क़ानून और धाराएं

नए एडवोकेट प्रोटेक्शन बिल, 2021 के तहत एडवोकेट्स को अरेस्ट नहीं किया जा सकता

नए एडवोकेट प्रोटेक्शन बिल, 2021 के तहत एडवोकेट्स को अरेस्ट नहीं किया जा सकता

सुप्रीम कोर्ट ने हरि शंकर रस्तोगी v गिरिधर शर्मा (1978) के केस में यह ऑब्ज़र्व किया कि ‘बार काउन्सि जुडीशियल सिस्टम का ही विस्तार/एक्सटेंशन है और एक एडवोकेट कोर्ट का एक ऑफ़िसर होता है। एक एडवोकेट कोर्ट के प्रति जवाबदेह होता है और हाई प्रोफेशनल एथिक्स के द्वारा चलाया जाता है। जुडीशियल सिस्टम की सफलता …

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हाई कोर्ट के जजों को उनके दौरे पर गिफ्ट्स ना दें: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट

हाई कोर्ट के जजों को उनके दौरे पर गिफ्ट्स ना दें: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट

हाल ही में एक दिलचस्प घटना तब हुई जब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ने एक सर्कुलर जारी करयह कहा कि सबोर्डिनेट कोर्ट्स के जुडिशल ऑफिसर्स को हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस को अपने साथ लेकर आने और जाने, यात्रा करने, होटल में ठहरने, भोजन की व्यवस्था करने या गिफ्ट्स देने  आदि …

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सेक्शन 438 के तहत एंटीसिपेट्री बेल कैसे ले सकते है?

सेक्शन 438 के तहत एंटीसिपेट्री बेल कैसे ले सकते है?

बेसिकली जमानत या बेल सस्पेक्ट पर लगाई जाने वाली एक प्री-ट्रायल रीस्ट्रिक्शन होती है। इसे सस्पेक्ट मतलब जिस व्यक्ति पर कोई जुर्म करने का शक है उस पर इसीलिए लगाया जाता है ताकी वह कोर्ट की लीगल प्रोसीडिंग्स/कार्यवाही में कोई रुकावट ना डाल सके। आसान शब्दों में समझे तो किसी व्यक्ति को बेल या रिहाई …

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क्या एक वाइफ सेक्शन 377 के तहत अपने हस्बैंड पर एफआईआर कर सकती है?

क्या एक वाइफ सेक्शन 377 के तहत अपने हस्बैंड पर एफआईआर कर सकती है?

भारत में, इंडियन पीनल कोड का सेक्शन 377 हमेशा से ही सामाजिक या खुले तौर पर बात करने के लिए एक टैबू माना जाता रहा है। बहुत सारे लोग इसके बारे में डिटेल में जानते थे, लेकिन ज्यादातर लोगों की इस टॉपिक पर अपनी ही राय और सोंच थी, जो हमेशा बहुत ही भ्रम से …

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महिलाओं को गैर-जमानती अपराधों के साथ मौत या उम्रकैद तक की सजा के लिए भी जमानत दी जा सकती है।

महिलाओं को गैर-जमानती अपराधों के साथ मौत या उम्रकैद तक की सजा के लिए भी जमानत दी जा सकती है।

नेथरा v कर्नाटक स्टेट के केस में, कर्नाटक के हाई कोर्ट ने माना कि मौत या उम्रकैद की सज़ा वाले क्राइम्स में बेल नहीं दी जा सकती है, भारत में ऐसा कोई कानून/लॉ नहीं है। जज एम नागपरसन्ना ने अपने हस्बैंड की हत्या की एक आरोपी महिला को बेल देते हुए यह बात कही थी। …

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अगर पुलिस आपको गाली दे तो क्या करें?

अगर पुलिस आपको गाली दे तो क्या करें?

भारत पावरफुल लोगों, गवर्मेंट ऑफ़िसर्स और गवर्मेंट सर्वेन्ट्स से भरी एक डेमोक्रेटिक कंट्री है। जिन्हें भारत के लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अलग-अलग गवर्नमेंट पोस्ट्स के साथ बहुत सी पावर्स दी गई हैं, लेकिन जब उस पावर को यूज़ करने की बात आती है, तो यह ज्यादातर प्रैक्टिकल और सही नहीं होता है। …

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वसीयत को बाद के एक समझौते से रद्द नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

वसीयत को बाद के एक समझौते से रद्द नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

एक ऐसा एक्सटर्नल साइन, फैक्ट्स, इनफार्मेशन या कुछ भी ऐसा जो लीगली सच्चाई को साबित करने के लिए कोर्ट में जज के सामने पेश किया जाता है। स्पेशली, एक ऐसा व्यक्ति जो जानबूझकर अपने द्वारा किये गए क्राइम को खुद एक्सेप्ट करता है और अपने सह-साजिशकर्ताओं के खिलाफ गवाही देता है, उसे सबूत या एविडेंस …

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रेप लॉ जेंडर-न्यूट्रल होने चाहिए और पुरुष को बहलाने वाली महिला को भी दंडित किया जाना चाहिए।

रेप लॉ जेंडर-न्यूट्रल होने चाहिए और पुरुष को बहलाने वाली महिला को भी दंडित किया जाना चाहिए।

भारत में फोर्थ नंबर पर आने वाला सबसे मुख्य क्राइम रेप है। रेप को आम तौर पर पुरुष द्वारा, एक महिला के अगेंस्ट किया गया क्राइम माना जाता है। हालाँकि, यह क्राइम पुरुषों, होमोसेक्सुअल्स और ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के अगेंस्ट भी होता है। यूनाइटेड स्टेटस अमेरिका में डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन सेंटर द्वारा की गयी एक …

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नेशनल लेवल पर माइनॉरिटीज़ के रूप में मुस्लिम्स, क्रिस्चंस, सिखों, बौद्धों, पारसियों और जैनियों की नोटिफिकेशन को चैलेंज देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन फाइल

नेशनल लेवल पर माइनॉरिटीज के रूप में मुस्लिम्स, क्रिस्चंस, सिखों, बौद्धों, पारसियों और जैनियों की नोटिफिकेशन को चैलेंज देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन फाइल

देवकीनंदन ठाकुर द्वारा संविधान के आर्टिकल 29 और 30 के तहत, डिस्ट्रिक्ट लेवल पर माइनॉरिटीज़ की सही पहचान करके, उन्हें प्रॉफिट देने के लिए एक पीआईएल फाइल की गयी थी।  फाइल की गयी पीआईएल के अनुसार, 1993 में भारत सरकार/ इंडियन गवर्मेंट द्वारा मुसलमानों, सिखों, बौद्धों, पारसियों और जैनियों को नेशनल लेवल पर अल्पसंख्यक/माइनॉरिटी घोषित …

नेशनल लेवल पर माइनॉरिटीज़ के रूप में मुस्लिम्स, क्रिस्चंस, सिखों, बौद्धों, पारसियों और जैनियों की नोटिफिकेशन को चैलेंज देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन फाइल Read More »

डोमेस्टिक वायलेंस के केस का फैसला लेने से पहले जज डोमेस्टिक इंसिडेंट रिपोर्ट पर विचार करने के लिए बाध्य नहीं हैं।

डोमेस्टिक वायलेंस के केस का फैसला लेने से पहले जज डोमेस्टिक इंसिडेंट रिपोर्ट पर विचार करने के लिए बाध्य नहीं हैं।

प्रभा त्यागी v कमलेश देवी के केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया। जिसमे अब मजिस्ट्रेट को डीवी एक्ट के तहत आर्डर पास करने से पहले  प्रोटेक्शन ऑफिसर द्वारा फाइल की गयी डोमेस्टिक इंसिडेंट रिपोर्ट पर विचार करने की जरूरत नहीं है। जज एम आर शाह और जज बी वी नागरथा की बेंच …

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