क्या मजिस्ट्रेट एक गैरकानूनी सभा को डायरेक्टली ख़त्म कर सकता है?

क्या मजिस्ट्रेट एक गैरकानूनी सभा को डायरेक्टली ख़त्म कर सकता है

सी.आर.पी.सी. के तहत गैर कानूनी सभा के निपटान की मजिस्ट्रेट की शक्तियों के बारे में जानने से पहले यह जानना होगा कि गैरकानूनी सभा क्या होती है? 

गैरकानूनी सभा 5 या उससे अधिक लोगों की वह सभा होती है, जिसका मुख्य रूप से उद्देश्य आम जनता में अशांति का माहौल बनाना होता है। इसलिए देश में शांति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए गैरकानूनी सभा का निपटारा किया जाता है। जिसके लिए कार्यकारी मजिस्ट्रेट को कुछ खास शक्तियां दी जाती है। जो इस प्रकार है

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मजिस्ट्रेट की शक्तियां

  1. कोई भी कार्यकारी मजिस्ट्रेट ऐसे किसी भी गैर कानूनी सभा को भंग करने का आदेश दे सकता है, जिसके कारण समाज में अशांति या भय का माहौल उत्पन्न हो।  यदि कोई सभा आदेश के पश्चात भी बंद नहीं होती है, तो मजिस्ट्रेट अपने निम्नलिखित अधिकारों का प्रयोग कर सकता है:-
  2. वह सभा को बलपूर्वक भंग करवा सकता है।
  3. आवश्यकता के अनुरूप सशस्त्र बल के व्यक्ति या अन्य किसी आमजन की सहायता भी ली जा सकती है।
  4. जरूरत पड़ने पर सभा के सदस्यों को गिरफ्तार या फाइन किया जा सकता है।
  5. ऐसे मामलों में आईपीसी की धारा 144 एक अतिरिक्त खंड के रूप में कार्य करती है। जिसके अनुसार यदि कोई भी व्यक्ति, किसी भी ऐसे घातक हथियारों के साथ एक गैर कानूनी सभा में शामिल है, जिस हथियार से मौत होने की आशंका हो, तो उसे 2 साल की कैद या जुर्माना या फिर दोनों की सजा हो सकती है।
  6. अति आवश्यक मामलों में सीआरपीसी की धारा 144 लागू की जाती है। जिसके अनुसार किसी स्थिति में, किसी खतरे की तत्काल रोकथाम के लिए तुरंत कार्यवाही करना आवश्यक हो। धारा 144 को अधिकतम 60 दिनों तक ही लगाया जा सकता है। यदि राज्य सरकार को इंसानी जीवन के खतरे या दंगे होने की आशंका लगती है, तो उस स्थिति में इस अवधि को बढ़ाकर अंतिम 6 माह तक किया जा सकता है।
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धारा 102 दंड संहिता प्रक्रिया क्या है

सीआरपीसी की धारा 102 के अंतर्गत किसी भी पुलिस अधिकारी की शक्ति का प्रावधान किया गया है। जिसके अंदर वह किसी की संपत्ति को जप्त कर सकता है।

परंतु इसके लिए कुछ शर्तें भी इस धारा के अंतर्गत बताई गई है –

  1. कोई भी पुलिस अधिकारी किसी भी संपत्ति को केवल तभी जब्त कर सकता है जब, उसके चोरी होने का, किसी अन्य के होने का, या फिर उसके किसी संदेहास्पद या अपराध में शामिल हो।
  2. जो भी अधिकारी ऐसी संपत्ति को ज़ब्त करता है, उसे इस जब्ती की सूचना तुरंत अपने थाना प्रभारी को या उसके उच्च अधिकारी को देनी होती है।
  3. उस क्षेत्र के ऑफिसर को तुरंत ही जब्ती की रिपोर्ट उस अधिकार क्षेत्र के मजिस्ट्रेट को करनी होगी। साथ ही उसे उस संपत्ति को कोर्ट में जमा करना होता है।परंतु यदि वह कोर्ट तक ले जाने लायक संपत्ति नहीं है, तो उसे किसी की हिरासत याने की कस्टडी में देकर, आवश्यकता के अनुरूप न्यायालय के समक्ष पेश करना होता है। साथ ही न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश, के तहत उस संपत्ति के निपटान या फिर बोंड की वचनबद्धता के अनुरूप उसका निष्पादन किया जाता है।

आईपीसी की धारा 102 क्या है

आईपीसी यानि की इंडियन पेनल कोड की धारा 102 व्यक्ति को शरीर की निजी रक्षा के अधिकार देती है। इस धारा के अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति को केवल ऐसा लगता है कि किसी अन्य के प्रयास या धमकी से शरीर को खतरा  है। चाहे अपराध किया गया हुआ हो,या नहीं, तब भी यह धारा हमें हमारी शरीर की रक्षा का अधिकार देती है।

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