कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति (वेंकटेश) और अन्य (उसके परिवार) के खिलाफ दर्ज हुयी एक FIR को रद्द करते हुए कहा कि शादी के वादे का पालन नहीं करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के तहत धोखाधड़ी का अपराध नहीं माना जाएगा।
केस क्या है:-
3 मई, 2020 को एक महिला ने राममूर्ति नगर के पुलिस स्टेशन में आरोपी वेंकटेश के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 506 के साथ धारा 34 के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी। शिकायतकर्ता महिला ने वेंकटेश पर यह आरोप लगाया गया था, कि शिकायतकर्ता और वेंकटेश एक रिलेशन में थे। वेंकटेश ने शिकायतकर्ता से शादी करने का वादा किया था। लेकिन बाद में, वेंकटेश ने शिकायतकर्ता को छोड़ दिया और किसी अन्य महिला से शादी कर ली है।
इसके बाद, वेंकटेश और अन्य(वेंकटेश के परिवार के लोग) ने कोर्ट में एक पिटीशन फाइल की थी। जिसे न्यायमूर्ति ”के नटराजन” ने अनुमति दी। इस पिटीशन में जज ने कहा की, “महिला के पास ऐसा कोई प्रूफ नहीं है, जिससे यह साबित हो की वेंकटेश का कोई धोखाधड़ी करने का आपराधिक इरादा है। जिसकी वजह से उसने महिला को शादी करने का वादा किया और बाद में वादा तोड़ दिया।”
वेंकटेश और अन्य पिटीशनर्स की तरफ से एडवोकेट एन एस श्रीराज गौड़ा ने भी तर्क दिया कि “केवल शादी का वादा करके और उससे शादी नहीं करना आईपीसी की धारा 415 के अनुसार धोखा नहीं कहा जा सकता है। एफआईआर केवल वेंकटेश और अन्य पिटीशनर्स को परेशान करने के लिए दर्ज की गई है।
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कोर्ट का निष्कर्ष:-
कोर्ट ने शिकायतकर्ता महिला की एफआईआर पर गौर किया और कहा कि शिकायतकर्ता महिला ने आरोपी/पीटीशनर्स(वेंकटेश और अन्य) के खिलाफ एफआईआर फाइल की है कि पेटिशनर नंबर 1(वेंकटेश) को शिकायतकर्ता महिला से प्यार हो गया था और वेंकटेश ने उससे शादी करने का वादा भी किया था। लेकिन वेंकटेश, शिकायतकर्ता महिला से शादी करने में सफल नहीं हुआ और उसने किसी अन्य से शादी कर ली और अन्य पिटीशनर्स(परिवार) ने पीटीशनर नंबर 1(वेंकटेश) को किसी अन्य महिला से शादी करने में मदद की है।
साथ ही “एफआईआर को पढ़ कर पता लगता है कि यह एफआईआर आईपीसी के सेक्शन 415 और 420 के किसी भी हिस्से को आकर्षित नहीं करती है। महिला द्वारा की गयी शिकायत के लिए आरोपी आईपीसी के सेक्शन 415 और 420 के तहत दोषी नहीं है।
कोर्ट ने “मद्रास हाई कोर्ट की जजमेंट का उदहारण” दिया। ये जजमेंट के.यू प्रभु राज V/S पुलिस उप निरीक्षक, ए.डब्ल्यू.पी.एस. के केस की थी। इस केस में यह कहा गया था कि “सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन करना, धोखाधड़ी के लिए किसी भी क्रिमिनल केस को जन्म नहीं दे सकता है, जब तक कि धोखाधड़ी या बेईमानी का इरादा किसी भी लेन-देन की शुरुआत में ना दिखाई दे। और उस समय बेईमानी का इरादा न दिखे जब अपराध किया गया है।” ऐसा ही एक और सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट एस.डब्ल्यू.पालनितकर और अन्य V/S बिहार राज्य और अन्य के केस में भी यही कहा गया था की कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन करना बेईमानी नहीं मानी जाएगी, जब तक की शुरुवात में उनका ऐसा कोई इरादा ना दिखे।
इसके बाद, कर्नाटक हाई कोर्ट ने वेंकटेश और अन्य के खिलाफ दर्ज हुयी FIR को रद्द कर दिया और कहा कि इस तरह का केस, जिसमे पीटीशनर्स के खिलाफ कार्यवाही या जांच जारी रखना, कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इसलिए, इसे रद्द किया जा सकता है।”