क्या कोर्ट द्वारा निर्धारित मेंटेनेंस की रकम को कम कराया जा सकता है?

क्या कोर्ट द्वारा आदेश दिए गए गुज़ारेभत्ते की रकम को कम कराया जा सकता है?

हमारे भारत देश में महिलाओं को बहुत सारे अधिकार दिए गए है। जिनमे से एक गुज़ारा भत्ता या मेंटेनेंस का अधिकार भी है। यह मेंटेनेंस डाइवोर्स केस के दौरान माँगा जा सकता है। साथ ही, एक और परिस्थिति में इसकी मांग की जा सकती है वह है कि अगर दोनों पार्टनर्स का डाइवोर्स हो चुका है लेकिन महिला को केस ख़त्म होने पर कोई एलीमनी मुहैया नहीं कराई गयी है। हालांकि, कुछ सिचुऎशन्स में पत्नी मेन्टेन्स लेने की हकदार नहीं है वह सिचुऎशन्स है –

  • जब दोनों पार्टनर्स का डिवोर्स पत्नी द्वारा अडल्ट्री में रहने की वजह से हुआ है
  • जब पत्नी ने बिना किसी वैध कारण या वैलिड रीज़न अपने पति के साथ रहने से मना कर दिया हो 
  • जब पत्नी बिन वजह ससुराल और पति को छोड़कर चली जाये। 

इन सभी परिस्थितियों में वाइफ किसी भी तरह से अपने पति को मेंटेनेंस देने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है।

भारत के क़ानून में सीआरपीसी के सेक्शन 125 से सेक्शन 128 तक हर एक शादीशुदा व्यक्ति के भरण पोषण या मेंटेनेंस से संबंधित सभी अधिकारों को परिभाषित किया गया है। साथ ही, सीआरपीसी के सेक्शन 127 में मुख्य रूप से, मेंटेनेंस के ऑर्डर्स में होने वाले बदलावों के बारे में विस्तार से बताया गया है।

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सीआरपीसी के सेक्शन 125 में बदलाव 

इसे सीआरपीसी के सेक्शन 127 के तहत बदला जा सकता है। साथ ही, मजिस्ट्रेट द्वारा परिस्थितियों के आधार पर आदेश को भी बदला जा सकता है। इसे क्लेम करने वाले व्यक्ति की सिचुऎशन्स में बदलाव होना जरूरी है। यह बदलाव फाइनेंसियल या किसी पर्टिकुलर सिचुएशन की वजह से हो सकता है। यह मजिस्ट्रेट के विवेक/समझ पर डिपेंड करता है और यह जरूरी नहीं हो सकता है।

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सिविल कोर्ट द्वारा पास किये गए किसी भी आर्डर को मजिस्ट्रेट द्वारा फॉलो किया जायेगा। अगर कोई सिविल कोर्ट कपल को साथ में रहने की इंस्ट्रक्शंस/निर्देश देती है, तो मजिस्ट्रेट द्वारा मेंटेनेंस आदेश को रद्द कर दिया जाएगा।

अगर एक डाइवोर्सी वाइफ दोबारा शादी करती है तो आर्डर जरूर रद्द कर दिया जाता है।

इस इंसिडेंट में, सेक्शन 125 सीआरपीसी के तहत आदेश पास किया गया है, लेकिन महिला कस्टमरी कानूनों के तहत बेनिफिट्स लेती है। 

जजमेंट्स

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने हाल ही में आर्डर दिया था कि जम्मू-कश्मीर के सेक्शन 488 के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा पास किये गए मेंटेनेंस के आर्डर को केवल इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता क्योंकि एक्ज़िक्यूशन की कार्यवाही के पेंडिंग रहने के दौरान हस्बैंड-वाइफ के बीच सेटलमेंट हो गया है।

जस्टिस धर ने कहा कि यह क्लियर कर देना सही होगा कि केवल इसलिए की सेटलमेंट अब काम नहीं कर रही है, मेंटेनेंस के आर्डर को रद्द नहीं किया जा सकता है।

महुआ बिस्वास Vs. स्वागत बिस्वम और अन्य (1998) के केस में, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि जब मेंटेंनेस की कार्यवाही में एक सेटलमेंट हो गया है, तो पहले लिए गए मेंटेंनेस के ऑर्डर्स को रोका जा सकता है, लेकिन पूरी तरह से रद्द नहीं किया जा सकता है। एक बार सेटलमेंट हो जाने पर, मेंटेनेंस के लिए वाइफ द्वारा किये गए क्लेम को एक्टिवेट किया जाना चाहिए ताकि उसे पहले की तरह उसी सिचुएशन में रखा जा सके।

सेक्शन 125 सीआरपीसी के तहत मेंटेनेंस की कार्यवाही का उद्देश्य एक सरल और जल्दी सोल्युशन देना और यह सुनिश्चित करना है कि हस्बैंड द्वारा छोड़ दिए गए वाइफ, बच्चों और पेरेंट्स पूरी तरह से बेसहारा न रह जाये। उनकी बेसिक नीड्स पूरी होती रहे और उनके पास निर्वाह का कोई भी साधन जरूर होना चाहिए।

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लिमिटेशंस

  1. सेक्शन 125 के तहत दिए गए मेंटेनेंस के आर्डर की शर्तों के अनुसार जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए
  2. सेक्शन 128 के तहत मेंटेनेंस के आर्डर के एग्ज़िक्यूशन का क्लेम करने का अधिकार
  3. सेक्शन 125(3) के पहले प्रोविज़न के तहत तय की गयी 1 साल के टाइम पीरियड के अनुसार ख़त्म किया जाना है।

लीड इंडिया में बहुत सारे लॉयर्स हैं जो मैट्रिमोनियल केसिस में आपकी सहायता/हेल्प कर सकते हैं उनकी विशेष रूप से स्पेशलाइजेशन डाइवोर्स मेंटेनेंस के केसिस में ही है वो ऐसे मेंटेनेंस के ऑर्डर्स को आपके फेवर में लाने में मदद कर सकते हैं।

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