एन आई एक्ट सेक्शन 138 पर सुप्रीम कोर्ट का नवीनतम फैसला

एनआई अधिनियम की धारा 138 क्या है, चेक बाउंस मामले में क्या है सर्वोच्च न्यायालय के नियम, अपराध की कंपाउंडिंग क्या होती है

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस पर एक विशेष टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यदि दो पक्ष जो न्यायालय में आमने सामने केस लड़ रहे हैं यदि वे दोनों एक साथ समझौते के लिए प्रवेश करते हैं तो किसी भी न्यायालय के द्वारा उनके बीच हुए समझौते को नजरंदाज नहीं किया जा सकता ।

समझौते को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी उस समय की जब तेलंगाना हाई कोर्ट का एक अपीलीय मामला सुप्रीम कोर्ट के पास पहुंचा जिसमे बताया तेलंगाना के उच्च न्यायालय ने दो पक्षों के बीच हुए समझौते को नजर अंदाज करते हुए चेक बाउंस मामले में सजा का ऐलान किया था ‌। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाई कोर्ट के इस फैसले को ऊपर दिए गए तर्क के आधार पर रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने तेलंगाना हाई कोर्ट के इस निर्णय को रद्द किया तथा ऐसी टिप्पणी की।

एन आई अधिनियम की धारा 138 क्या है?

धारा 138 चेक बाउंस मामले से संबंधित है । इसके अनुसार चेक की वापसी (अस्वीकृति) की तारीख से 30 दिनों के भीतर एक कानूनी नोटिस भेजना होता है और चेक में उल्लिखित राशि को 15 दिनों के भीतर भुगतान करने के लिए कहना होता है ।

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चेक बाउंस मामले में क्या है सर्वोच्च न्यायालय के नियम

यदि कोई व्यक्ति चेक बाउंस मामले का केस फाइल करना चाहता है तो उसके लिए कुछ नियम कोर्ट द्वारा निर्धारित हैं । 

  • चेक बाउंस होने की स्थिति में सबसे पहले देनदार व्यक्ति अर्थात चेक देने वाले को नोटिस दी जाती है । ध्यान रहे देनदार को लीगल नोटिस देने का समय 30 दिनों का होता है। अतः 30 दिनों के भीतर ही लीगल नोटिस भेजना चाहिए।
  • चेक बाउंस होने की स्थिति में एक कानूनी प्रक्रिया की जरूरत होती है । इसलिए संभव हो तो एक कानूनी वकील की सलाह अवश्य लें।
  • चेक बाउंस मामले लीगल नोटिस देने के बाद देनदार को कोर्ट द्वारा 15 दिनों का समय दिया जाता है। 
  • यदि इस 15 दिनों की अवधि में देनदार की ओर से चेक पर लिखा हुआ धन अदा कर दिया जाता है तो बात यहीं पर समाप्त हो जाती है ।
  • यदि देनदार इस अवधि में पैसे नहीं वापस करता है तो उसके खिलाफ कोर्ट केस लिखने का आदेश दे देता है।
  • चेक बाउंस के केस में आरोपी सिद्ध होने पर देनदार को दोगुनी राशि अदा करनी पड़ती है तथा उसे जेल की सजा भी हो सकती है।
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अपराध की कंपाउंडिंग क्या होती है?

अपराध‌ की कंपाउंडिंग एक विशेष प्रकार का समझौता है। जिसके अंतर्गत अपराध करने वाले व्यक्ति पर पीड़ित परिवार केस दर्ज न करा कर उससे अन्य किसी प्रकार का भुगतान या संतुष्टि ले लेता है।

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