जीवनसाथी द्वारा आपराधिक शिकायत होना क्रूरता और तलाक का आधार है।

जीवनसाथी द्वारा आपराधिक शिकायत होना क्रूरता और तलाक का आधार है।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक विलग रह रहे जोड़े को तलाक देते हुए कहा गया कि एक जीवन साथी द्वारा दूसरे के प्रति एक भी झूठी आपराधिक शिकायत दर्ज करना वैवाहिक क्रूरता की श्रेणी में ही आएगा। और इस तरह यह दूसरे जीवनसाथी को इस आधार पर तलाक लेने का अधिकार प्रदान करता है।

श्रीनिवास राव बनाम डी ए दीपा 2013(5) एससीसी 226 के मामले में सुनवाई करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय में जस्टिस विक्रमजीत सेन एवं जस्टिस प्रफुल्ल पंत की बेंच ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि एक जीवन साथी द्वारा दूसरे जीवन साथी पर की गई झूठी आपराधिक शिकायत के कई मामले सर्वोच्च न्यायालय में देखे गए है । इस मुद्दे पर एक पूर्ण विश्लेषण और व्यापक चिंतन की आवश्यकता है। 

सर्वोच्च न्यायलय ने इस मामले पर बात करते हुए यह भी कहा एक जीवनसाथी द्वारा दूसरे पर इस तरह की आपराधिक शिकायत भले ही वह एक ही क्यों न हो, तलाक के आधार के रूप में देखी जा सकती है। क्योंकि इस तरह की आपराधिक शिकायत वैवाहिक क्रूरता की श्रेणी में ही आएगा।

सर्वोच्च न्यायालय के सामने प्रस्तुत इस मामले में पति द्वारा यह तलाक याचिका दायर की गई थी। जब उस की पत्नी अपने ही एक परिजन भाई के साथ रहने लगी थी। इस याचिका के विरोध में पत्नी ने आईपीसी की धारा 34, 148ए, 384, 324 और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 4 और 6 के तहत पति या और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ आपराधिक आपत्ति के रूप में अपना जवाब प्रस्तुत किया। साथ ही पत्नी ने भरण-पोषण के लिए भी याचिका दायर की थी। 

साल 2000 में स्थानीय न्यायालय द्वारा इस मामले में पति एवं उस के रिश्तेदारों को बरी कर दिया। वहीं कुटुंब न्यायालय ने भी वैवाहिक अधिकारों की बहाली को लेकर की गई मांग को भी खारिज कर दिया। इस फैसले के विरोध में पत्नी ने हाई कोर्ट में अर्जी लगा दी। उच्च न्यायालय द्वारा पत्नी की याचिका को स्वीकार कर लिया गया।

मामले को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने अपील को सुनने के बाद कहा कि विवाह के अपरिवर्तनीय विच्छेद को तलाक का आधार मानने के लिए आज तक वैधानिक स्वीकृति नहीं प्राप्त हो सकी है। संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय के पास इस तरह के डिक्री पारित करने या बनाने के लिए पूर्ण अधिकार हैं। ऐसा आदेश जो उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले या आदेश में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो। हालाँकि यह शक्ति हमारे संविधान द्वारा किसी अन्य न्यायालय को प्रदान नहीं की गई है। इन्हीं कारणों से हमने तर्कों को केवल इस पहलू तक सीमित रखा है कि झूठी आपराधिक शिकायत दर्ज करना वैवाहिक क्रूरता को पर्याप्त रूप से साबित करता है और इस झूठी शिकायत से पीड़ित पक्ष तलाक के लिए दावा कर सकता है। उस के पास यह अधिकार होगा।

फैसले के अंत में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कहा गया  कि “हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि प्रतिवादी-पत्नी ने पति के विरुद्ध एक झूठी आपराधिक शिकायत दर्ज की थी, और यहाँ ऐसी एक शिकायत भी वैवाहिक क्रूरता को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। जिसके आधार पर पति के पास पत्नी को तलाक देने का अधिकार है। 

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ऐसा ही एक मामला मुम्बई उच्च न्यायालय के समक्ष भी देखने को मिला। अनिल यशवंत कारंडे बनाम श्रीमती मंगल अनिल कारंडे के मामले में उच्च न्यायालय ने पाया कि पत्नी द्वारा अपीलकर्ता-पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ शादी के पांच दिन बाद परिवाद दायर किया गया था। पत्नी ने कहीं भी यह आरोप नहीं लगाया था कि उन पांच दिनों के दौरान अपीलकर्ता या उसके परिवार के सदस्यों द्वारा उसके या उसके परिवार के सदस्यों से कोई दुर्व्यवहार या दहेज की मांग की गई थी। मामले में पत्नी ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए, 323, 504 और 506 के तहत अपराध का आरोप लगाते हुए एक झूठी आपराधिक शिकायत दायर की, जिसमें अपीलकर्ता पति और उसके परिवार के सदस्यों को बरी कर दिया गया था। 

मुंबई उच्च न्यायालय ने इस मामले में पाया कि पत्नी ने साफ़ तौर पर पति पर झूठी आपराधिक शिकायतें दर्ज कराई थीं। जिसके बाद तलाक दिए जाने के पश्चात पत्नी ने धारा 9 के तहत प्राप्त अपनी वैवाहिक अधिकारों की बहाली का अधिकार भी खो दिया।

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