रिश्तेदार के बच्चे को कानूनी रूप से कैसे गोद लिया जा सकता है?

रिश्तेदार के बच्चे को कानूनी रूप से कैसे गोद लिया जा सकता है?

गोद लेना बहुतों के लिए आशा की एक नई किरण है। यह कई लोगों के जीवन में प्यार और परिपूर्णता को जोड़ता है। एक बच्चे और उसके बायोलॉजिकल माता-पिता के बीच का रिश्ता और प्यार बहुत शक्तिशाली और पवित्र होता है। वहीं दूसरी तरफ जिस बच्चे को एक कपल द्वारा गोद लिया जाता है उनमे भी बहुत प्यार होता है, ऐसे कपल्स या पेरेंट्स अपने बच्चो को एक्स्ट्रा लाड़-प्यार से पालते है और अपने बच्चों की बहुत अच्छे से परवरिश करते है, ऐसे पेरेंट्स आमतौर पर इसीलिए होता है क्योंकि उनको बहुत ही मुश्किल से मिला है। यह एक सच्चा उदाहरण है कि आपको एक परिवार होने के लिए जैविक रूप से संबंधित होने की जरूरत नहीं है। 

गोद लेना बेघर बच्चे के लिए फायदेमंद है, कोई भी बच्चा बिना परिवार के होने की दुर्दशा से गुजरने का हकदार नहीं है। गोद लेना एक कपल का पर्सनल मैटर है। एक बच्चे को गोद लेने की कई वजह हो सकती हैं, यह किसी कपल की शादी या ज़िंदगी को पूरा करने या उन्हें खुशियाँ देने का तरीका या फिर उस बेघर और अनाथ बच्चे को बेहतर भविष्य देने की तरफ पहल करना है।

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भारत में गोद लेने से संबंधित कानून

भारत में शादी, डिवोर्स, गोद लेना आदि जैसे काम पर्सनल लॉ के दायरे में आता है। भारत में गोद लेने को नियंत्रित करने वाला कोई एक कानून नहीं है। यह अलग-अलग धर्मों और सिचुएशन के आधार पर नियंत्रित किया जाता है। गोद लेने के कानून अलग-अलग एक्ट्स और दिशानिर्देशों द्वारा शासित होते हैं। भारत में इससे संबंधित दो कानून है – 

  1. हिन्दू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 
  2. गार्डियन एंड वार्डस एक्ट
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हिंदी एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट 

1956 में लागू हुआ यह एक्ट भारत के हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख लोगों पर बच्चे को गोद लेने के लिए लागू होता है। बहरत में रहने वाला कोई भी हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख इस एक्ट के एक्ट के तहत बच्चे को गोद ले सकता है। हालाँकि, यह पूरा प्रोसेस (CARA) के नियमों के अनुसार ही किया जाना चाहिए। (CARA) एक ऐसी संस्था है जो भारत में बच्चो को गोद लेने से संबंधित नियमो और कानूनों को बनाती है व उनकी देखभाल करती है और इस तरह के सभी प्रोसेस संभव कराती है। 

गार्डियन एंड वार्डस एक्ट 

1890 में लागू हुआ अभिभावक और वार्ड एक्ट का सेक्शन 7 संरक्षकता के लिए आदेश पास करने के लिए कोर्ट को शक्ति प्रदान करती है। इस सेक्शन में कहा गया है कि कोर्ट अपने अनुसार नाबालिगों के कल्याण के लिए उनके अभिभावक नियुक्त कर सकती है। अभिभावक नाबालिग और उसकी प्रॉपर्टी की देखभाल कर सकता है। कोर्ट के पास किसी भी अभिभावक को हटाने की शक्ति भी है।

मुस्लिम, पारसी, ईसाई और यहूदी व्यक्तिगत कानूनों के तहत गोद लेने के लिए कोई औपचारिक प्रावधान नहीं बना हैं। इसलिए वह लोग भी 1890 के गार्जियन एंड वार्ड्स एक्ट के तहत कोर्ट्स का दरवाजा खटखटा सकते हैं। हालांकि, गार्डियन और वार्ड एक्ट एक व्यक्ति को बच्चे का अभिभावक बनने की अनुमति देता है। यह एक्ट माता-पिता को केवल एक बच्चे का “अभिभावक” बनाता है। हालाँकि, वह बच्चा एक बायोलॉजिकल बच्चे के बराबर आनंद नहीं लेता है और ना ही बच्चे को कस्टडी में या परिवार का नाम लेने का अधिकार होता है।

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