क्या वाइफ मेंटेनेंस अमाउंट के ना मिलने पर हस्बैंड द्वारा कमाई हुई प्रापर्टी पर दावा कर सकती है?

क्या वाइफ मेंटेनेंस अमाउंट के ना मिलने पर हस्बैंड द्वारा कमाई हुई प्रापर्टी पर दावा कर सकती है?

एक अपील पर सुनवाई करते हुए, आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के जज सुब्बा रेड्डी सत्ती ने फैसला लिया कि क्योंकि इस बात का कोई एविडेंस पेश नहीं किया गया कि हस्बैंड ने अपनी वाइफ और बच्चों की बेसिक नीड्स पूरी नहीं की है, इसलिए वाइफ द्वारा हस्बैंड की खुद कमाई हुई प्रॉपर्टी पर किया गया दावा करने की पिटीशन को कोर्ट द्वारा रद्द कर दिया गया था। 

फैक्ट्स:

इस केस में पिटीशनर ने अपने हस्बैंड से मेंटेनेंस के रूप में 6000 रुपये हर महीने लेने की मांग की थी। साथ ही, अपने और अपने बच्चों के फ्यूचर मेंटेनेंस के लिए हस्बैंड की सेल्फ-अर्न प्रॉपर्टी के लिए भी दावा किया, क्योंकि उसका हस्बैंड शराब और जुए का आदी/एडिक्टेड था और अपने बच्चों के फ्यूचर पर ध्यान नहीं देता था। 

लोअर कोर्ट ने केस को खारिज कर दिया क्योंकि वाइफ द्वारा किये गए दावे को साबित करने के लिए उसके पास कोई सबूत नहीं थे। लोअर कोर्ट के फैसले के अगेंस्ट वाइफ ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट ने फैक्ट्स की प्रॉपर एग्जामिनेशन के बाद यह पाया कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि हस्बैंड अपनी वाइफ और बच्चों को मेंटेनेंस प्रदान करने में सफल नहीं रहा है।  

इस पर विचार करते हुए, हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया कि, मेंटेनेंस के लिए किया कोई भी दावा एक्सेप्ट नहीं किया जा सकता है क्योंकि वाइफ इस बात का कोई सबूत नहीं दे पायी कि उसका हस्बैंड उसकी और बच्चों की मेंटेनेंस प्रॉपर्ली नहीं कर रहा है। इसी के चलते, मेंटेनेंस की जगह वाइफ अपने हस्बैंड की खुद कमाई हुई प्रॉपर्टी पर दावा नहीं कर सकती है।

वाइफ अपने हस्बैंड से मेंटेनेंस का दावा कब कर सकती है?

मेंटेनेंस एक ऐसी आर्थिक सहायता होती है, जो हस्बैंड द्वारा वाइफ को उनका डाइवोर्स होने के बाद दी जाती है। हालाँकि, मेंटेनेंस शब्द का एक बहुत गहरा और बड़ा अर्थ है क्योंकि हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956 के सेक्शन 3 (बी) के तहत वाइफ, बच्चों, पेरेंट्स के साथ-साथ हस्बैंड द्वारा भी मेंटेनेंस का दावा किया जा सकता है। एक्ट के तहत मेंटेनेंस का मतलब खाना, कपड़े, घर, शिक्षा, चिकित्सा और उपचार प्रॉपर्ली मिलना होता है।

महिलाओं के मेंटेनेंस का दावा करने का अधिकार, चाहे वो मैरिड हो या डिवोर्सी:

  • पर्सनल लॉ के तहत:

अलग-अलग धर्म के फैसले अपने-अपने धर्मों के पर्सनल लॉ के तहत किये जाते हैं-

  • इंटरिम और पर्मनेंट मेंटेनेंस: 

हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत, दो तरह के मेंटेनेंस, इंटरिम और पर्मनेंट होते है। सेक्शन 24 के तहत, कोर्ट द्वारा हस्बैंड या वाइफ को केस की कार्यवाही पेंडिंग रहने के दौरान मेंटेनेंस दिया जाता है, जबकि सेक्शन 25 के तहत, पर्मनेंट मेंटेनेंस के साथ एलिमनी भी दी जाती है। स्त्रीधन मेंटेनेंस में शामिल नहीं होता है। मेंटेनेंस हमेशा हस्बैंड की आर्थिक स्तिथि, उसकी देनदारियों और जिम्मेदारियों, वाइफ की इनकम और इसी से रिलेटेड अन्य फैक्ट्स के अनुसार तय की जाती है। 

  • अगर वाइफ कमा रही है:

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, एक वाइफ मेंटेनेंस का दावा कर सकती है, भले ही वह कमा रही हो और उसकी इनकम उसके भरण-पोषण के लिए पर्याप्त ना हो। इस प्रकार, यह कहना बिलकुल गलत होगा कि एक वर्किंग वीमेन मेंटेनेंस की मांग नहीं कर सकती है। 

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साथ ही, सीआरपीसी, 1973 के प्रोविज़न के तहत भी एक वाइफ डिवोर्सी ना होने पर भी अलग रहने के लिए मेंटेनेंस का दावा कर सकती है। साथ ही, हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार, एक हस्बैंड अपनी वाइफ को इस बिहाल्फ पर मेंटेनेंस देने से मना नहीं कर सकता की वह बेरोजगार है या कमाई नहीं कर रहा है।

  • क्या हस्बैंड भी मेंटेनेंस का दावा कर सकते हैं:

हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955 का सेक्शन 24 हस्बैंड और वाइफ दोनों के बारे में बात करती है, इस प्रकार अगर हस्बैंड फिनांकिआलय खुद को सपोर्ट नहीं कर सकता है और वियफे हस्बैंड से ज्यादा कमा रही है और आर्थिक रूप से अच्छी तरह से संपन्न है, तो हस्बैंड भी मेंटेनेंस का दावा कर सकता है।

लीड इंडिया फैमिली लॉ, मेंटेनेंस के दावों, डाइवोर्स की कार्यवाही, कस्टडी के केसिस आदि से रिलेटेड केसिस से निपटने वाले एक्सपेरिएंस्ड लॉयर्स की एक लम्बी लिस्ट प्रदान करता है।

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