भारत में, हम एक पुरुष प्रधान समाज में रहते हैं, जहाँ पुरुषों को अभी भी बिज़नेस और काम के लिए पहली प्रायोरिटी मिलती है, जबकि महिलाओं को हमेशा ही पुरुषों से कम आँका जाता है और ना के बराबर प्रायोरिटी दी जाती है, उन्हें ज़्यादातर घर के कामों की तरफ धकेल दिया जाता है।
यह हमेशा देखा गया है कि महिलाओं को फैमिली रिलेटीड मैटर्स हो या जॉब रिलेटीड हर जगह उन्हें अपने बराबरी से जीने के अधिकारों के लिए लड़ना पड़ता है।
जब एक महिला अपने हस्बैंड की मृत्यु हो जाने की वजह से विधवा हो जाती है, तो अक्सर यह देखा जाता है कि विधवा बहुओं को अपने ससुराल वालों द्वारा ससुराल छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता है।
टार्गेटेड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम के तहत राशन कार्ड यूज़र्स को जरूरत की चीजें बांटने के लिए लाइसेंस वाली दुकान को ‘उचित मूल्य की दुकान’ या ‘फेयर प्राइस शॉप’ कहा जाता है।
हाल ही में, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक फैसला में कहा कि बहू भी कम्पन्सेशन के आधार पर से फेयर प्राइस शॉप से जरूरत के मिलने वाले सामान प्राप्त करने के लिए योग्य/एलिजिबल है। जज मनीष माथुर की बेंच ने हाई कोर्ट के एक अन्य फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि एक विधवा बहू कम्पन्सेशन से फेयर प्राइस शॉप से सामान लेने के लिए योग्य है।
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पिटीशनर शर्मा देवी ने देखा कि कम्पन्सेशन के आधार पर फेयर प्राइस शॉप से सामान लेने के लिए एक रिट पिटीशन फाइल की गई थी, लेकिन गवर्नमेंट ऑफिसर्स ने इस दावे के साथ रिक़ुएस्ट को खारिज कर दिया कि गवर्नमेंट आर्डर के पैराग्राफ IV क्लॉज 10 के तहत शर्मा देवी “परिवार” की डेफ़िनेशन नहीं आती हैं।
कॉउन्सिल ने पिटीशनर की एप्लीकेशन यह कहते हुए सबमिट की कि उसके ससुर की मृत्यु हो गई जो कि फेयर प्राइस शॉप के मालिक थे, जिसके आधार पर एक बहू ने कंपनसेशन के तौर पर फेयर प्राइस शॉप की अलॉटमेंट के लिए एप्लीकेशन फाइल की थी।
बाद में कोर्ट ने फैक्ट्स को माना और शर्मा देवी के फेवर में फैसला सुनाया कि हालांकि 5 अगस्त 2019 की तारीख के अनुसार “परिवार” के गवर्नमेंट आर्डर की डेफिनेशन में एक बहू शामिल नहीं है, लेकिन फिर भी कोर्ट ने फैसला किया कि जिसे यूपी पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड के केस में अल्ट्रा वायर्स माना गया था। कोर्ट ने आर्डर में आगे कहा कि यह इर्रेलवेन्ट है चाहे बहू जीवित हो या ना ही ना हो। परिणामस्वरूप, यह माना जाता है कि कंपनसेशन में फेयर प्राइस शॉप के लिए पिटीशनर की रिक्वेस्ट को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।
यह प्रयागराज के हाई कोर्ट द्वारा पास किये गए एक बहुत ही उल्लेखनीय फैसले में से एक है, जो बहू के अधिकारों के बारे में बहुत ही विचारशील था, ना केवल उस केस में जब उनके हस्बैंड की मृत्यु हो गयी, बल्कि उस केस में भी जब उनके ससुराल वाले नहीं रहे।
इस फैसले से उस परिवार की डेफिनेशन भी बदल जाती है, जहां पहले की बहू परिवार के दायरे में शामिल नहीं थी, जिसे 5 अगस्त 2019 को गवर्नमेंट के आर्डर के पैराग्राफ IV क्लॉज 10 में बताया गया है। लेकिन अब फेयर प्राइस शॉप के केस में महिलाओं को परेफरेंस और प्रायोरिटी दी जाएगी।
महिलाओं को जीवन के हर पहलू में बराबर का अधिकार और मौके देने पर विचार करना बहुत जरूरी है, हालांकि इस महान फैसले के द्वारा हम महिलाओं के अधिकारों को प्राप्त कराने की तरफ एक कदम ओर बढ़ गए है।