हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत आपसी तलाक के लिए क्या शर्तें हैं?

हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत आपसी तलाक के लिए क्या शर्तें हैं?

तलाक एक गंभीर मुद्दा है और इसे केवल अंतिम उपाय के रूप में ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए, हालांकि, आजकल लोग तलाक लेने से पहले दो बार भी नहीं सोचते हैं। भारत मे तलाक लेने के लिए कुछ कानूनी प्रावधान है। तलाक लिए जाने के लिए हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत  भी  प्रावधान हैं।

तलाक लिए जाने के लिए तीन प्रमुख तरीके होते हैं। जिनमें से एक आपसी सहमति से तलाक लिए जाने की बात है। आज हम इस आलेख के माध्यम से इस बात को समझने का प्रयास करेंगे कि आपसी सहमति से तलाक लिए जाने के लिए किन शर्तों का पूरा किया जाना ज़रूरी है।

आपसी सहमति से तलाक को हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी के अंतर्गत रखा गया है। ऐसे मामले जहां हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 (1) के अन्तर्ग दिये हुए कोई भी आधार नहीं हैं मगर दम्पत्ति यह तय करते हैं कि उन्हें अब एक साथ नहीं रहना है। ऐसी स्थिति में धारा 13 (बी) के तहत आपसी सहमति से तलाक लिया जा सकता है।

आपसी सहमति से तलाक लिए जाने के लिए भी हालांकि कुछ शर्तों को पूरा किया जाना आवश्यक है। आइये समझते हैं वे कौन सी शर्ते हैं जिनका पूरा किया जाना आपसी सहमति से तलाक के लिए आवश्यक होता है।

पक्षकारों को अलग रहना चाहिए

हिन्दू विवाह की अधिनियम की धारा 13 (बी) यह निर्धारित करती है कि एक आपसी सहमति से तलाक की याचिका दायर करने से पहले पति-पत्नी को कम से कम 1 वर्ष की अवधि के लिए अलग रहना होगा।

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एक वर्ष की यह अवधि जहां पक्षकार अलग-अलग रहते हैं। यह याचिका दायर करने से ठीक पहले होना चाहिए। धारा 13 बी के संदर्भ में अलग रहने का मतलब शारीरिक रूप से अलग-अलग जगहों पर रहना नहीं है। बल्कि पक्षकार एक ही घर में रह सकते हैं मगर फिर भी उनके मध्य दूरी होनी चाहिए।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सुरेशता देवी बनाम ओम प्रकाश के मामले में निर्णय देते हुए यह यह स्पष्ट किया कि अलग-अलग रहने का मतलब अलग-अलग जगहों पर रहना जरूरी नहीं है। पक्षकार एक साथ रह सकते हैं लेकिन पति-पत्नी के रूप में नहीं रहने चाहिए।

यदि ऐसा होता है तो उन्हें पति-पत्नी के रूप में नहीं माना जाता है और वे आपसी सहमति से तलाक की याचिका दायर कर सकते हैं।

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कूलिंग पीरियड

हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी (2) के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका दायर करने के पश्चात पक्षकारों को 6 महीने की प्रतीक्षा अवधि दी जाती है। इसे कूलिंग पीरियड कहा जाता है और इसे 18 महीने तक बढ़ाया भी जा सकता है। इस दौरान पार्टियों को आत्मनिरीक्षण करना  और अपने निर्णय के बारे में सोचने का मौका दिया जाता है।

यदि कूलिंग पीरियड के बाद भी पक्षकार एक साथ रहने में सक्षम नहीं हैं, तो तलाक की याचिका पर जिला न्यायाधीश द्वारा पास कर दी जाती है।

हालांकि कभी-कभी जब न्यायालय को लगता है कि विवाह अब वापस नहीं आने की स्थिति में आ चुका है और प्रतीक्षा अवधि केवल पक्षकारों के दुख को बढ़ाएगी। उस मामले में इस अवधि को अदालत द्वारा माफ भी किया जा सकता है। 

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आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालय ने भी माना कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी(2) को एक वैधानिक आदेश के रूप में नहीं बल्कि केवल एक निर्देशिका के रूप में पढ़ा जाना बेहतर होगा। अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर के मामले में , यह देखा गया कि दंपति के बीच आंतरिक विवाद थे और उनका वैवाहिक जीवन बहुत अच्छा नहीं था। विवाद वास्तव में बेहद खराब हो चुके थे और वे बस एक त्वरित तलाक चाहते थे ऐसी स्थिति में वे प्रतीक्षा अवधि को ख़त्म करने की मांग करते थे। 

आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया

संयुक्त याचिका दायर करना

आपसी सहमति से तलाक के लिए तलाक की याचिका पर दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षर किए जाने चाहिए और अपने क्षेत्र में एक पारिवारिक न्यायालय के समक्ष दायर की जानी चाहिए।

पहला प्रस्ताव

याचिका दायर करने के बाद पक्षकार कोर्ट में पेश होंगे और अपना बयान देंगे। यदि न्यायालय संतुष्ट है और बयान दर्ज किए जाते हैं तो पहले प्रस्ताव को पारित किया गया कहा जाता है, जिसके बाद पार्टियों को 6 महीने की प्रतीक्षा अवधि दी जाएगी, इससे पहले कि वे दूसरा प्रस्ताव दाखिल कर सकें।

दूसरा प्रस्ताव

इस चरण में अंतिम सुनवाई होती है और बयान फिर से दर्ज किए जाते हैं। अगर पक्षकार गुजारा भत्ता और बच्चे की कस्टडी (यदि हो तो) के मुद्दे परस्पर सहमत हैं तो इस के बाद तलाक की डिक्री पारित की जाती है। 

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