क्या कोई पुलिस सब-इंस्पेक्टर क्रिमिनल केस में इन्वेस्टीगेशन करके चार्जशीट फाइल कर सकता है?

क्या कोई पुलिस सब-इंस्पेक्टर क्रिमिनल केस में इन्वेस्टीगेशन करके चार्जशीट फाइल कर सकता है?

जस्टिस के नटराजन की सिंगल जज बेंच के अनुसार, “पुलिस सब-इंस्पेक्टर और इंस्पेक्टर दोनों पुलिस स्टेशन के इन्चार्ज हैं, प्रॉपर इन्वेस्टीगेशन करने के बाद फाइल की हुई चार्ज शीट में कोई कमी नहीं है।”

केस के फैक्ट्स: 

छह महीने से ज्यादा जेल में रह रहे पिटीशनर्स ने आईपीसी के सेक्शन 306 (अबेटमेंट ऑफ़ सुसाइड) के साथ सेक्शन 34 (कॉमन इंटेंशन) के तहत अपने अगेंस्ट फाइल हुई एफआईआर को रद्द करने के लिए एक एप्लीकेशन फाइल की।

पिटीशनर्स के एडवोकेट्स ने तर्क देते हुए कहा कि पुलिस इंस्पेक्टर ही पुलिस स्टेशन का एसएचओ है और इसलिए सब-इंस्पेक्टर, जो की लोअर रैंक पर है, उसे चार्ज शीट फाइल करने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिए, चार्ज शीट को रद्द किया जाना चाहिए क्योंकि यह एक पुलिस इंस्पेक्टर द्वारा फाइल की गयी थी जिसके पास इसे फाइल करने का कोई अधिकार नहीं था।

पब्लिक प्रोज़िक्यूटर द्वारा यह तर्क दिया गया कि सीआरपीसी के सेक्शन 154 और सेक्शन 156 के अनुसार, कोई भी कोर्ट पुलिस ऑफ़िसर की इन्वेस्टीगेशन पर सवाल नहीं उठा सकता और ना ही यह कह सकता है कि इन्वेस्टीगेशन किसे करनी चाहिए। इस केस में सब-इंस्पेक्टर ने ही चार्जशीट फाइल की थी, क्योंकि उसे ही कंप्लेंट मिली थी।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

जजमेंट:

  • कोर्ट ने जजमेंट में यह ऑब्ज़र्व किया कि फर्टीको मार्केटिंग एंड इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड और अन्य v सीबीआई और अन्य के केस में, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना कि पुलिस द्वारा फाइल की गयी चार्जशीट में पाई गई किसी भी गलती या इरेगुलेरिटी या फिर उसके बेस पर कोर्ट द्वारा की गई कोई भी ऑब्जरवेशन के आधार पर केस में आगे होने वाली कार्यवाही को रद्द नहीं किया जाएगा।
  • साथ ही एच.एन. ऋषबुद v दिल्ली राज्य के केस में, यह माना गया था कि अगर इस तरह की इन्वेस्टीगेशन के बेस पर कोर्ट द्वारा कोई फैसला लिया जाता है, तो ऐसे फैसले को तब तक रद्द नहीं किया जाएगा, जब तक कि यह साबित नहीं हो जाता कि इन्वेस्टीगेशन में इस तरह की इल-लीगल चीजें हुई है, जिसने न्याय का गला घोंट दिया है।
  • साथ ही, पब्लिक प्रोज़िक्यूटर/गवर्नमेंट लॉयर द्वारा सेक्शन 154 से 156 के बारे में दिए गए रेफ्रेंस के बारे में, कोर्ट ने कहा कि, प्रोविज़न्स में यह नहीं बताया गया है कि चार्जशीट कौन फाइल करेगा, उसमे सिर्फ इतना ही लिखा है कि यह काम एक पुलिस ऑफ़िसर का हैं, “इसका मतलब यह अच्छी तरह से सुलझा हुआ है कि पुलिस स्टेशन के इन्चार्ज में पुलिस इंस्पेक्टर, सब-इंस्पेक्टर, असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर और एक हेड कांस्टेबल शामिल होते हैं, जो पुलिस कांस्टेबल की रैंक से नीचे का नहीं है।
  • कोर्ट ने कर्नाटक पुलिस मैनुअल को भी रेफर किया कि मैनुअल के अनुसार, सब-इंस्पेक्टर्स को भी चार्जशीट फाइल करने का अधिकार है क्योंकि वह पुलिस स्टेशन के इन्चार्ज भी हैं।
इसे भी पढ़ें:  लीगल नोटिस क्या होता है? लीगल नोटिस कैसे बनायें

लीड इंडिया एक्सपेरिएंस्ड लॉयर्स की एक बड़ी लिस्ट देता है जिनके पास क्रिमिनल ओफ्फेंसिस से रिलेटेड मैटर्स में स्पेशलाइजेशन है और वह आपके मैटर से रिलेटेड हेल्प के साथ-साथ गाइडेंस भी प्रदान कर सकते हैं।

Social Media