मानहानि का केस करने की पूरी प्रक्रिया: सिविल और क्रिमिनल दोनों तरीके से?

Complete procedure for filing a defamation case both civil and criminal

मानहानि का अर्थ है – किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को जानबूझकर सार्वजनिक रूप से नुकसान पहुँचाना।

अगर कोई व्यक्ति लिखित, मौखिक या डिजिटल माध्यम से किसी के बारे में अपमानजनक बात कहता है जिससे उसकी समाज में छवि खराब होती है, तो वह मानहानि है।

सामाजिक दृष्टिकोण से: समाज में प्रतिष्ठा एक अमूल्य संपत्ति है।

कानूनी दृष्टिकोण से: कानून हमें यह अधिकार देता है कि अगर कोई हमारी छवि को नुकसान पहुँचाता है, तो हम उसके खिलाफ कार्यवाही कर सकते हैं।

मानहानि के प्रकार – सिविल और आपराधिक

भारत में मानहानि दो तरह की होती है:

बिंदुसिविल मानहानिआपराधिक मानहानि

उद्देश्य

मुआवज़ा
    
सजा 

प्रक्रिया

सिविल कोर्ट

मजिस्ट्रेट कोर्ट

सजा 

आर्थिक मुआवज़ा

2 साल की जेल / जुर्माना

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किन परिस्थितियों में मानहानि का केस बनता है?

मानहानि का केस तब बनता है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर ऐसा कुछ कहता, लिखता या प्रसारित करता है जो आपकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाए।

उदाहरण:

  • झूठे आरोप लगाना
  • सोशल मीडिया पर बदनाम करने वाले पोस्ट
  • टीवी/अखबार में झूठी खबर
  • अफवाहें फैलाना
  • व्यापारिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाना

सिविल मानहानि का केस दर्ज करने की प्रक्रिया

सिविल मानहानि का केस तब दायर किया जाता है जब कोई व्यक्ति अपने सम्मान को हुए नुकसान के लिए मुआवज़ा  मांगना चाहता है। 

इसका उद्देश्य दोषी को दंड देना नहीं बल्कि पीड़ित को आर्थिक और मानसिक राहत देना होता है।

वकील से प्रारंभिक परामर्श लें

  • सबसे पहले किसी अनुभवी सिविल वकील से मिलें।
  • उन्हें पूरा मामला विस्तार से बताएं।
  • अपमानजनक कथन या पोस्ट का स्रोत, तारीख, प्लेटफॉर्म, और असर की जानकारी दें।

लीगल नोटिस भेजना

  • वकील के माध्यम से उस व्यक्ति को लीगल नोटिस भेजा जाता है जिसने मानहानि की है।
  • ·इस नोटिस में माँग की जाती है कि वह व्यक्ति सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगे, आपत्तिजनक सामग्री हटाए, और मुआवज़ा दे।
  • नोटिस भेजना अनिवार्य नहीं है, परंतु कोर्ट में यह दिखाता है कि आपने विवाद सुलझाने की कोशिश की थी।
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सिविल कोर्ट में केस दाख़िल करना

  • अगर सामने वाला व्यक्ति नोटिस का जवाब नहीं देता या आपकी मांगें नहीं मानता, तो अगला कदम होता है सिविल सूट फाइल करना।
  • मानहानि का केस आप डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में फाइल कर सकते हैं। यह केस उस जगह फाइल किया जा सकता है जहाँ मानहानि हुई हो या जहाँ पीड़ित व्यक्ति रहता है। 
  • इससे पीड़ित को न्याय पाने में सुविधा होती है और कोर्ट को मामला सुनने का अधिकार मिल जाता है।

क्या-क्या दस्तावेज़ जरूरी हैं?

  • अपमानजनक पोस्ट/स्टेटमेंट के स्क्रीनशॉट, प्रिंट, ऑडियो/वीडियो क्लिप
  • गवाहों के बयान
  • कोई पूर्व संवाद या बातचीत (चैट्स, ईमेल आदि)
  • मानसिक पीड़ा और सामाजिक/पेशेवर नुकसान का विवरण

कोर्ट फीस और वकील की फीस

  •   सिविल कोर्ट में मुआवज़ा  जितना बड़ा मांगा जाए, फीस उतनी ज़्यादा होती है।
  •   फीस हर राज्य में अलग-अलग हो सकती है।

मुआवज़ा कैसे निर्धारित होता है?

  • व्यक्ति की सामाजिक स्थिति
  • कथन की गंभीरता और पहुँच
  • मानसिक कष्ट और प्रोफेशनल नुकसान
  • बयान का प्रभाव कितना व्यापक है

सुनवाई और अंतिम निर्णय

  • प्रतिवादी को नोटिस भेजा जाएगा।
  • दोनों पक्षों की दलीलें और सबूत देखे जाते हैं।
  • अगर कोर्ट मानता है कि मानहानि हुई है, तो प्रतिवादी को सार्वजनिक माफी माँगने का आदेश दिया जा सकता है या मुआवज़ा  देने का आदेश।

आपराधिक मानहानि का केस दर्ज करने की प्रक्रिया

जब किसी व्यक्ति का उद्देश्य उस अपराधी को सज़ा दिलवाना होता है, तब आपराधिक केस दर्ज किया जाता है।

1. शिकायत का ड्राफ्ट तैयार करना

  • किसी क्रिमिनल लॉयर से मिलकर एक आपराधिक शिकायत तैयार करें।
  • शिकायत में यह स्पष्ट होना चाहिए कि आरोपी ने क्या कहा या लिखा? कब, कहां और किस माध्यम से? उसका प्रभाव क्या हुआ?
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2. मजिस्ट्रेट कोर्ट में शिकायत दर्ज करना

  • यह केस सीधे जुडिशल मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास या मेट्रोपोलिटियन मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज किया जाता है।
  • यह एक प्राइवेट कंप्लेंट होती है क्योंकि पुलिस एफआईआर नहीं लिखती इस अपराध में।

3. प्रथम दृष्टया सबूत:

  • कोर्ट सबसे पहले देखता है कि क्या शिकायत में प्रथम दृष्टया कोई अपराध बनता है।
  • इसके लिए पीड़ित का प्रारंभिक बयान (preliminary statement) रिकॉर्ड किया जाता है।

4. सबूतों की समीक्षा और गवाहों की सूची:

  • पीड़ित को अपने गवाहों की सूची और सबूत देने होते हैं।
  • कोर्ट यह देखता है कि बयान और सबूत पर्याप्त हैं या नहीं।

5. समन या वारंट जारी होना:

अगर कोर्ट को लगता है कि अपराध बनता है, तो वह आरोपी को समन (summon) या जरूरत पड़ने पर गिरफ्तारी वारंट जारी कर सकता है।

6. सुनवाई की प्रक्रिया:

  • आरोप तय होते हैं।
  • आरोपी को सफाई का मौका दिया जाता है।
  • दोनों पक्षों के गवाहों से जिरह होती है।
  • सबूतों की जांच होती है।

7. सजा का प्रावधान

भारतीय न्याय संहिता कि धारा 356 के तहत आरोपी को दो साल तक कि सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते है।

8. अपील की प्रक्रिया:

  • अगर आरोपी दोषी ठहराया जाता है, तो उसे हाई कोर्ट में अपील करने का अधिकार होता है।
  • अगर पीड़ित को कोर्ट का फैसला असंतोषजनक लगे, तो वह भी अपील कर सकता है।
  • यह एक दंडनीय लेकिन ग़ैर-संज्ञेय (non-cognizable) अपराध है, जिसका मतलब है कि पुलिस बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के इसकी जांच नहीं कर सकती। 
  • कोर्ट में केस साबित करने के लिए मजबूत इरादा और हुए नुकसान का स्पष्ट प्रमाण दिखाना ज़रूरी होता है। 
  • क्रिमिनल केस में आमतौर पर अदालत की प्रक्रिया थोड़ी लंबी हो सकती है और समय भी ज़्यादा लग सकता है।
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मानहानि के केस में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

  • साक्ष्य मजबूत होने चाहिए (डिजिटल, ऑडियो/वीडियो, गवाह)
  • गवाहों की विश्वसनीयता
  • लिमिटेशन पीरियड आमतौर पर 1 वर्ष के अंदर केस दर्ज करना चाहिए
  • इमोशनल रिएक्शन की बजाय कानूनी सोच रखें

मानहानि के झूठे मामलों से कैसे बचें?

  • सत्य और जनहित – सबसे मजबूत डिफेंस
  • माफ़ीनामा / रिट्रैक्शन
  • इरादा साबित करना ज़रूरी है
  • कोर्ट झूठे केसों में कठोर रुख अपनाता है।

निष्कर्ष

यदि किसी ने जानबूझकर आपकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाया है, तो कानूनी कदम उठाना ज़रूरी है। 

यदि आप केवल मुआवज़ा चाहते हैं तो सिविल केस करें, और यदि सज़ा दिलानी है तो क्रिमिनल केस करें।

किसी भी कार्रवाई से पहले उचित कानूनी सलाह लें और समय पर कदम उठाएँ, ताकि न्याय मिल सके।

किसी भी कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से संपर्क करें। हमारे पास लीगल एक्सपर्ट की पूरी टीम है, जो आपकी हर संभव सहायता करेगी।

FAQs

1. क्या WhatsApp पर किए गए अपमानजनक मैसेज पर केस हो सकता है?

हां, अगर वह मैसेज सार्वजनिक हो या अन्य लोगों तक फैला हो।

2. मानहानि के केस में कितना मुआवज़ा मिल सकता है?

यह केस की गंभीरता, प्रतिष्ठा की स्थिति और नुकसान पर निर्भर करता है।

3. अगर मैंने सच कहा है, तो क्या मुझे दोषी ठहराया जा सकता है?

अगर वह जनहित में है और गलत मंशा से नहीं कहा गया, तो नहीं।

4. कोर्ट केस में कितने समय लगते हैं?

औसतन 6 महीने से 3 साल तक, केस की प्रकृति पर निर्भर करता है।

5. झूठे मानहानि केस में मेरी रक्षा कैसे हो सकती है?

प्रमाण, सच्चाई और सही कानूनी सलाह से।

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