क्या LGBT कम्युनिटी के लोग पेरेंट्स बन सकते है?

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आपने अक्सर सुना होगा की माँ बनने का हर औरत का अधिकार होता है। लेकिन क्या ये बात LGBT कम्युनिटी के कपल पर लागू होता है, क्योंकि ऐसे कपल एक लिंग के ही होते है। जैसे लड़का-लड़का या फिर लड़की-लड़की, लेकिन ये लोग कपल की तरह ही रहते है। तो क्या LGBT कम्युनिटी के कपल पेरेंट्स बनने का सुख देख सकते है? जी हाँ, बिलकुल देख सकते है। भारत में LGBT कपल्स के लिए बहुत सारे कानूनी अधिकारों का रास्ता खुला है। इनमे से एक LGBT कम्युनिटी कपल के पेरेंट्स बनने का भी है। लेकिन पहले ऐसा नहीं था।

पहले जब LGBT कम्युनिटी का आपस में शारीरिक सम्बन्ध रखने को अपराध माना जाता था। यह भारतीय दंड सहिता की धारा 377 के तहत आप्रकृतिक सेक्स माना जाता था। इस अपराध की सज़ा में 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती थी।

मौलिक अधिकारों का उल्लंघन:-

लेकिन इस धारा के तहत ऐसे लोगो का गरिमा से रहने या जीने के अधिकार का उल्लंघन हो रहा था। जो की भारत के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है। मौलिक अधिकारों के हिसाब से जो नागरिक जैसे रहना चाहता है ,वैसे रह सकता है। सभी को अपने हिसाब से जीने की पूरी आज़ादी है। 

समय बदला LGBT कम्युनिटी के अधिकारों के लिए दुनिया भर में लोगों ने आंदोलन किये, कानून बने। भारत में भी इनके लिए कानून बने। LGBT कम्युनिटी की आज़ादी और उनके अधिकारों के लिए सन 2018 में, 5 जजों की बेंच ने 150 साल पुराने कानून को अमान्य ठहराया। जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने फैसला किया कि ”समलैंगिकता अपराध नहीं है” इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने LGBT कम्युनिटी मतलब दो लड़के या दो लड़कियों के सम्बन्ध को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है। इस कानून के तहत दो सेम सेक्स के लोग, जो बालिग़ हो, अपनी मर्जी से सम्बन्ध बनाते है, तो उसे अपराध नहीं माना जाता है।

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हालाँकि अभी भी भारतीय नागरिक ऐसे रिश्तों को सम्मान की नज़र से नहीं देखते है और ना ही ऐसे रिश्ते में रहने वाले लोगो को सम्मान देते है, पर अब ये कानूनन वैध है।

तो अब सवाल ये है कि क्या LGBT कम्युनिटी के लोग पेरेंट्स बन सकते है? तो आईये जानते है समलैंगिक कपल के पेरेंट्स बनने से जुड़े अधिकार क्या है?

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बायोलॉजिकल चाइल्ड :-

LGBT कम्युनिटी के लोग भी बायोलॉजिकल पैरेंट बन सकते है। ऐसे लोग 3 तरीकों की मदद से बायोलॉजिकल पैरेंट बन सकते है।

(1) गेस्टेशनल सरोगेसी :-

इस प्रोसेस में एक सरोगेट मदर इच्छुक मेल का बायोलॉजिकल बच्चा मशीनों द्वारा अपने गर्भ में रखती है। बच्चे के जन्म के बाद वे बच्चे को उसके बायोलॉजिकल फादर को सौंप देती है और फ्यूचर में सरोगेट मदर का बच्चे से कोई कनेक्शन नहीं होता है।

(2) एग डोनेशन :-

बच्चे को उत्पन्न करने के लिए डॉक्टर मशीनों द्वारा इच्छुक मेल के स्पर्म को डोनर एग के साथ फर्टिलाइज़/मिलाते है। बच्चे को उतपन्न करने के बाद उसे सरोगेट मदर के गर्भ में रख देते है। फ्यूचर में सरोगेट मदर का बच्चे से कोई बायोलॉजिकल कनेक्शन नहीं होता है।

(3) IVF (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) :-

एग डोनेशन, (एम्ब्र्यो) बच्चे का उत्पन्न होना, सरोगेट मदर के अंदर ट्रांसफर होना, सभी इसके अंतर्ग्रत आते है। आईवीऍफ़ में डॉक्टर मशीनों द्वारा मेल स्पर्म और डोनर मदर के एग को मिलाया जाता है। फिर जब बच्चा उत्पन्न हो जाता है, उसे सरोगेट मशीनों द्वारा सरोगेट मदर के अंदर रखा जाता है। बच्चे के जन्म के बाद सरोगेट मदर का बच्चे से कोई बायोलॉजिकल कनेक्शन नहीं रहता है।

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यह तीनों ही तरीके ज्यादातर सक्सेसफुल होते है और LGBT कम्युनिटी भी अपने बच्चों का सुख प्राप्त कर सकते है। लेकिन इन सभी तरीको में 1 ही पैरेंट इन्वॉल्व होता है। जिस वजह से बच्चे का पूरा अधिकार बायोलॉजिकल फादर या मदर को दिया जाता है। दूसरे पैरेंट भी उनके साथ रह सकते है पर उनका बच्चे पर कोई भी कानूनी अधिकार नहीं होता है।

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