भारत में महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा को लेकर विभिन्न कानूनों का निर्माण किया गया है। विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं के मामलों में, जहां उनकी सुरक्षा और अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए शरीअत कानून के तहत प्रावधान किए गए हैं। जब कोई मुस्लिम महिला तलाक के बाद अपनी देखभाल और जीवनयापन के लिए वित्तीय सहायता की मांग करती है, तो उसे “मेंटेनेंस” का अधिकार प्राप्त होता है। यह एक महत्वपूर्ण अधिकार है, जो उसे आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाए रखने में मदद करता है।
इस ब्लॉग का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं के मेंटेनेंस के अधिकार को समझाना है। हम इसके कानूनी आधार, न्यायालय के निर्णय और महिलाएं इस अधिकार का किस प्रकार उपयोग कर सकती हैं, इस पर चर्चा करेंगे।
मेंटेनेंस क्या है?
मेंटेनेंस का अर्थ है किसी व्यक्ति की आर्थिक सहायता, जो उसके जीवन यापन के लिए आवश्यक हो। इसे नफ़क़ा भी कहा जाता है जिसका मतलब है “एक व्यक्ति अपने परिवार पर कितना खर्च करता है”। मेंटेनेंस के अनुसार:
- दुर्र-उल-मुख़्तार: “नाफ़ाका का शाब्दिक अर्थ है वह जो आदमी अपने बच्चों पर खर्च करता है। कानूनी तौर पर इसका मतलब है खाना, कपड़ा और आश्रय, आम तौर पर इसका मतलब खाना होता है।”
- हिदाया: “वह सभी चीज़ें जो जीवन के समर्थन के लिए जरूरी होती हैं, जैसे खाना, कपड़े और आश्रय; बहुत से लोग इसे केवल खाने तक सीमित करते हैं।”
- फतावा-ए-आलमगीरी: “पालन-पोषण में खाना, कपड़ा और आश्रय शामिल होते हैं, हालांकि आम बोलचाल में इसे केवल खाने तक सीमित किया जाता है।”
मुस्लिम कानून के तहत ये तीनो का अर्थ एक ही है, मेंटेनेंस में शिक्षा भी शामिल है। इसमें सभी बुनियादी जरूरतें शामिल होती हैं, लेकिन आरामदायक और महंगे सामान इसमें नहीं आते। मेंटेनेंस का मतलब है वे सारी चीजें जिन्हें व्यक्ति आमतौर पर उपयोग करता था। शौहर पर अपनी पत्नी, बच्चों, और माता-पिता को मेंटेनेंस प्रदान करने का कर्तव्य होता है।
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मुस्लिम महिलाओं को मेंटेनेंस कब मिलता है?
मुस्लिम महिलाओं को मेंटेनेंस मिलने के 2 तरीके होते है जिसे इस प्रकार समझा जा सकता है :
विवाह के दौरान दिए जाने वाला मेंटेनेंस: जब पत्नी अपने पति के साथ रहती है, तो पति का यह कर्तव्य होता है कि वह उसकी सभी बुनियादी जरूरतें, जैसे खाना, कपड़ा, और रहने की जगह प्रदान करे। यह कर्तव्य तब तक होता है जब तक विवाह कायम है।
तलाक के बाद दिए जाने वाला मेंटेनेंस : अगर विवाह टूट जाता है, तो पत्नी को मेंटेनेंस का हक हो सकता है, खासकर अगर उसके पास पैसे का कोई ज़रिया नहीं है या बच्चों की देखभाल करनी हो।
विवाह के दौरान मुलिम महिलाओं को मेंटेनेंस कैसे दिया जाता है?
पति को अपनी पत्नी का मेंटेनेंस(भरण पोषण) करने का कर्तव्य होता है। मुस्लिम कानून के अनुसार, पति को अपनी पत्नी का मेंटेनेंस करना जरूरी है, जब तक वह आज्ञाकारी और उसके साथ रहती है। यह कर्तव्य पूरा करना आवश्यक है, चाहे पत्नी युवा हो, वृद्ध हो, मुस्लिम हो या गैर-मुस्लिम, और चाहे वह अमीर हो या गरीब।
अगर पत्नी अमीर है या अच्छी जॉब करती है और पति कम संपत्ति वाला है या काम कमाता है , तब भी पति को पत्नी का मेंटेनेंस करना ही होता है। लेकिन यह तभी लागू होगा जब विवाह वैध हो। यदि विवाह अवैध हो, तो पत्नी अपने पति से मेंटेनेंस की मांग नहीं कर सकती।
साधारण मेंटेनेंस के अलावा, खर्च-ए-पंदन, गुजारा या मेवा-खोरी जैसे विशेष मेंटेनेंस भी होते हैं। ये अतिरिक्त भुगतान होते हैं जो पति पत्नी को एक समझौते के तहत देते हैं। ये मेंटेनेंस पत्नी की व्यक्तिगत संपत्ति माने जाते हैं, और वह इन्हें अपनी इच्छा से इस्तेमाल कर सकती है। यह समझौता पति-पत्नी के बीच किया जा सकता है।
अली अख़ान बनाम फातिमा केस में, मेंटेनेंस के अलावा, एक समझौता किया गया था जिसमें महिला को 2500 रुपये खर्च-ए-पंदन के रूप में दिए जाने थे। अदालत ने यह फैसला दिया कि महिला को यह राशि मिलने का हक है, भले ही वह अपने पति के घर वापस लौटने से मना कर दे या मेंटेनेंस का अधिकार लेने से मना कर दे।
किन परिस्थितियों में महिला मेंटेनेंस की हकदार नहीं होगी?
पति को अपनी पत्नी का मेंटेनेंस देने का कर्तव्य केवल कुछ मामलों में नहीं होता:
- जब पत्नी आज्ञाकारी नहीं होती और पति की उचित मांगों का पालन नहीं करती।
- जब पत्नी इतनी छोटी होती है कि वह पति के साथ शारीरिक संबंध नहीं बना सकती।
- जब पत्नी बिना किसी उचित कारण के अपने पति को छोड़ देती है।
- जब पत्नी किसी अपराध की जेल में सजा काट रही हो।
मो. मुइन–उद–दीन बनाम जमाल फातिमा मामले में, पत्नी अपने पिता के घर रहती थी और कभी-कभी अपने पति के घर जाती थी। अदालत ने यह निर्णय दिया कि इस मामले में पति को अपनी पत्नी को मेंटेनेंस देने की कोई ज़िम्मेदारी नहीं थी। हालांकि, अगर पत्नी के पास पति के साथ रहने से मना करने का सही कारण है, तो वह मेंटेनेंस का दावा कर सकती है।
क्या तलाक के बाद मुस्लिम महिलाओं को मेंटेनेंस का अधिकार होता है?
एक मुस्लिम महिला को तलाक के बाद मेंटेनेंस का अधिकार होता है, और वह इसे अपनी इद्दत अवधि खत्म होने तक प्राप्त कर सकती है। यदि तलाक के समय वह गर्भवती है, तो उसे बच्चे के जन्म तक मेंटेनेंस मिलता रहेगा। यह समर्थन उसे इस अवधि के दौरान आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है।
बी. दास बनाम अंगुरी के मामले में, मुस्लिम वुमन ( प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स ऑन डाइवोर्स ) एक्ट, 1986 के लागू होने से पहले, यह माना जाता था कि मुस्लिम महिला को धारा 125, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड Cr.P.C. (अब धारा 144 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023) के तहत जीवन भर मेंटेनेंस का अधिकार होता है, जब तक वह दुबारा शादी नहीं करती। लेकिन वह मेंटेनेंस को क्लेम कर सकती है पूरी ज़िन्दगी भर अगर वह कोई दूसरी शादी नहीं करती। वह अपने मेंटेनेंस का अधिकार तब जरूर खो सकती है जब वह दोबारा शादी कर लेती है या फिर वह किसी और के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनती है।
मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम, 1985 AIR 945 – भारतीय कानून का एक ऐतिहासिक मामला है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के मेंटेनेंस के अधिकार को मान्यता दी। कोर्ट ने फैसला दिया कि यदि एक मुस्लिम महिला को तलाक के बाद आर्थिक सहायता की आवश्यकता है, तो उसे उसे मेंटेनेंस देने का आदेश दिया जा सकता है, भले ही वह शरीअत के तहत तलाक प्राप्त कर चुकी हो। यह निर्णय मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण था, हालांकि इस फैसले के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को कम करने के लिए मुस्लिम वुमन( प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स ऑन डाइवोर्स ) एक्ट, 1986 पारित किया।
क्या मुस्लिम वुमन (प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स ऑन डाइवोर्स) एक्ट, 1986 मौलिक अधिकारों का उलंघन करता है?
यह मुद्दा शाह बानो केस के बाद उत्पन्न हुआ, जिसमे बाद मुस्लिम वुमन ( प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स ऑन डाइवोर्स ) एक्ट, 1986 बनाया गया था। इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा करना था। हालांकि, शाह बानो के वकील दानियल लतीफी ने इस एक्ट की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी, यह कहते हुए कि यह भारतीय संविधान के विभिन्न प्रावधानों से मेल नहीं खाता। ये प्रावधान थे:
- अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता),
- अनुच्छेद 15 (धर्म, जाति, लिंग, या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव निषेध),
- अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा)।
सुप्रीम कोर्ट ने दानियल लतीफी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया,2001 के मामले में निर्णय दिया कि पति अपनी तलाकशुदा पत्नी को उचित मेंटेनेंस देने के लिए जिम्मेदार है। कोर्ट ने यह भी कहा कि पति को पत्नी की जीविका के लिए आवश्यक राशि, इद्दत अवधि के बाद भी देनी होगी।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अगर मुस्लिम तलाकशुदा महिला ने फिर से विवाह नहीं किया है और वह इद्दत पीरियड के बाद खुद को समर्थन देने में असमर्थ है, तो वह मेंटेनेंस के लिए आवेदन कर सकती है। अंत में, कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि इस एक्ट के प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उलंघन नहीं करते और इसलिए यह एक्ट संविधान के अनुसार वैध है।
पति द्वारा मेंटेनेंस न देने पर मुस्लिम महिला क्या कर सकती है?
अगर एक मुस्लिम महिला का पति उसे मेंटेनेंस देने से मना कर रहा हैं, तो वह ये कदम उठा सकती हैं:
- एक एक्सपर्ट वकील से सलाह लें: सबसे पहले उसे एक एक्सपर्ट वकील से सलाह लेनी चाहिए। वकील उसकी स्थिति को समझकर उसे सही मार्गदर्शन देगा और कानूनी अधिकारों के बारे में बताएगा।
- कानूनी नोटिस भेजें: वकील के माध्यम से पति को एक कानूनी नोटिस भेजा जा सकता है, जिसमें मेंटेनेंस का दावा किया जाएगा।
- फैमिली कोर्ट में याचिका दायर करें: अगर पति नोटिस का पालन नहीं करता, तो महिला फैमिली कोर्ट में मेंटेनेंस की याचिका दायर कर सकती है। कोर्ट मामले की सुनवाई कर निर्णय लेगा कि महिला को मेंटेनेंस मिलना चाहिए या नहीं, और यदि हां, तो कितनी राशि दी जाएगी।
निष्कर्ष
मुस्लिम महिलाओं का मेंटेनेंस से संबंध एक महत्वपूर्ण कानूनी और सामाजिक मुद्दा है, जो धार्मिक, ऐतिहासिक, और कानूनी दृष्टिकोण से प्रभावित है। शरीअत के तहत महिलाओं को मेंटेनेंस का अधिकार दिया गया है, लेकिन भारतीय समाज में महिलाओं की सामाजिक और कानूनी स्थिति ने इसे लागू करने में कई कठनाई उत्पन्न की हैं।
हालांकि, भारत में न्यायालयों और कानूनों के माध्यम से मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को संरक्षित किया गया है, लेकिन उन्हें इन अधिकारों का उपयोग करने में विभिन्न सामाजिक, कानूनी और पारिवारिक दबावों का सामना करना पड़ता है। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए और भी प्रभावी उपाय किए जाएं ताकि वे अपने अधिकारों का पूरी तरह से लाभ उठा सकें। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस अधिकार का प्रभावी ढंग से उपयोग हो और महिलाएं अपने अधिकारों को पूरी तरह से प्राप्त कर सकें।
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FAQs
क्या कमाने वाली मुस्लिम महिला मेंटेनेंस का दावा कर सकती है?
हां, एक मुस्लिम महिला यदि काम करती है और पैसे कमाती है, तो भी वह मेंटेनेंस की मांग कर सकती है। पति का दायित्व केवल इस वजह से खत्म नहीं हो जाता कि पत्नी काम कर रही है।
कौनसी परिस्थितियों में मुस्लिम महिला को मेंटेनेंस का हक नहीं होता?
मुस्लिम महिला को मेंटेनेंस का हक नहीं होता जब वह अपने पति के साथ न रहने का सही कारण नहीं देती, जब वह छोटी होती है और शारीरिक संबंध नहीं बना सकती, या जब वह किसी अपराध के कारण जेल में सजा काट रही होती है।
अगर पति मेंटेनेंस नहीं देता, तो मुस्लिम महिला क्या कदम उठा सकती है?
अगर पति मेंटेनेंस नहीं देता, तो महिला सबसे पहले एक वकील से सलाह ले सकती है, फिर कानूनी नोटिस भेज सकती है और अगर जरूरत पड़े तो फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर सकती है।