चेक बाउंस एक वित्तीय लेन-देन में हुई अनियमितता है, जब किसी व्यक्ति या संगठन के बैंक खाते में अपर्याप्त धनराशि होने के कारण एक चेक को अदायगी नहीं की जा सकती है। इसे “बाउंस चेक” या “रिटर्न्ड चेक” के रूप में भी जाना जाता है।
जब किसी व्यक्ति या संगठन का बैंक खाता अपर्याप्त धनराशि से प्रभावित होता है, तो जब उसका चेक बैंक में जमा किया जाता है, तो वह चेक “बाउंस” हो जाता है और बैंक उसे वापस कर देता है। इसका मतलब होता है कि चेक धारक की बैंक खाते में पर्याप्त पैसा नहीं है और वह चेक खाते से नकली या बाउंस कर दिया जाता है।
चेक बाउंस की वजह से चेक के धारक को नुकसान होता है, क्योंकि वह व्यावसायिक और व्यक्तिगत लेन-देन की योजना बना सकता है और अपने भुगतान के साथ चेक का वापसी भी कर सकता है। चेक बाउंस करने पर बैंक द्वारा धारक को एक पेनाल्टी भी लग सकती है जो आपत्तिजनक लेन-देन के रूप में उसे प्राप्त हो सकती है।
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झूठे चेक बाउंस केस में कौन सी धारा लगती है
झूठे चेक बाउंस के मामलों में आमतौर पर नकदी लेन-देन के प्रतिबंध के कारण, आपराधिक धारा 138 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है। यह धारा भारतीय नगरिक संहिता का हिस्सा है और चेक बाउंस केसों को व्यापक रूप से व्यवस्थित करने के लिए बनाई गई है।
- धारा 138 के तहत, यदि किसी व्यक्ति को चेक बाउंस होता है, तो वह चेक के धारक के खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर सकता है। इसमें निम्नलिखित मामलों का पालन करना आवश्यक होता है:
- चेक बाउंस करने के लिए चेक का होना।
- चेक के तारीख के दिनांक के बाद छह महीने के भीतर चेक को बैंक में दाखिल करना।
- चेक के बाउंस होने पर धारक को अदायगी के लिए लिखित नोटिस भेजना।
- धारक के खिलाफ केस दर्ज करने के लिए छह महीने के अंदर कानूनी कार्यवाही करना।
यदि धारा 138 के तहत कोई भी व्यक्ति पेमेंट नहीं करता है, तो उसे कारावास की सजा हो सकती है। धारा 138 में उल्लेखित आपराधिक कार्य का दोहन करने पर दंड की सीमा 2 लाख रुपये तक का जुर्माना या छह महीने की कारावासी सजा हो सकती है।
चेक बाउंस के केस में कोर्ट की क्या फीस निर्धारित है ?
चूंकि भारत में चेक बाउंस के मामले तेजी के साथ आते रहते हैं । इसलिए कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हेतु कोर्ट ने कुछ फीस तय कर रखी है । यदि कोई व्यक्ति 5 लाख रुपए की चेक की सुनवाई कराना चाहता है तो उसके लिए कोर्ट की फीस 10 हजार रुपए है।
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