अगर एक पार्टनर बिना किसी वैलिड रीज़न के दूसरे पार्टनर को छोड़ देता है तो हिन्दू मैरिज एक्ट के सेक्शन 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली/रेस्टिटूशन के लिए एक सोल्यूशन दिया गया है। बहाली या रेस्टिटूशन का मतलब होता है – अगर एक पार्टनर अपने वैवाहिक घर या ससुराल को छोड़ने का फैसला करता हैं, तो कोर्ट हस्तक्षेप करेंगी और पार्टनर्स को उनके रिश्ते को निभाते हुए वैवाहिक जीवन में लौटने का आर्डर देंगी अगर परित्याग का कोई वैलिड रीज़न नहीं है तो। ऐसी सिचुएशन में विक्टिम पार्टनर वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए अप्लाई कर सकता है। हांलाकि, जो पार्टनर अपने बीच के मतभेदों की वजह से बिलकुल भी एक साथ नहीं रह सकते हैं, वे फैमिली लॉयर्स के माध्यम से आपसी सहमति से डाइवोर्स फाइल कर सकते है।
क्या कोर्ट पार्टनर को बहाली के लिए बाध्य कर सकती हैं :
हां, जब कोर्ट्स को पता होता है कि केस बिना किसी वैलिड रीज़न के पूरी तरह पार्टनर से अलग हो जाने का है तो कोर्ट्स पार्टनर्स को वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए मजबूर कर सकती हैं। इसके अलावा, अगर कोर्ट को यकीन है कि पिटीशनर ने कानूनी और वास्तविक आधार पर कम्प्लेन फाइल की है तो कोर्ट आरसीआर का आर्डर पास कर सकती है।
हालांकि, कोर्ट्स आरसीआर का आर्डर पास नहीं करती है अगर कपल ने शादी की नल्ल एंड वोयड या जुडिशियल सेपरेशन के आर्डर के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
हरविंदर कौर वी. हरमिंदर सिंह चौधरी के केस में, जज ए रोहतगी की बेंच ने कहा था कि हिन्दू मैरिज एक्ट का सेक्शन 9, आर्टिकल 14 और 21 का उल्लंघन करता है, इसलिए इसे शून्य घोषित करते है। आरसीआर एक कपल के बीच सुलह कराने के लिए एक सोल्युशन के रूप में काम करता है।
इसी तरह, टी. सरिता वेंकट V. राज्य के केस में भी यह आर्डर किया गया था कि सेक्शन 9 असंवैधानिक है क्योंकि कानून वाइफ को उनकी मर्जी के बिना जबरदस्ती अपने हस्बैंड के साथ रहने के लिए मजबूर करके उनके प्राइवेसी के अधिकार को छीन लेता है।
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मुस्लिम कानून:
हाई कोर्ट ने सवाल किया कि क्या हस्बैंड के पक्ष में केस करने की अनुमति देना सही होगा, भले ही उसने दूसरी वाइफ से शादी कर ली हो, जबकि पहली वाइफ दूर थी, बस इस आधार पर कि हस्बैंड मुस्लिम था और उसके पर्सनल कानून के तहत उसकी 4 पत्नियां हो सकती थीं।
हालाँकि, वाइफ को अपने हस्बैंड के साथ रहने से इस आधार पर मना करने का अधिकार है कि मुस्लिम कानून एक से ज्यादा शादी करने की अनुमति देता है लेकिन इसे कभी प्रोत्साहित/एनकरेज नहीं किया है।
महिलाएं चल सम्पत्ति नहीं:
महिलाएं गुलाम नहीं है और उसे हस्बैंड के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है और उसे संपत्ति/प्रॉपर्टी का एक टुकड़ा नहीं माना जा सकता है। अलग-अलग कोर्ट्स ने देखा है कि हस्बैंड अपनी वाइफ को मेंटेनेंस का भुगतान करने का हकदार है, जब वाइफ उसके साथ रहने के लिए तैयार नहीं है, भले ही हस्बैंड ने वाइफ के अगेंस्ट आरसीआर ही क्यों ना फाइल की हो क्योंकि कोर्ट्स का मानना है कि आरसीआर हस्बैंड का खेल है जो वाइफ को दिए जाने वाले मेंटेनेंस का भुगतान करने से बचने के लिए खेला जाता है।
एक्सेप्शन्स/अपवाद:
पिटीशनर या कम्प्लेनेंट यह साबित करने के लिए ठोस, कानूनी और वास्तविक सबूत प्रेजेंट करेगा कि हस्बैंड या वाइफ बिना किसी वजह के चले गए और बिना किसी वैलिड आधार के स्वार्थी आधार होने की ज्यादा संभावना है। कभी-कभी पार्टियां मुद्दों में इस हद तक हेरफेर करती हैं कि पेरेंट्स की वजह से, बच्चों को नुकसान होता है और कोर्ट ऐसी सिचुऎशन्स में बच्चे की कस्टडी तय करने में असमर्थ होती है और इसे केवल चाइल्ड कस्टडी लॉयर्स की बुद्धिमत्ता से ही सुलझाया जा सकता है।
फैसला:
कुल मिलाकर आरसीआर को कोर्ट द्वारा बाध्य नहीं किया जा सकता है, इसके बजाय, उन्हें बदला जा सकता है और जरूरी बदलाव करके पास किया जा सकता है। आखिरकार, ऐतिहासिक फैसले में कोर्ट ने कहा है कि वैवाहिक अधिकार आर्टिकल 14 और 21 का उल्लंघन करते हैं। इसके अलावा, यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि केवल परित्याग का मैटर होने पर ही वैवाहिक अधिकारों को लागू किया जा सकता है। अगर नहीं, तो कपल को आपसी सहमति से डाइवोर्स की डिक्री दी जाती है।
हालाँकि, कोर्ट दोनों पार्टनर्स को उनका रिश्ता बचाने के लिए उन्हें एक साल का समय देकर सुलह करने की कोशिश कर सकती है। अंत में, हस्बैंड के लिए अपनी वाइफ के साथ रहने के लिए वैवाहिक अधिकारों को लागू करना तभी वैलिड माना जाता है जब वे इसे साबित करने के लिए ठोस सबूत प्रदान करते हैं।
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