दो व्यक्तियों का नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन माना जाता है। लेकिन इसी विवाह को जब दहेज की मांग से जोड़ा जाता है, तब यह एक पवित्र बंधन के बजाय एक व्यावसायिक सौदे जैसा बन जाता है। दहेज प्रथा को समझना इसलिए जरूरी है क्योंकि:
- यह सामाजिक असमानता और लिंग भेदभाव को बढ़ावा देती है।
- यह महिलाओं के आत्म-सम्मान, अधिकारों और जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
- समाज में भय, आर्थिक दबाव और कई बार मृत्यु जैसी त्रासदियों का कारण बनती है।
इस लेख का उद्देश्य है – आम लोगों को दहेज से जुड़े सामाजिक और कानूनी पक्षों की पूरी जानकारी देना ताकि वे जागरूक हो सकें और इस कुप्रथा को जड़ से खत्म करने में भूमिका निभा सकें।
दहेज प्रथा का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
- प्राचीन काल: विवाह के समय ‘स्त्रीधन’ का चलन था – यानी लड़की को उसके माता-पिता द्वारा दी गई वह संपत्ति जो जीवनभर उसकी निजी संपत्ति मानी जाती थी। यह धन सम्मान और सुरक्षा का प्रतीक था, न कि लेन-देन का।
- मध्यकालीन भारत: इस समय राजनीतिक अस्थिरता और पितृसत्तात्मक सोच ने स्त्री की स्थिति को कमजोर किया। अब विवाह में दिया गया धन लड़की को न देकर वर पक्ष को दिया जाने लगा। इसे ‘वरदक्षिणा’ का नाम मिला और दहेज की कुप्रथा ने जन्म लिया।
- औपनिवेशिक काल: ब्रिटिश राज में जातीय और सामाजिक भेदभाव ने दहेज प्रथा को और बल दिया। इस काल में दहेज संपत्ति और प्रतिष्ठा का मापदंड बन गया।
- आजादी के बाद: कई कानून बनने के बावजूद, परंपरा और सामाजिक दबावों ने इसे खत्म होने नहीं दिया। आधुनिक भारत में यह प्रथा अब भी वैधानिक रूप से अवैध लेकिन सामाजिक रूप से स्वीकृत मानी जाती है।
आज के भारत में दहेज की स्थिति
- शहरी बनाम ग्रामीण परिवेश: शहरी क्षेत्रों में दहेज की मांग अधिक ‘प्रोफेशनल’ तरीके से होती है – जैसे नौकरी, गाड़ी, फ्लैट या बिजनेस में इन्वेस्टमेंट के रूप में। जबकि ग्रामीण इलाकों में अब भी नकद, बर्तन, फर्नीचर और सोने की मांग होती है।
- दहेज के बदले रूप: अब लोग खुले तौर पर दहेज नहीं मांगते, लेकिन ‘शगुन’ या ‘गिफ्ट’ के नाम पर बड़े पैमाने पर लेन-देन होता है। यह नई पीढ़ी की पढ़ी-लिखी सोच के बावजूद चलता आ रहा है।
क्यों कायम है यह प्रथा?
- समाज की सोच कि ‘लड़का कमाता है तो दहेज लेना उसका अधिकार है।’
- लड़कियों को ‘बोझ’ समझना
- सामाजिक प्रतिष्ठा दिखाने की होड़
दहेज प्रथा का सामाजिक और पारिवारिक प्रभाव
दहेज की मांग पूरी न होने पर कई महिलाएं शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित की जाती हैं। यह प्रताड़ना कभी-कभी हत्या या आत्महत्या का रूप भी ले लेती है।
प्रमुख प्रभाव:
- महिला की गरिमा को ठेस: विवाहिता को घर में ‘कम दहेज लाने वाली’ समझा जाता है।
- हत्याएं और आत्महत्याएं: NCRB की रिपोर्ट के अनुसार हर साल हजारों महिलाएं दहेज की वजह से मरती हैं।
- आर्थिक बोझ: गरीब परिवारों के लिए दहेज देना कर्ज में डूबने जैसा होता है।
- पारिवारिक संबंधों में तनाव: दहेज विवाह को एक ‘सौदा’ बना देता है, जिससे भावनात्मक जुड़ाव कमजोर हो जाता है।
दहेज निषेध कानून – कानूनी सुरक्षा का ढांचा
दहेज निषेध अधिनियम, 1961: इस कानून के अनुसार दहेज देना, लेना या मांगना, तीनों अवैध हैं।
- धारा 3: दहेज लेना/देना – कम से कम 5 साल की सजा और ₹15,000 जुर्माना या दहेज का मूल्य (जो अधिक हो)।
- धारा 4: मांग करना भी अपराध है – इसमें भी समान सजा है।
गिफ्ट बनाम दहेज: अगर विवाह में दिया गया उपहार बिना मांग के है और दुल्हन के नाम से है, तो वह गिफ्ट है। लेकिन अगर यह मांग पर आधारित है या वर पक्ष के नाम से है, तो वह दहेज की श्रेणी में आएगा।
भारतीय न्याय संहिता (BNS) और अन्य कानूनों का योगदान
- BNS की धारा 85: पति या ससुराल वालों द्वारा विवाहिता को प्रताड़ित करना – गैर-जमानती अपराध
- धारा 80 (Dowry Death): विवाह के 7 वर्षों के भीतर महिला की मृत्यु हो और दहेज का संदेह हो तो यह विशेष अपराध माना जाता है
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 118: कोर्ट यह मान लेता है कि दहेज मृत्यु हुई है जब तक कि इसका उल्टा सिद्ध न हो
- घरेलू हिंसा अधिनियम: महिलाओं को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और यौन प्रताड़ना से सुरक्षा देता है
शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया
- FIR कैसे दर्ज करें: नजदीकी पुलिस स्टेशन या महिला थाना में जाकर आवेदन करें
- महिला हेल्पलाइन नंबर: 1091 (24×7 सेवा)
- NGO की सहायता: कई सामाजिक संगठन पीड़ित महिला को परामर्श, कानूनी सहायता और शेल्टर प्रदान करते हैं
- राष्ट्रीय महिला आयोग: सीधा संपर्क किया जा सकता है – ईमेल/फोन/ऑनलाइन पोर्टल से शिकायत
झूठे दहेज के केस में क्या करें?
कई बार दहेज कानूनों का दुरुपयोग भी होता है। ऐसे में आरोपी को न्याय मिलने के लिए सही कानूनी रास्ता अपनाना चाहिए।
- जमानत: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 482 के तहत अग्रिम जमानत का प्रावदान है।
- सबूतों का संकलन: कॉल रिकॉर्ड, चैट, वीडियो आदि
- केस रद्द (धारा 528 BNSS): हाईकोर्ट में केस रद्द करने की याचिका
- मानहानि केस: झूठे आरोप लगाने पर BNS की धारा 356 के तहत मानहानि का केस किया जा सकता है
समाज में बदलाव की आवश्यकता
सिर्फ कानून नहीं, मानसिकता बदलना जरूरी है।
- शिक्षा: बेटियों और बेटों दोनों को समान शिक्षा
- आर्थिक आत्मनिर्भरता: जब महिलाएं आर्थिक रूप से स्वतंत्र होंगी, तो वे दहेज का विरोध कर सकेंगी
- समुदाय की भागीदारी: पंचायतों और धार्मिक संस्थाओं को आगे आना चाहिए – सामूहिक विवाह और बिना दहेज शादी को बढ़ावा मिलना चाहिए
निष्कर्ष
आज हम पहले से कहीं ज्यादा जागरूक हुए हैं, लेकिन दहेज प्रथा का खात्मा एक लंबी प्रक्रिया है। यह समाज के हर वर्ग की जिम्मेदारी है कि वह इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठाएं और आने वाली पीढ़ी को इससे बचाएं।
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FAQs
1. क्या सगाई के समय दिए गए उपहार भी दहेज माने जाते हैं?
यदि उपहार बिना किसी मांग के दिए गए हैं तो वे दहेज नहीं माने जाएंगे।
2. शादी के बाद दहेज की मांग पर क्या करें?
तुरंत पुलिस या महिला आयोग में शिकायत दर्ज करें।
3. क्या सभी ससुरालवाले दोषी माने जाते हैं?
यदि सभी का हाथ है तो सभी के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
4. क्या सास-ससुर पर भी 85 लग सकता है?
हां, यदि उन्हें दहेज की मांग या महिला पर अत्याचार में शामिल पाया जाए तो यह धाराएं लागू हो सकती हैं।
5. झूठे दहेज केस में कोर्ट कितनी जल्दी राहत देती है?
अगर साबित हो जाए कि मामला झूठा है तो कोर्ट जल्दी राहत दे सकती है, खासकर धारा 528 BNSS के तहत।