क्या मुस्लिम कपल भी बच्चे गोद ले सकते है?

क्या मुस्लिम कपल भी बच्चे गोद ले सकते है?

भारत की कोर्ट्स ने संविधान के तहत, बच्चे को गोद लेकर माता-पिता बनने के अधिकार को एक मौलिक अधिकार घोषित करने की मांग करने वाली पिटीशन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि परस्पर विरोधी प्रथाओं और मान्यताओं को देखते हुए इस स्तर पर ऐसा आदेश पास नहीं किया जा सकता है।

देश का कानून पर्सनल लॉ से ऊपर है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक भारत के संविधान के तहत सेक्शन 44 में बताए गए यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू नहीं कर दिया जाता, तब तक देश के कानून को किसी भी पर्सनल कानून से ऊपर रखना होगा।

सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने कहा कि बच्चे को गोद लेने का अधिकार देश में रहने वाले सभी व्यक्तियों के पास है और इस अधिकार को सभी धर्मों के पर्सनल लॉ से ऊपर रखा जायेगा। कोई भी पर्सनल लॉ अब इस अधिकार को रोक नई सकेगा। 

कोर्ट ने यह फैसला सामाजिक कार्यकर्ता शबनम हाश्मी द्वारा बच्चा गोद लेने से संबंधित फाइल की गयी एक पिटीशन पर लिया गया है। दरसअल, शबनम हाश्मी ने एक बच्चे को गोद लेने के लिए प्रोसीडिंग्स शुरू की लेकिन केवल उनके धर्म के आधार पर कि वह एक मुस्लिम महिला है उन्हें इस अधिकार से वंचित रखा गया, जिसके जवाब में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन फाइल की थी।

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कौन-कौन बच्चे को गोद ले सकता है?

अभी तक भारत के अंदर बच्चों को गोद लेने का अधिकार केवल हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों तक ही सीमित था। परन्तु अब कानूनी रूप से बच्चा गोद लेने का यह अधिकार मुसलमानों, ईसाइयों, यहूदियों, पारसियों और अन्य सभी समुदायों के लोगों तक भी पहुंच गया है।  

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एक केस के चलते दिल्ली की कोर्ट द्वारा यह मान लिया गया है कि एक व्यक्ति मुस्लिम है और उनके धर्म के शादी करने या गोद लेने जैसे अलग-अलग पर्सनल मैटर्स मुस्लिम धर्म के पर्सनल कानूनों द्वारा ही सुलझाए जाते है सिर्फ इसलिए उसे सामान्य और परोपकारी कानून द्वारा बच्चे गोद लेने जैसे अधिकारों का लाभ उठाने से रोका नहीं जा सकता है।

बच्चे को गोद लेने से जुड़े अन्य केस

बच्चे को गोद लेने से संबंधित एक केस में वकील कौसर खान ने यह तर्क दिया था कि मुस्लिम धर्म के पर्सनल कानूनों में बच्चा गोद लेने की अनुमति नहीं दी गई है। हालाँकि, किशोर न्याय अधिनियम, 2000 (Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2000) के प्रावधानों के तहत, एक मुस्लिम व्यक्ति या कपल भी बच्चे को गोद ले सकते है। जुविनाइल एक्ट के तहत. मुस्लिम कपल को भी बच्चे को गोद लेने का उतना ही अधिकार है जितना किसी और धर्म के लोगों को है। 

इसके अलावा, सेशन कोर्ट के जज धर्मेंद्र राणा ने का भी मानना है कि सिर्फ धर्म के अनुसार मुसलमान होने की वजह से किसी भी व्यक्ति से उसके सामान्य अधिकार नहीं छीने जाने चाहिए। मुस्लिम धर्म के लोगों के पर्सनल मैटर्स का पर्सनल लॉ के तहत फैसला होने की वजह से उनके सामान्य और उदार कानून अधिकार ना देना गलत है। जबकि, किशोर न्याय एक्ट, 2000 के तहत भी उनको कानूनी रूप से यह अधिकार दिया गया है। 

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