चाइल्ड कस्टडी का पूरा प्रोसेस क्या है?

चाइल्ड कस्टडी का पूरा प्रोसेस क्या है?

चाइल्ड कस्टडी एक कानूनी प्रक्रिया है जिसमें किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को किसी बालक/बालिका की देखभाल और परवरिश का कानूनी अधिकार प्राप्त होता है। यह प्रक्रिया आमतौर पर ऐसे स्थितियों में आवेदन की जाती है जब बालक/बालिका के माता-पिता या अभिभावक उनकी सुरक्षा, संरक्षण, और परवरिश की जिम्मेदारी नहीं निभा सकते हैं या उनकी हितों को पूरा नहीं कर सकते हैं।चाइल्ड कस्टडी का मुख्य उद्देश्य बालक/बालिका की सुरक्षा, अच्छी परवरिश, और उनके हितों की सुनिश्चितता है। अधिरक्षण का अधिकार उस व्यक्ति या संस्था को प्राप्त होता है जिसे न्यायालय या संबंधित अधिकारी ने नियुक्त किया है, और वे इसके लिए बालक/बालिका की देखभाल और परवरिश की जिम्मेदारी लेते हैं।चाइल्ड कस्टडी उचित न्याय और बालक/बालिका के हितों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने का माध्यम होती है जब माता-पिता या अभिभावक अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सकते हैं या बालक/बालिका की सुरक्षा खतरे में हो सकती है। यह न्यायिक प्रक्रिया बच्चे के हितों की सुरक्षा और अच्छी परवरिश के लिए संबंधित अधिकारियों की निगरानी और मार्गदर्शन के साथ संचालित होती है।

18 वर्ष से कम उम्र के किसी भी बच्चे को कहानी कानूनी रूप से अभिभावक सौंपने की प्रक्रिया को बच्चों की कस्टडी कहते हैं 

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क्या भारत में पिता को बच्चे की कस्टडी मिल सकती है?

हां, भारत में पिता को बच्चे की कस्टडी (अधिरक्षण) मिल सकती है। भारतीय कानून में, चाइल्ड कस्टडी का अधिकार माता और पिता दोनों को हो सकता है। पिता को बच्चे की कस्टडी प्राप्त करने के लिए वह न्यायालय में आवेदन कर सकता है और अपने पक्ष की युक्तियों को पेश कर सकता है।

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न्यायिक प्रक्रिया के दौरान, न्यायिक अधिकारी विशेषतः बच्चे के हित को महत्व देते हुए पिता के अधिकार की जांच करेंगे। वे देखेंगे कि पिता की देखभाल और परवरिश के लिए क्या साबित किया गया है और बच्चे के हितों की सुरक्षा और उनकी विकास को कितना महत्व दिया गया है। इसके आधार पर, न्यायालय निर्णय देगा कि पिता को बच्चे की कस्टडी का हक है या नहीं।

चाइल्ड कस्टडी के मामलों में, न्यायालय बच्चे के हित को प्राथमिकता देता है और संभावित बालक/बालिका की सुरक्षा और उनके हितों की सुनिश्चितता पर ध्यान केंद्रित करता है। यहां यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि चाइल्ड कस्टडी के मामलों में हर मामले को अलग-अलग तथ्यांकन और निर्णय के आधार पर देखा जाता है।

बच्चों की कस्टडी की स्थिति कब आती है ? 

विशेष रूप से यदि पति-पत्नी में तलाक हो जाए अथवा दोनों में से किसी एक अथवा दोनों की मृत्यु हो जाए तो ऐसी स्थिति में बच्चों को किसी एक अभिभावक की कस्टडी में न्यायालय द्वारा कानूनी रूप से सौप दिया जाता है जिसकी सारी जिम्मेदारी उस शख्स की होती है जिस की कस्टडी में वह बच्चा होता है।

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