भारत में डाइवोर्स लेने के नियमों में आए ये बदलाव।

भारत में डाइवोर्स लेने के नियमों में आए ये बदलाव।

भारत के सभी डाइवोर्स लॉ का मेन मोटिव कपल के बीच सुलह कराना और उन्हें साथ लाने की कोशिश करना है। लेकिन, अगर कपल किसी भी सिचुएशन में अपनी शादी में एडजस्ट नहीं करना चाहते है, तो कोर्ट द्वारा डाइवोर्स दे दिया जाता है। डाइवोर्स के बाद कपल की शादी कानूनी तौर पर ख़त्म हो जाती है। अब डाइवोर्स के कानूनों को अपडेट किया गया है। ताकि डाइवोर्स की लंबी और ज्यादा समय लेने वाली प्रोसेस को आसान बनाया जा सके।

नए डाइवोर्स लॉ:-

डाइवोर्स लॉ से जुड़े नए नियम इस प्रकार है –

(1) डाइवोर्स के लिए छः महीने का इंतज़ार खत्म:-

जब कपल आपसी सहमति से डाइवोर्स के लिए केस फाइल करते है। तब हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 का सेक्शन 13बी(2) के तहत कोर्ट उन्हें पुनर्वास(रिहैबिलिटेशन) के रूप में एक बार दोबारा सोंचने का मौका और छह महीने तक साथ रहने का समय देती है। इस पुनर्वास का मकसद सिर्फ कपल की शादी को बचाना होता है।

लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट का रुख इसके दूसरी तरफ है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार “छह महीने की समय अवधि का पुनर्वास अब जरूरी नहीं है”। सुप्रीम कोर्ट के इंस्ट्रक्शन के हिसाब से लोअर कोर्ट्स भी अब डाइवोर्स के केसिस की कार्यवाही में तेजी ला रही हैं। सोंचने के लिए समय की छूट सिर्फ तब दी जा सकती है, जब कपल अपने इशूज़ को शांति से सुलझाने का डिसीज़न करते है। जिसमें गुजारा भत्ता, बच्चे की कस्टडी और बाकि मुद्दों को लेकर कोई लड़ाई झगड़ा नहीं होता है।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी कोर्ट्स को यह पावर्स दे दी है कि वह कपल को तत्काल “डाइवोर्स की राहत” दे सके। लेकिन साथ ही यह इंस्ट्रक्शन भी दी गयी है कि पावर का यूज़ सिर्फ तभी किया जाना चाहिए, जब लगे कि शादी अब नहीं बच सकती। और इस शादी के टूटने पर दोनों पार्टनर्स नए सिरे से अपनी ज़िंदगी की शुरुवात कर सकते है।

(2) मेंटेनेंस के लिए कानून:- 

हिंदू मैरिज एक्ट का सेक्शन 25 कोर्ट को, मेंटेनेंस का भुगतान करने के लिए आर्डर देने की पावर देता है। यह आर्डर डाइवोर्स के बाद कोर्ट द्वारा हस्बैंड को दिया जाता है, कि वो अपनी वाइफ को मेंटेनेंस दे। अगर शादी हिंदू मैरिज एक्ट के तहत नहीं हुई है, तो क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के सेक्शन 125 के तहत भी मेंटेनेंस लिया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, शादी की तरह ही अब लिव-इन रिलेशनशिप में अलग होने पर भी महिला मेंटेनेंस ले सकती है। अगर कपल लम्बे समय से साथ रह रहे है, तो उन्हें अपने रिलेशन का स्ट्रिक्ट प्रूफ देने की जरूरत नहीं है। अब महिलाएं सीआरपीसी के सेक्शन 125 और घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत सुरक्षा और मेंटेनेंस की मांग कर सकती है।

(3) शादी का अपरिवर्तनीय टूटना:- 

ऐसी सिचुएशन जब कपल अपने रिश्ते में नहीं रह पा रहे हैं। तो ये शादी टूटने के बराबर है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, अगर कपल एक दूसरे के साथ एडजस्ट नहीं करना चाहते या एडजस्ट नहीं कर पा रहे, तो उन्हें जबरद्स्ती शादी में बांधे रखना गलत है। इस स्पेशल केस के लिए अभी कोई कानून नहीं बना है। लेकिन कोर्ट के विवेक के आधार पर हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13 के तहत, इसे डाइवोर्स का एक आधार मान लिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने शादी के अपरिवर्तनीय टूटने की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत आर्डर किया कि शादी का अपरिवर्तनीय टूटना अब डाइवोर्स का एक वैलिड आधार है। सुप्रीम कोर्ट समझता है कि अगर कपल की शादी इमोशनली टूट गयी है और उसके वापस जुड़ने की कोई संभावना नहीं है, तो डाइवोर्स एक वैलिड सोल्युशन हो सकता है।

इसे भी पढ़ें:  वर्किंग वाइफ क्या डाइवोर्स के बाद मेंटेनेंस पाने की हकदार है?

(4) अडल्ट्री अब दंडनीय नहीं:-

सुप्रीम कोर्ट ने एक केस की कार्यवाही के दौरान यह आर्डर किया कि अडल्ट्री अब दंडनीय नहीं है, लेकिन इसके आधार पर अभी भी डाइवोर्स ले सकते है। यह पहले दंडनीय था। लेकिन कोर्ट का मानना है कि अडल्ट्री करने वाले मैरिड पार्टनर को या वाइफ के लवर को सज़ा देने से भी शादी को बचाया नहीं जा सकता है। इसीलिए कोर्ट ने अडल्ट्री लॉ में से दंड वाले प्रावधान को ख़त्म कर दिया और सिर्फ डाइवोर्स के लिए इसे एक वैलिड आधार माना।

(5) तीन तलाक की असंवैधानिक:- 

मुस्लिम कानून मे अभी भी तीन तलाक की प्रथा का पालन किया जाता है। लेकिन मुस्लिम महिलाओं के लिए यह गलत साबित हुआ है। क्योंकि केवल तीन बार तलाक़ कहना डाइवोर्स का आधार नहीं हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर विचार किया और तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया है। तर्क यह है कि तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। यह बिल अभी पास नहीं हुआ है। लेकिन इसके पास होने के बाद, मुसलमानों का डाइवोर्स तीन तलाक से नहीं बल्कि कानून की प्रोसीजर से किया जायेगा।

(6) क्रिस्चन डाइवोर्स लॉ:- 

अब तलाक़ अधिनियम, 1869 की धारा 18 के तहत केवल सिविल कोर्ट्स के पास ही कपल की डाइवोर्स की डिक्री जारी करने की पावर है। अब चर्च ट्रिब्यूनल से मिला डाइवोर्स कानूनी रूप से वैध नहीं है। आर्डर के अनुसार, कोई भी पर्सनल लॉ देश के कानून की जगह नहीं ले सकता है। अब पर्सनल लॉ कोर्ट्स की पावर्स को छीन नहीं सकते है। अब अगर सिर्फ पर्सनल लॉ से डाइवोर्स लेने के बाद व्यक्ति किसी और से शादी करता है। तो यह दूसरी शादी मानी जाएगी। यह आर्डर क्रिस्चन धर्म के कपल्स को भी कवर करता है।

Social Media