डाइवोर्स लेने के लिए, लंबे समय का सेपरेशन एफिडेविट काफी है।

डाइवोर्स लेने के लिए, लंबे समय का सेपरेशन एफिडेविट काफी है।

राजू सिंह v ट्विंकल कंवर के केस में, हस्बैंड द्वारा हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13-बी के तहत फाइल की गयी जॉइंट पिटीशन को फैमिली कोर्ट ने खारिज कर दिया था। लेकिन, हस्बैंड ने फैमिली कोर्ट के इस फैसले को चुनौती राजस्थान हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। राजस्थान हाई कोर्ट के जज विजय बिश्नोई ने डाइवोर्स के लिए 6 महीने की दी जाने वाली कूलिंग ऑफ पीरियड को हटाने की एप्लीकेशन को खारिज वाले फैमिली कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया है। ऐसा इसीलिए किया गया क्योंकि इसको साबित करने के लिए कोई लीगल डाक्यूमेंट्स नहीं है। हाई कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट के आर्डर को सही नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि दोनों पार्टीज़/पोर्ट्नर्स ने अपने एफिडेविट में पहले ही अपना बयान दे दिया था कि वह एक फिक्स टाइम पीरियड से अलग रह रहे हैं।

कोर्ट ने अमरदीप सिंह v हरवीन कौर, 2017 के केस के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट पर विचार करते हुए  कहा कि जब दोनों पार्टियों ने पहले ही शपथ पत्र पर एफिडेविट के द्वारा कहा है कि दोनों पार्टनर्स जुलाई 2018 से अलग-अलग रह रहे हैं, तो लोअर कोर्ट का केवल कुछ लीगल डाक्यूमेंट्स की कमी के चलते कूलिंग पीरियड की एप्लीकेशन को खारिज करना गलत है।

इसी तरह के एक अन्य केस में भी दिल्ली हाई कोर्ट ने डाइवोर्स के लिए पार्टियों की आपसी सहमति के बाद कूलिंग ऑफ पीरियड को माफ़ कर दिया था, क्योंकि महिला जो अपने हस्बैंड से अलग रह रही थी, उसे एक एनआरआई से शादी करने का फैसला किया था, जो की सिर्फ एक लिमिटेड टाइम पीरियड के लिए भारत में था। 

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इस कपल ने जुलाई 2017 में शादी की थी और अक्टूबर 2017 से अलग रहने लगे। उन्होंने पहले प्रस्ताव/मोशन के बाद फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और 6 महीने के कूलिंग ऑफ पीरियड की छूट देने के लिए एक एप्लीकेशन फाइल की।

महिला ने हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13-बी के तहत फैमिली कोर्ट में छह महीने की कूलिंग पीरियड की छूट देने की एप्लीकेशन फाइल की, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसके बाद महिला ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जज प्रतीक जालान ने कहा कि कूलिंग ऑफ पीरियड कपल के बीच सुलह कराने के लिए आखिरी मौके के तौर पर दिया जाता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पार्टनर्स जल्दबाजी में कोई गलत फैसला ना लें। 

हालांकि, प्रेजेंट केस में, कपल के दोबारा साथ रहने की या उनके रिश्ते सही होने की कोई पॉसिबिलिटीज़ पर विचार नहीं किया जा सकता है क्योंकि दोनों पार्टनर्स अक्टूबर 2017 से पहले ही अलग-अलग रह रहे है। मतलब कपल को अलग रहते हुए 18 महीने पहले ही बीत चुके है। 

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हिंदू मैरिज एक्ट का सेक्शन 13 बी:

इस एक्ट के प्रोविजन्स के तहत आपसी सहमति से डाइवोर्स लेने या शादी के बंधन से आज़ाद होने के लिए दोनों पार्टीज़ एक साथ इस आधार पर एप्लीकेशन फाइल कर सकते है कि वह एक साल या उससे ज्यादा समय से अलग रह रहे हैं और शादी को ख़त्म करना चाहते है। 

आपसी सहमति से डाइवोर्स के लिए विचार किए जाने वाले पॉइंट्स:

  • दोनों पार्टनर्स पूरी तरह से अलग हो चुके हैं और सुलह की कोई पॉसिबिलिटी नहीं है। साथ ही, शादी अपरिवर्तनीय/इररेवोकेबली रूप से टूट गई है।
  • दोनों पार्टनर्स एक साल से ज़्यादा टाइम से अलग-अलग रह रहे हैं। 
  • दोनों पार्टनर्स ने अपनी मर्जी से अपने विवादों को सुलझाने और अपने रास्ते अलग करने का फैसला किया है।
  • मेंटेनेंस, चाइल्ड कस्टडी आदि जैसे मैटर्स से रिलेटेड कोई विवाद नहीं बचा है।
  • प्रेजेंट पिटीशन फाइल करने के लिए, पार्टनर्स की सहमति किसी प्रकार की धोखाधड़ी, ज़ोर-ज़बरदस्ती, लालच या गलत प्रभाव से नहीं ली होनी चाहिए।
  • आपस में सहमत होने चाहिए कि किसी भी पार्टनर द्वारा फाइल की गयी कोई भी एप्लीकेशन, कम्प्लेन या केस उनके द्वारा वापस ले लिया जाएगा।
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आपसी सहमति से डाइवोर्स लेने से पार्टीज़ गैर-ज़रूरी मुकदमेबाजी में नहीं पड़ते, साथ ही पार्टनर्स के बीच कटुता और शोषण को भी नज़रअंदाज किया जा सकता है।

लीड इंडिया फैमिली लॉ, डाइवोर्स, मेंटेनेंस, डोमेस्टिक वायलेंस, चाइल्ड कस्टडी आदि से रिलेटेड केसिस को सॉल्व करने वाले एक्सपीरिएंस्ड लॉयर्स प्रदान करता है।

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