आपसी सहमति से डाइवोर्स की प्रक्रिया क्या है?

भारत में आपसी डाइवोर्स की प्रक्रिया क्या है?

जब एक हस्बैंड और वाइफ मर्ज़ी से अपनी शादी को ख़त्म करते हैं। तो वह म्यूच्यूअल कंसेंट डाइवोर्स या आपसी सहमति से डाइवोर्स होता है। यह दोनों पार्टनर्स की सहमति से लिया हुआ फैसला होता है, इसीलिए इसका प्रोसेस अन्य तरीकों के मुकाबले आसान होता है। आईये जानते है आपसी सहमति से डाइवोर्स लेने का प्रोसेस क्या है।

म्यूच्यूअल डाइवोर्स के स्टेप्स:-

म्यूच्यूअल डाइवोर्स लेने के यह मुख्य स्टेप्स है।

(1) डाइवोर्स की पिटीशन:-

आपसी सहमति से डाइवोर्स लेने के लिए कपल को फैमिली कोर्ट में एक जॉइंट पिटीशन फाइल करनी होती है। आपसी डाइवोर्स लेने का कॉमन आधार है कि आपसी लड़ाइयों की वजह से कपल एक साल से ज्यादा समय से अलग रह रहे हैं। और अब कपल को लगता है कि वे एक-दूसरे के साथ और नहीं रह सकते हैं। इसलिए वह एक दूसरे से कानूनी रूप से अलग होने के लिए अपने डाइवोर्स पर अपनी सहमति दे रहे है। जॉइंट पिटीशन में दोनों पार्टनर्स के साइन होने जरुरी है।

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(2) कोर्ट हियरिंग:-

पिटीशन फाइल करने पर हियरिंग की जो तारीख मिलती है। उस तारीख पर दोनों पार्टनर्स को वकील के साथ फैमिली कोर्ट में पेश होना होता है। कोर्ट, पिटीशन और उपलब्ध कराये सुबूतों को चेक करके, कपल की सुलह कराने की कोशिश करती है। अगर सुलह पॉसिबल नहीं है, तो डाइवोर्स का प्रोसेस जारी रहता है। इसके बाद कोर्ट शपथ पत्र पर दोनों पार्टनर के बयान दर्ज करने का आदेश देती है।

(3) पहला प्रस्ताव:-

दोनों पार्टनर्स के बयान दर्ज करने के बाद कोर्ट डाइवोर्स का पहला प्रस्ताव पारित करती है। जिसके साथ डाइवोर्स का एक चरण ख़त्म हो जाता है और दूसरा शुरू हो जाता है।

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(4) दूसरा प्रस्ताव और अंतिम सुनवाई:-

कपल के पहले और दूसरे प्रस्ताव में 6 महीने का गैप होना जरूरी है। कपल डाइवोर्स का दूसरा प्रस्ताव सबमिट करने के बाद कोर्ट में अंतिम सुनवाई के लिए आगे बढ़ सकते हैं। अंतिम सुनवाई के दौरान दोनों पार्टनर्स अपना केस बताते है, और फैमिली कोर्ट में शपथ पत्र पर अपने बयान दर्ज करते है।

लेकिन, अगर कोर्ट चाहे तो 6 महीने की अंतरिम अवधि से बचा भी जा सकता है। कोर्ट्स ऐसा तब करती हैं जब उन्हें लगता है कि दोनों पार्टनर्स ने डाइवोर्स लेने का पूरा मन बना लिया और अब ये शादी नहीं बच सकती हैं।

(5) डाइवोर्स की डिक्री:-

जब कपल की तरफ से गुजारा भत्ता, बच्चे की कस्टडी या प्रॉपर्टी के बंटवारे आदि से रिलेटेड किसी प्रकार का मतभेद नहीं रहता है, तो डाइवोर्स का प्रोसेस फाइनल स्टेज पर पहुंच जाता है। फिर कोर्ट डाइवोर्स की डिक्री जारी कर देती है। यह डिक्री इस बात का कानूनी प्रूफ है कि कपल की शादी खत्म हो गई है।

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