भारतीय समाज में विवाह को एक पवित्र संस्था माना गया है, लेकिन जब यह संबंध तनाव, अविश्वास और मानसिक उत्पीड़न में बदल जाता है, तो पति-पत्नी के पास एक कानूनी विकल्प होता है, आपसी सहमति से तलाक।
यह तलाक हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13बी के तहत प्रदान किया गया है, जो ऐसे दंपत्तियों को शांति और सम्मान के साथ वैवाहिक संबंध समाप्त करने की सुविधा देता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कई निर्णयों में यह स्पष्ट किया है कि यदि वैवाहिक संबंध “टूट चुके” हैं और सुधार की कोई संभावना नहीं है, तो तलाक देना ही उचित है।
आपसी सहमति से तलाक के लिए आवश्यक शर्तें
एक वर्ष से अधिक का वैवाहिक पृथक्करण
- हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी के अनुसार, पति-पत्नी को कम से कम एक वर्ष से अलग रहना अनिवार्य है।
- यह केवल एक ही घर में अलग कमरों में रहने की बात नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से एक-दूसरे से दूर होने की स्थिति भी मानी जाती है।
- सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय सुरेशता देवी बनाम ओमप्रकाश में कहा कि यदि पति-पत्नी एक ही घर में रहते हुए भी वैवाहिक संबंध नहीं निभा रहे, तो इसे “अलग रहना” माना जाएगा।
- यह साबित करना होगा कि दोनों पक्षों के बीच कोई भावनात्मक या वैवाहिक संवाद नहीं बचा है।
विवाह का निर्वहन अब संभव न हो
- दोनों पक्षों को यह दर्शाना होता है कि अब वे पति-पत्नी के रूप में नहीं रह सकते और रिश्ता पूर्णतः टूट चुका है।
- कोर्ट इस बात की समीक्षा करता है कि क्या यह निर्णय समझदारी और बिना दबाव के लिया गया है।
- यह भी देखा जाता है कि क्या यह तलाक सिर्फ “सहूलियत” के लिए नहीं लिया जा रहा है।
- यदि कोर्ट को यह स्पष्ट रूप से समझ में आता है कि वैवाहिक संबंध अप्रत्याशित रूप से समाप्त हो चुके हैं, तभी वह तलाक की अनुमति देता है।
गुजारा भत्ता, संपत्ति और बच्चों की कस्टडी पर सहमति
- तलाक की याचिका दायर करने से पहले दोनों पक्षों को सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर सहमति बनानी होती है।
- इनमें मुख्यतः निम्न शामिल होते हैं:
- पत्नी का गुजारा भत्ता (Alimony)
- बच्चों की कस्टडी और पालन-पोषण की जिम्मेदारी
- संपत्ति और बैंक बैलेंस का बंटवारा
- यदि इन मामलों पर असहमति होती है, तो कोर्ट उस याचिका को अस्वीकार कर सकता है।
आपसी सहमति से तलाक की चरणबद्ध प्रक्रिया
चरण 1: संयुक्त याचिका दायर करना
- पति और पत्नी दोनों मिलकर फैमिली कोर्ट में एक संयुक्त याचिका (Joint Petition) दायर करते हैं।
- याचिका में यह बताया जाता है कि वे दोनों अब साथ नहीं रह सकते और सभी शर्तों पर सहमति हो चुकी है।
- याचिका में संबंध के बिगड़ने के स्पष्ट कारण भी बताए जाते हैं।
चरण 2: प्रथम प्रस्तुति (First Motion)
- कोर्ट, दोनों पक्षों के व्यक्तिगत बयान लेती है और यह सुनिश्चित करती है कि सहमति बिना किसी दबाव के दी गई है।
- यदि कोर्ट को यह लगता है कि याचिका वास्तविक और पारदर्शी है, तो वह प्रथम प्रस्तुति को स्वीकार कर लेती है।
- इसके बाद एक निश्चित “Cooling Period” की प्रक्रिया शुरू होती है।
चरण 3: 6 महीने की प्रतीक्षा अवधि (Cooling-Off Period)
- कानूनी रूप से, कोर्ट प्रथम प्रस्तुति के बाद 6 महीने की प्रतीक्षा अवधि देती है।
- इस अवधि के दौरान पति-पत्नी को एक बार फिर सोचने का अवसर दिया जाता है कि वे तलाक को अंतिम रूप देना चाहते हैं या नहीं।
- हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर, (2017) 8 SCC 746 में स्पष्ट किया है कि यदि कोई पुनर्मिलन की संभावना नहीं है, तो इस अवधि को माफ किया जा सकता है।
चरण 4: तलाक की डिक्री (Decree of Divorce – न्यायालय द्वारा दिया गया अंतिम आदेश)
- 6 महीने बाद दोनों पक्ष कोर्ट में दोबारा उपस्थित होते हैं और अंतिम बयान देते हैं।
- कोर्ट यदि संतुष्ट होती है, तो वह तलाक की डिक्री (Decree of Divorce) पारित कर देती है।
- इसके साथ ही, पति-पत्नी का वैवाहिक संबंध कानूनी रूप से समाप्त हो जाता है।
आपसी सहमति से तलाक के लाभ
- मानसिक शांति और सम्मानपूर्वक अलगाव: बिना विवाद या लड़ाई के, दोनों पक्षों को मानसिक रूप से सुकून मिलता है।
- लंबी कानूनी प्रक्रिया से बचाव: केस वर्षों तक कोर्ट में नहीं खिंचता, जिससे समय और ऊर्जा की बचत होती है।
- वित्तीय बचत: चूंकि प्रक्रिया संक्षिप्त होती है, इससे वकील की फीस, दस्तावेज़ीकरण और कोर्ट की प्रक्रियाओं पर होने वाला खर्च काफी कम हो जाता है।
- बच्चों के हितों की रक्षा: समझौते के ज़रिए बच्चों की कस्टडी और पालन-पोषण बेहतर तरीके से तय किया जा सकता है।
प्रमुख केस लॉ
अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर, (2017) 8 SCC 746
इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13बी(2) में दिया गया 6 महीने का कूलिंग पीरियड अनिवार्य नहीं बल्कि न्यायालय के विवेक पर निर्भर (directory) है। यदि कोर्ट को लगता है कि विवाह पूरी तरह समाप्त हो चुका है और सुलह की कोई संभावना नहीं है, तो वह इस अवधि को माफ कर सकती है।
सुरेशता देवी बनाम ओम प्रकाश, (1991) 2 SCC 25
इस ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से तलाक की अवधारणा को विस्तार से समझाया। कोर्ट ने कहा कि सहमति केवल याचिका दाखिल करते समय नहीं बल्कि दूसरे मोशन के समय भी मौजूद होनी चाहिए। यह फैसला आपसी सहमति से तलाक की वैधानिकता और प्रकृति को स्थापित करता है।
हितेश भटनागर बनाम दीपा भटनागर, (2011) 5 SCC 234
इस फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि दूसरे मोशन से पहले कोई एक पक्ष अपनी सहमति वापस ले लेता है, तो कोर्ट तलाक नहीं दे सकती। यह निर्णय इस बात को रेखांकित करता है कि आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया तभी पूरी हो सकती है जब दोनों पक्ष अंत तक सहमत रहें। इसलिए दोनों पक्षों की सहमति प्रक्रिया की हर अवस्था में बनी रहनी चाहिए, वरना तलाक का आदेश नहीं मिल सकता।
कानूनी उद्धरण
आपसी सहमति से तलाक, एक विफल विवाह से बिना किसी दोषारोपण के गरिमामयी विदाई का रास्ता है।”
– न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़
तलाक की प्रक्रिया तभी न्यायसंगत मानी जा सकती है जब सहमति स्वतःस्फूर्त, स्वतंत्र और पूर्ण जानकारी के आधार पर दी गई हो।”
– सुप्रीम कोर्ट, 2011
कानून किसी पुरुष या महिला को उस विवाह को ढोने के लिए बाध्य नहीं करता जो पूर्ण रूप से टूट चुका हो।”
– सुप्रीम कोर्ट
निष्कर्ष
आपसी सहमति से तलाक हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत एक सुलझा हुआ, शांतिपूर्ण और सम्मानजनक विकल्प है। यह न केवल दो जीवनों को स्वतंत्रता देता है, बल्कि उन्हें भविष्य के लिए एक नया रास्ता भी देता है। यदि पति-पत्नी के बीच संबंध इस हद तक बिगड़ चुके हैं कि साथ रहना संभव नहीं, तो यह न केवल कानूनी रूप से उपयोगी उपाय है, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी यह दोनों पक्षों को सम्मानजनक रूप से आगे बढ़ने का अवसर देता है।
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FAQs
1. क्या आपसी सहमति से तलाक एक साल से पहले लिया जा सकता है?
उत्तर: सामान्यतः नहीं, लेकिन विशेष परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट एक साल की समयसीमा को माफ कर सकती है, जैसे कि जब रिश्ता पूरी तरह से खत्म हो चुका हो।
2. क्या दोनों पक्षों की कोर्ट में उपस्थिति अनिवार्य होती है?
उत्तर: हां, सामान्यतः दोनों की व्यक्तिगत उपस्थिति जरूरी है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या वकील के माध्यम से प्रतिनिधित्व संभव हो सकता है।
3. क्या आपसी सहमति से तलाक के बाद पुनर्विवाह किया जा सकता है?
उत्तर: हां, तलाक की डिक्री मिलने के बाद दोनों पक्ष पुनर्विवाह कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए कोई अपील लंबित न हो, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है।
4. पूरी प्रक्रिया में कितना समय लगता है?
उत्तर: यदि कूलिंग पीरियड माफ नहीं किया गया तो 6-18 महीने लग सकते हैं, और यदि कोर्ट इसे माफ कर दे तो यह प्रक्रिया 3-6 महीने में भी पूरी हो सकती है।