क्या लिव-इन रिलेशनशिप खत्म होने के बाद महिला पार्टनर द्वारा किया गया रेप केस मान्य है?

लिव-इन रिलेशनशिप के बाद क्या महिला पार्टनर रेप केस फाइल कर सकती है?

आजकल देखा जा रहा है कि भारत में भी लिव-इन रिलेशनशिप का कल्चर काफी तेजी से बढ़ रहा है। लोग इसे शादी के लिए एक अल्टरनेटिव ऑप्शन या शादी की तरफ बढ़ाया जाने वाला एक कदम मानने लगे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि भारत में शादी एक जरूरी सामाजिक रीती है। इसके साथ ही, भारत के महानगरीय शहरों में लिव-इन रिलेशनशिप का एक नया कॉन्सेप्ट भी उभर रहा है। हालांकि, ऐसा कोई संहिताबद्ध कानून नहीं है जो लिव-इन रिलेशनशिप को डिफाइन करता हो, लेकिन इसे एक ऐसा रिश्ता कहा जा सकता हैं जिसमें एक लड़का और एक लड़की बिना शादी किये एक कपल की तरह ही एक छत्त के नीचे रहते हैं। 

शादी जैसा रिश्ता – 

सुप्रीम कोर्ट ने कई बार इसे शादी के जैसा ही रिश्ता माना है। इसका मतलब यह है कि अगर कपल लंबे समय से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे है और समाज ने भी उन्हें हस्बैंड वाइफ के रूप में पहचानना शुरू कर दिया है, तो ऐसे केसिस में कपल्स को उन कानूनों का लाभ मिल सकता है जो शादी पर लागू होते हैं। उदाहरण के लिए, महिला पार्टनर अपने पुरुष पार्टनर से मेंटेनेंस लेने का सकती है जैसे कि एक वाइफ अपने हस्बैंड से माँग सकती है। 

हालांकि, लिव-इन रिलेशनशिप पर कोई संहिताबद्ध कानून लागू नहीं किया गया है, यह भारतीय संविधान के आर्टिकल19 (1) (ए) और 21 को अट्रैक्ट करता है, जो एक व्यक्ति के बोलने और स्वतंत्रता के अधिकार के बारे में बात करता है।

कपल्स की सुरक्षा –

राज्य तंत्र द्वारा कोई भी कार्रवाई जो व्यक्तियों की लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की एबिलिटी में हस्तक्षेप करती है, चाहे वह डायरेक्टली हो या इन-डायरेक्टली, वह एक व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करना है। इसके अलावा, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 ने सेक्शन 2 (एफ) के तहत “घरेलू संबंध” के दायरे में लिव-इन रिलेशन्स को भी मान्यता दी है। लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले व्यक्तियों को अब किसी भी प्रकार की घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान की जाती है क्योंकि उनके रिश्ते को रिश्ते जैसा ही माना जाता है।

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सुप्रीम कोर्ट ने लता v. यूपी राज्य, एआईआर 2006 एससी 2522 में यह माना कि एक अडल्ट महिला अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से शादी करने या अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति के साथ रहने के लिए आज़ाद थी। जैसे-जैसे लोग लिव-इन रिलेशनशिप को प्राथमिकता/प्रायोरिटी देने लगे, रेप के झूठे केसिस बढ़ते चले गए। कई केसिस में ब्रेकअप के बाद महिला पार्टनर रेप की झूठी एफआईआर फाइल कराती है। इस रिलेशनशिप में शादी से उल्टा है यहां कपल का अलग होना काफी आसान है।लिव-इन रिलेशनशिप में दोनों पार्टनर्स को एक दूसरे से अलग होने के लिए कोई बाध्यता या लंबी प्रोसेस का सामना नहीं करना होता है। 

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रेप की डेफिनेशन – 

भारतीय दंड संहिता, 1860 (इसके बाद आईपीसी) के सेक्शन 375 के तहत रेप को डिफाइन किया गया है। इसमें कहा गया है कि इन सिचुऎशन्स में माना जायेगा कि एक पुरुष ने एक महिला का “रेप” किया है –

  1. जब एक पुरुष महिला की सहमति से सेक्सुअल रिलेशन्स बनता है लेकिन यह सहमति महिला ने यह मानते हुए दी है कि वह पुरुष उसका हस्बैंड है जबकि पुरुष जानता है कि सच में वह उसका हस्बैंड नहीं है। 
  2. जब महिला के साथ उसकी सहमति से बिना सेक्सुअल रिलेशन्स बनाए जाए। 
  3. जब महिला रिलेशन्स बनाने के लिए इस डर के साथ सहमति दे कि ऐसा ना करने पर उसे या उसके किसी प्रिय व्यक्ति को चोट या जान का खतरा है। 
  4. जब ऐसा करने की सहमति देते समय महिला मन से अस्वस्थ हो या किसी भी तरह मानसिक रूप से बीमार हो। 
  5. जब महिला नशे की वजह से या किसी अन्य मूर्खतापूर्ण या हानिकारक चीज की वजह से सेक्सुअल रिलेशन्स बनाने की प्रकृति और परिणामों/रिजल्ट्स को समझने में असमर्थ/अनेबल है और सहमति देती है।
  6. जब महिला 16 साल की उम्र से काम है चाहे उसकी सहमति हो या ना हो।
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अगर उपर बताई गयी कोई भी सिचुएशन या शर्त पूरी हो जाती है तो यह रेप की श्रेणी/कैटेगरी में आएगा। महिला पार्टनर झूठा रेप केस फाइल कर सकती है लेकिन वह सफल नहीं होगी जब तक ऊपर बताई गई सिचुऎशन्स में से कोई भी शर्त पूरी नहीं होगी। इन शर्तों के अलावा, अगर शादी का झूठा झांसा देकर रिलेशन्स बनाया गया है तो इसे रेप माना जाएगा क्योंकि ऐसी सहमति शादी की गलत धारणा की वजह से दी जाएगी। यह आईपीसी के सेक्शन 90 पैराग्राफ़ 3 के तहत सहमति नहीं होगी।

जैसे-जैसे लिव-इन रिलेशनशिप बनने लगे है, सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे मान्यता देना शुरू कर दिया है। कोर्ट इन केसिस की व्यापक समीक्षा करता है। अगर रेप का झूठा केस फाइल किया गया है, तो इस बात की बहुत ज्यादा संभावना है कि कोर्ट इसे रेप के रूप में नहीं मानेगी अगर यह सहमति से किया गया था।

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