किसी को क्रिमिनल लायबिलिटी के लिए, कंपनी का पार्टनर होने की वजह से दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिलीप हरिरामनी v/s बैंक ऑफ बड़ौदा के केस के दौरान कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट के सेक्शन 138 के तहत चेक बाउंस होने पर किसी व्यक्ति पर क्रिमिनल लायबिलिटी, सिर्फ इसलिए नहीं लगाई जा सकती क्योंकि वह भी लोन लेने वाली कम्पनी का एक पार्टनर है या वह उस …