सभी टेलीकॉम कंपनियों को अपने यूज़र्स की जानकारी रखनी होती है कि वह कब, कहां, कितनी और किस से बात कर रहे है। कंपनियों को पुराना डेटा डिलीट करने के लिए टेलीकॉम डिपार्टमेंट से परमिशन लेनी होती है। इस डेटा के अंदर यूज़र का मोबाइल नंबर, कॉल्स की डिटेल्स और लोकेशन होती है। इनको कोर्ट में सबूत के तौर पर भी यूज़ किया जाता है। आईये जानते है केसिस में किस तरीके से इनका यूज़ किया जाता है।
कॉल डिटेल्स किसे मिल सकती है?
यह डिटेल्स पब्लिक नहीं होती, इन्हे केवल टेलीकॉम कंपनियों द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। इन डिटेल्स को या तो केस के दौरान कोर्ट द्वारा मंगवाया जा सकता है। या फिर एक पुलिस ऑफिसर किसी केस के फैक्ट को साबित करने के लिए यह डिटेल्स मंगवा सकता है। ताकि वह अपनी फाइनल रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर सके। टेलीकॉम कंपनियां कोर्ट या पुलिस ऑफिसर को कॉल डिटेल्स अवेलेबल कराने से मना नहीं कर सकती है। एक आम आदमी को यह डेटा कभी नहीं मिलता।अपने केस में सबूत के तौर पर पेश करने के लिए भी नहीं।
आम आदमी कैसे प्राप्त करें कॉल डिटेल्स:-
यह कॉल डिटेल्स केवल पुलिस ऑफिसर और कोर्ट को ही अवेलेबल होती है। वह भी तब, अगर उन्हें किसी केस के दौरान अपराध साबित करना हो। अगर कोई आम आदमी अपने केस के लिए डिटेल्स मंगवाना चाहता है। तो उस सिचुएशन में पीड़ित, पुलिस ऑफिसर से रिक्वेस्ट कर सकता है कि उसके केस में काल डिटेल्स मंगवाई जाए और कोर्ट में पेश की जाए। लेकिन, यह ऑफिसर पर डिपेंड करता है की वह डिटेल्स मंगवाता है या नहीं।
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अगर पुलिस ऑफिसर डिटेल्स के लिए मना कर दे:-
अगर पुलिस ऑफिसर डिटेल्स मंगवाने से मना कर दे, तो व्यक्ति सीआरपीसी के सेक्शन 16 आर्डर 7 के तहत एक एप्लीकेशन दे सकता है। और एप्लीकेशन द्वारा कोर्ट से रिक्वेस्ट कर सकता है कि उसके केस में फैक्ट्स को साबित करने के लिए कॉल डिटेल्स मंगवाई जाए। अगर कोर्ट को लगता है कि डिटेल्स से कोई पहलु साबित हो रहा है या डिटेल्स की केस में जरूरत है, तो वह व्यक्ति की रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर लेते है। कोर्ट के आर्डर के बाद टेलीकॉम कंपनी की जिम्मेदारी होती है कि वह कॉल डिटेल उपलब्ध करवाएं।
लेकिन, अगर कोर्ट को लगता है की कॉल डिटेल्स की कॉपी की जरूरत नहीं है, तो वह इसके लिए मना कर देती है। ऐसी कॉल डिटेल्स को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के अंतर्गत मान्यता प्राप्त है। यह डिटेल्स पूरे केस को तो नहीं सुलझाती, पर केस के कुछ फैक्ट्स को जरूर साबित करती है। और केस सॉल्व करने में मदद मिलती है।