क्या आर्बिट्रेशन द्वारा मामला सुलझाने के बाद भी केस दायर हो सकता है?

क्या आर्बिट्रेशन द्वारा मामला सुलझाने के बाद भी केस दायर हो सकता है?

हां, किसी भी मामले को आर्बिट्रेशन द्वारा सुलझाने का क्लॉज होने के बावजूद, कोर्ट में केस दायर किया जा सकता है। मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम , 1996 के किसी भी मामले में यदि दोनों पक्ष सहमत हों तो आर्बिट्रेशन द्वारा मामला सुलझाया जा सकता है । लेकिन यदि आर्बिट्रेशन के तहत सुलझाए गए मामले में कोई पज्ञ असंतुष्ट हैं तो वह आगे की कार्यवाही के लिए न्यायालय जा सकता है और न्यायालय को यदि उचित लगा तो आगे केस भी दायर किया जा सकता है।

आर्बिट्रेशन क्या है ?

आर्बिट्रेशन एक लीगल प्रासेस है जिसमें दो पक्षों के बीच विवादों को एक तीसरा पक्ष (आर्बिट्रेटर या आर्बिट्रेशन पैनल) द्वारा सुलझाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य अदालत की लंबी कार्यवाही की बजाय विवाद को अपने विवेक और लीगल आर्गुमेंट के जरिए तेज़ी से सुलझाना है। आर्बिट्रेशन प्रक्रिया आमतौर पर संविधान के तहत अदालत के बाहर होती है और दोनों पक्षों की सहमति पर आधारित होती है।

हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि आर्बिट्रेशन का क्लॉज से न केवल कानूनी प्रक्रिया को सहायता मिलती है, बल्कि दोनों ही पक्षों को भी एक संतोष जनक उपाय के रूप में प्राथमिकता देता है। इसका अर्थ है कि पक्षों को आर्बिट्रेशन प्रक्रिया का उपयोग करने के लिए सहमत होना चाहिए और वे आर्बिट्रेशन नियमों और शर्तों का पालन करेंगे।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

हालांकि कानूनी प्रक्रिया के तहत यदि कोई भी पक्ष आर्बिट्रेशन के प्रासेस से संतुष्ट नहीं हैं अथवा उसे आर्बिट्रेशन द्वारा दिए गए न्याय पर भरोसा नहीं है अथवा संदेह है तो ऐसी स्थिति में  वह पक्ष कोर्ट में जाकर अपने विवाद को सुलझाने के लिए एक केस दायर कर सकता है। यदि कोर्ट को आर्बिट्रेशन प्रक्रिया में कोई गड़बड़ लगती तो कोर्ट अपने विवेक के आधार पर संशोधन कर सकता है, आर्बिट्रेशन प्रक्रिया को रद्द कर सकता है, या उसके निर्णय को अस्वीकार कर सकता है।

इसे भी पढ़ें:  लीगल नोटिस का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?

आर्बिट्रेशन केवल न्यायालय द्वारा सुनाए जाने वाले निर्णय में एक सीढ़ी का काम करता है । 

यदि दोनों पक्ष आर्बिट्रेशन के तहत मामले को सुलझाना चाहते हैं तो उनके लिए अदालत की लंबी कार्यवाही में लगने वाला समय, धन आदि की बचत हो जाती है ‌। वहीं दोनों ही पक्षों के पास अपनी बात रखने की अधिक स्वतंत्रता होती है ‌। 

हालांकि आर्बिट्रेशन के तहत मामलों को सुलझाए जाने की अपनी कुछ सीमाएं हैं कुछ मामले जैसे कि दिवालियापन संबंधी याचिकाएं,  गंभीर अपराध आदि मामलों में आर्बिट्रेशन के तहत सुलह कर्ता द्वारा निपटारा किया जाना संभव नहीं है।

इसके अलावा न्यायालयों के पास यह योग्यता है कि वे किसी भी कानूनी मुद्दे पर  अपने विवेक के अनुसार विचार करें और न्यायिक निर्णय दे । न्यायालय के पास आर्बिट्रेशन द्वारा किए गए फैसलों को चेक करने और उनकी समीक्षा करने का अधिकार  हैं। 

किसी भी तरह की कानूनी जानकारी के लिए आज ही लीड इंडिया एंड ला कंपनी से संपर्क करें।

Social Media