क्या पति भी अपनी पत्नी के खिलाफ एफआईआर कर सकता है?

क्या पुलिस आपके साथ दुर्व्यवहार कर सकती है?

भारत के एक केस के दौरान जब एक “आदर्श पति” ने अपनी “दबंग” पत्नी के अगेंस्ट घरेलू हिंसा मतलब डोमेस्टिक विजलेंस का केस फाइल किया, तो सबकी आंखें फटी की फटी रह गयी। दरसअल हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा आज भी यही मानता है कि क्रूरता या दबंगगीरी केवल पुरुषों द्वारा ही की जा सकती है या फिर एक पति कभी घरेलु हिंसा का शिकार नहीं ही सकता है। जबकि यह मानसिकता बिकुल गलत है। 

केस के फैक्ट्स 

इस केस की सुनवाई दिल्ली की एक लोअर कोर्ट में की गयी थी। केस के दौरान पत्नी को कई बार सम्मन भी जारी किये गए थे। यह सम्मन जारी हो जाने के बाद पत्नी कोर्ट में आने के लिए मजबूर हो गयी लेकिन उसने एक न्य तरीका अपनाया। उसने इस दलील के साथ दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि भारत का घरेलू हिंसा कानून या डोमेस्टिक वायलेंस लॉ केवल महिलाओं पर लागू होता है। और इस एक्ट के तहत सिर्फ महिलाएं ही अपने ऊपर हो रही दुष्टता के खिलाफ आवाज उठा सकती है। 

एक अनचाही सी शादी से जन्मा हुआ मामला, जहां दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया, वह अब एक अलग दिशा में जा चुका है। अब सबसे बड़ा और पेंचीदा सवाल यह है कि क्या भारत में घरेलू हिंसा कानून के तहत एक पुरुष अपनी पत्नी के खिलाफ केस फाइल कर सकता है?

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

इस पर पत्नी की तरफ से पेश हुई वकील से स्पष्ट रूप से तर्क दिया की लोअर कोर्ट के मुताबिक यह संभव हो सकता है लेकिन हाई कोर्ट में फाइल की गयी पिटीशन में ऐसा नहीं किया जा सकता है।  

इसे भी पढ़ें:  सरकारी अफसर काम ना करे या बतमीजी करे तो सिटीजन चार्टर में करें शिकायत

कानून क्या कहता है?

डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट, 2005 के सेक्शन 2 (ए) एक के तहत “पीड़ित व्यक्ति” को परिभाषित किया गया है। इस सेक्शन के तहत ऐसी कोई भी महिला जो प्रतिवादी या रेस्पोंडेंट के साथ घरेलू संबंध में रह रही है या पहले कभी भी रही है, और साथ रहने के दौरान महिला पर किसी भी प्रकार का कोई डोमेस्टिक वायलेंस हुआ है, तो वह महिला पीड़ित समझी जाएगी। 

सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में एक्ट के सेक्शन 2 (क्यू) के दायरे को बढ़ा दिया था। यह प्रोविज़न “प्रतिवादी” यानि रेस्पोंडेंट को परिभाषित करता है। इस सेक्शन के अनुसार प्रतिवादी का मतलब किसी भी वयस्क या एडल्ट पुरुष व्यक्ति से है, जो कभी ना कभी पीड़ित व्यक्ति के साथ घरेलू संबंध में रहा है, या प्रेजेंट में रह रहा है और जिसके खिलाफ पीड़ित व्यक्ति ने इस एक्ट के तहत कोई राहत या अपनी सुरक्षा मांगी है।

हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने कानून के दायरे को बढ़ाते समय “वयस्क पुरुष” शब्द को हटा दिया था। इस फैसले के आने से कानून के तहत महिलाओं के खिलाफ भी डोमेस्टिक वायलेंस का केस फाइल करने के रास्ते खुल गए। लेकिन इस फैसले ने कानून के तहत केवल एक प्रतिवादी मतलब रेस्पोंडेंट की परिभाषा को बदला है , एक “पीड़ित महिला” की परिभाषा को नहीं।

किसी भी प्रकार की कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से सम्पर्क कर सकते है। यहां आपको पूरी सुविधा दी जाती है और सभी काम कानूनी रूप से किया जाता है। लीड इंडिया के एक्सपर्ट वकील आपकी हर तरह से सहायता करेंगे। हमसे संपर्क करने के लिए आप ऊपर Talk to a Lawyer पर अपना नाम और फ़ोन नंबर दर्ज कर सकते है।

Social Media