क्या भारत में SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम से जमानत मिल सकती है?

क्या भारत में SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम से जमानत मिल सकती है?

भारत सरकार ने 1989 में SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम लागू किया था। यह एक्ट SC और ST के खिलाफ कुछ अपराधों को अत्याचार के रूप में बताता है। यह एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध हैं, इसलिए व्यक्ति को जमानत लेने के लिए कोर्ट में बेल/जमानत एप्लीकेशन सब्मिट करनी होगी। इस एक्ट का उद्देश्य SC/ST के खिलाफ हिंसा को रोकना और अपराधी को दंडित करना है, जिससे उनके समुदाय को ऊपर उठाया जा सके और अछूत की कुप्रथा को ख़त्म किया जा सके।

इस एक्ट के तहत, अगर SC/ST के खिलाफ कोई अपराध किया जाता है, तो पुलिस के पास बिना किसी वारंट के अपराधी को गिरफ्तार करने की पावर है। साथ ही, गिरफ्तारी होने पर अपराधी को कोई जमानत नहीं दी जा सकती है।

इससे पहले, अत्याचार के केसिस में गिरफ्तारी करने से पहले कोई जांच नहीं होती थी। ऐसा इसीलिए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने, बेंच द्वारा दिए निर्देश कि बिना पूर्व अनुमति के गिरफ्तारी नहीं की जा सकती, उस प्रावधान को बदल दिया गया। साथ ही, अग्रिम जमानत के प्रावधानों को भी खारिज कर दिया गया। अग्रिम जमानत से यहां मतलब है, जब किसी व्यक्ति को पहले से डाउट हो की उसके खिलाफ एफआईआर हो सकती है इसीलिए वो पहले ही बेल करा ले। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री ने कहा कि जमानत की अनुमति तभी दी जाएगी जब कोई प्रथम दृष्टया केस ना हो।

एक्ट के तहत  क्या अपराध है?

एट्रोसिटी एक्ट या अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत जमानत के प्रावधानों के बारे में जानने से पहले, एट्रोसिटी एक्ट के तहत कौन से कार्य अपराध के दायरे में आते है, इसके बारे में जानते है। 

  • SC/ST व्यक्ति को अन्य समुदायों के व्यक्तियों द्वारा किसी ना खाने लायक या जहरीले पदार्थ को खाने या पीने के लिए मजबूर करना अत्याचार है। साथ ही, यह एक्ट के तहत दंडनीय भी  है। 
  • SC/ST समुदाय के लोगों के घर के पास मल फेंकना, जिससे उन्हें झुंझलाहट, अपमान या चोट लगे, तो ऐसा कार्य भी अत्याचार करना है और एक दंडनीय अपराध है।
  • SC/ST समुदाय के किसी भी व्यक्ति को उनके चेहरे और शरीर को रंगे हुए बिना कपड़ों के परेड कराना।
  • ज़मीन की खेती से वंचित करना/उनकी भूमि, पानी या अन्य चीज़ों पर अधिकारों से वंचित करना।
  • SC/ST जाति के व्यक्तियों को भीख मांगने या बंधुआ मजदूर के रूप में काम करने के लिए मजबूर करना।
  • एससी/एसटी व्यक्तियों की इच्छा के अनुसार उन्हें मतदान ना करने देना।
  • साफ़ पानी पीने से रोकना। 
  • सार्वजनिक रूप से अपमान करना या बदनाम करना।
  • एससी/एसटी व्यक्तियों को झूठे आपराधिक केस करके जेल कराना।

क्या एट्रोसिटी एक्ट में जमानत मिल सकती है?

जैसा कि ऊपर बताया गया है कि एट्रोसिटी एक्ट के तहत अपराध गैर-जमानती हैं, जब तक कि मजिस्ट्रेट को जमानत के लिए आवेदन नहीं किया जाता है। व्यक्ति बेल के लिए एट्रोसिटी एक्ट के प्रावधानों के तहत किए गए किसी भी अपराध के केस में कोर्ट के सामने जमानत लेने के लिए एप्लीकेशन सबमिट कर सकता है। कोर्ट अपराध पर विचार करेगी। अगर कोर्ट द्वारा जमानत खारिज कर दी जाती है, तो आरोपी को हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का अधिकार है। 

हालही के संशोधन के अनुसार, आरोपी को नियमित जमानत के लिए ‘अत्याचार निवारण अधिनियम’ की धारा 14 (ए) 2 के तहत हाई कोर्ट में आपराधिक अपील फाइल करनी होती है। आप लीड इंडिया के एडवोकेट्स से सलाह ले सकते है, जो इस सिचुएशन में आपके केस के लिए जमानत आवेदन तैयार करके उसे फाइल करेंगे।

न्यायपालिका का रोल:

हितेश वर्मा v/s उत्तराखंड राज्य 2020 के केस में 3 जजों की बेंच ने कहा कि जब तक एससी-एसटी समुदाय के सदस्य को अपमानित करने का एक दुर्भावनापूर्ण इरादा साबित नहीं होता, तब तक एट्रोसिटी एक्ट के तहत किसी कार्य को अपराध नहीं माना जा सकता है। इस प्रकार इस केस में न्यायालय द्वारा यह माना गया कि सदस्य के खिलाफ कोई अपराध नहीं माना गया है, क्योंकि अपमान चार दीवारों के अंदर हुआ है और इसे दंडनीय अपराध मानने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। ऐसे ही 2021 के केस में, जब छावनी पुलिस ने एट्रोसिटी एक्ट के तहत सेना के दो जवानों को गिरफ्तार किया, तो उन्हें कुछ दिनों में जमानत पर रिहा कर दिया गया।

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निष्कर्ष:

ऊपर दिए गए फैक्ट्स के अनुसार, संशोधनों और केस कानून के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि गिरफ्तारी के बाद आरोपी को जमानत दी जा सकती है या गिरफ्तारी से पहले अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया जा सकता है।

बहरहाल, यह एक्ट रीढ़ की हड्डी है जिसका उद्देश्य न केवल हाशिए के समुदायों के खिलाफ हिंसा को रोकना है, बल्कि उन्हें किसी भी अन्य उच्च वर्ग के नागरिक की तरह एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार देना है। जहां तक इसके लागू होने का सवाल है तो यह आज तक अपर्याप्त रहा है। लेकिन, कार्यपालिका को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसके बाद नियमों को ठीक से लागू किया जाए।

किसी भी व्यक्ति के खिलाफ किए जा रहे ऐसे किसी भी अत्याचार को टालने के लिए आप लीड इंडिया के सर्वश्रेष्ठ एडवोकेट्स तक पहुंच सकते हैं, जो ऐसे मामलों से निपटने के लिए विशेषज्ञ सलाह और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

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