क्रिमिनल कम्प्लेन क्या है?
आपराधिक प्रक्रिया संहिता शब्द ‘शिकायत’ या कम्प्लेन को एक मजिस्ट्रेट के सामने मौखिक या लिखित रूप से लगाए गए किसी भी आरोप के रूप में परिभाषित करती है। आम भाषा में शिकायत वह होती है जिसे सही कराने के लिए या कुछ बदलावों के लिए एक व्यक्ति द्वारा मजिस्ट्रेट के सामने अपनी भाषा में रखा जाता है। और इस संहिता के तहत उस शिकायत की कार्रवाई की जाये। लेकिन इसमें पुलिस रिपोर्ट शामिल नहीं होती है।
सेक्शन 190 के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा विचाराधिकार
‘संज्ञान’ या विचाराधिकार का मतलब सूचना होता है और अपराधों का संज्ञान लेने का मतलब है किसी अपराध के किए जाने के बारे में हर प्रकार की सूचना जानकारी या जागरूकता प्राप्त करना। संज्ञान शब्द का मतलब किसी केस की न्यायिक सुनवाई होता है। केस को फाइल करने और केस में आगे बढ़ने से पहले न्यायिक अधिकारी को अपराध का संज्ञान यानि सूचना लेनी होती है। संज्ञान लेने में किसी प्रकार की फॉर्मल या औपचारिक कार्रवाई शामिल नहीं होती है, लेकिन यह एक मजिस्ट्रेट के कानूनी कार्यवाही के उद्देश्य से किसी अपराध के केस में दिमाग लगाने से संबंधित होता है।
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सेक्शन 200 के तहत कम्प्लेन की जांच
जिस मजिस्ट्रेट के पास कम्प्लेन फाइल की गयी होती है, वह उस केस की प्रोसीडिंग्स को आगे बढ़ाने से पहले या कोई भी फैसला करने के लिए सबसे पहले उस की गयी कम्प्लेन की जांच करते है। मजिस्ट्रेट शिकायत करने वाले व्यक्ति और शपथ पर नाम लिखे गवाहों की भी जांच करते है। कपालिन के अंदर बताई गयी हर छोटी बड़ी बात की भी जांच की जाती है। सभी जांच पूरी होने के बाद एक रिपोर्ट में लिखित रूप से इसे दर्ज किया जाता है। इसके बाद, उस रिपोर्ट पर शिकायत करने वाले व्यक्ति, गवाहों और मजिस्ट्रेट के भी साइन कराये जाते है। हालाँकि इसमें यह शर्त भी है कि जब कम्प्लेन लिखित में की जाती है, तो मजिस्ट्रेट को शिकायत करने वाले व्यक्ति और गवाहों की जांच करने की जरूरत नहीं होती है।
मजिस्ट्रेट द्वारा आर्डर नहीं
सीआरपीसी के सेक्शन 201 के तहत मजिस्ट्रेट पूरे केस की जानकारी या संज्ञान दोबारा देने का आर्डर दे सकता है। लेकिन यह अधिकार कुछ ही कोर्ट्स के पास होता है। सभी कोर्ट को यह अधिकार नहीं दिया गया।
संज्ञान लेने के लिए सक्षम नहीं
अगर फाइल की गयी कम्प्लेन किसी ऐसे मजिस्ट्रेट या जज के समक्ष फाइल की गयी है जो अपराध का संज्ञान लेने के लिए सक्षम नहीं है या जिसके पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है, तो वह:
अगर कम्प्लेन लिखित रूप से फाइल की गयी है, तो उसे उचित कोर्ट के सामने प्रस्तुत करने के लिए इस कम्प्लेन की पूरा मीनिंग एक अनुलेखन के साथ दी जनि चाहिए।
अगर कम्प्लेन लिखित रूप से फाइल नहीं की गयी है, तो कम्प्लेन करने वाले व्यक्ति को उचित कोर्ट में निर्देशित करना जरूरी होता है।
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