एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट और इसका महत्व

एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट और इसका महत्व

एक नियोक्ता (employer) और कर्मचारी (employee) के बीच हुआ एक औपचारिक रोजगार समझौता (formal employment contract) कर्मचारी के उस कंपनी के साथ काम करने के सभी नियम, कानून और शर्तों को तय करता है। यह निहित, मौखिक या लिखित हो सकता है, और अक्सर कर्मचारी को एक नई कंपनी ज्वाइन करने से पहले एक फॉर्मल कॉन्ट्रैक्ट पर साइन करना होता है। क्योंकि हर कंपनी के कुछ नियम और कानून होते है, जिनका वहां काम करने वाले सभी कर्मचारियों द्वारा पालन किया जाना चाहिए। यह कॉन्ट्रैक्ट नियोक्ता और कर्मचारी दोनों के दायित्वों, जिम्मेदारियों और अधिकारों के बारे में बताता है। भविष्य में जरूरत पड़ने पर इस कॉन्ट्रैक्ट को सबूत के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। 

एक एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट का उपयोग मुख्य रूप से कर्मचारियों को नौकरी की सुरक्षा देने और नियोक्ताओं को कर्मचारियों द्वारा किये जाने वाले अस्पष्ट (कभी कम कभी ज्यादा) काम के घंटों की वजह से कम हुई उत्पादकता (productivity) जैसे खतरों से बचाने के लिए किया जाता है। यह कॉन्ट्रैक्ट इस बात की भी गारंटी देता हैं कि पार्टियां कंपनी के नियमों का पालन करेंगी और जरूरत पड़ने पर या कोई भी विवाद पैदा होने पर उसका सही हल निकाला जायेगा। किसी भी कंपनी के लिए एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट की जरूरत पड़ने पर मुम्बई के कॉरपोरेट लॉयर्स/वकीलों से मदद ली जा सकती है। वह आपकी कंपनी के लिए एक बेहतरीन कॉन्ट्रैक्ट तैयार कर सकते है।

अलग अलग तरह के एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट:

फुल-टाइम कॉन्ट्रैक्ट: 

स्थायी कर्मचारी इस प्रकार के कॉन्ट्रैक्ट के लिए चुने जाते है। इस प्रकार के कॉन्ट्रैक्ट को सबसे अच्छा माना जाता है। यह सबसे पूर्ण होते है। एक एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट के लिए सभी जरूरी डिटेल्स उसमे लिखित रूप से दी जाती हैं।

इसे भी पढ़ें:  डूबे हुए पैसों को प्राप्त करने की कानूनी प्रक्रिया क्या है?

पार्ट-टाइम कॉन्ट्रैक्ट:

यह उन कर्मचारियों को उपलब्ध कराए जाते हैं, जो आधे दिन या 1 पूरा दिन 1 पर्टिकुलर कंपनी के लिए काम नहीं करते हैं। इन कर्मचारियों को पार्ट-टाइम कर्मचारी कहा जाता है और फुल-टाइम कर्मचारियों के मुकाबले इन्हे कम घंटे काम पर रखा जाता है। इन्हे आमतौर पर कंपनी द्वारा दिए जाने वाले बोनस और अन्य लाभ नहीं दिए जाते हैं।

ज़ीरो-घंटे कॉन्ट्रैक्ट्स:

शून्य-घंटो का कॉन्ट्रैक्ट उन कर्मचारियों को दिया जाता है जो केवल कभी-कभी या नौकरी के अवसर आने पर काम करते हैं। शून्य-घंटे के कॉन्ट्रैक्ट में, नियोक्ता रोजगार उपलब्ध होने पर मौखिक या लिखित रूप से कर्मचारी को बताता है और काम करने के लिए देता है, और कर्मचारी उन घंटों में काम करने और कॉल पर उपलब्ध होने के लिए सहमत होता है।

कैज़ुअल कॉन्ट्रैक्ट्स:

ज्यादातर आकस्मिक ठेके या कैज़ुअल कॉन्ट्रैक्ट्स उन कर्मचारियों को दिए जाते हैं जो अस्थायी (unstable) होते हैं। कैज़ुअल कॉन्ट्रैक्ट्स में, नियोक्ता आमतौर पर पहले ही स्पष्ट कर देते हैं कि श्रमिकों या कर्मचारियों को केवल पूरे किये गए कामों के लिए ही भुगतान किया जाएगा। इसके अलावा, उन्हें विशिष्ट/ स्पेसिफिक घंटों या शिफ्ट के अनुसार काम करने की कोई जरूरत नहीं है। 

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

फ्रीलॉन्स कॉन्ट्रैक्ट:

यह कॉन्ट्रक्ट उन लोगों को उपलब्ध कराए जाते हैं जिन्हें काम करने के लिए एक विशिष्ट परियोजना/प्रोजेक्ट या असाइनमेंट्स सौंपे जाते है। यह समझौते मुख्य रूप से दिए गए प्रोजेक्ट की बारीकियों पर ध्यान देते हैं और समय पर भुगतान के लिए फ्रीलांसरों के अधिकारों की रक्षा करते हैं।

इसे भी पढ़ें:  भारत में चाइल्ड कस्टडी के कानूनी पहलू क्या है?

यूनियन कॉन्ट्रैक्ट:

जब कोई कर्मचारी किसी स्थानीय या राष्ट्रीय श्रमिक संघ (labour union) में शामिल होता है, तो उन्हें आम तौर पर यूनियन कॉन्ट्रैक्ट दिए जाते हैं, जो मानकीकृत कानूनी समझौते (standardised legal agreements) होते हैं। यह कॉन्ट्रैक्ट्स आमतौर पर विशेष ट्रेडों (trades) में श्रमिकों को दिए जाते हैं, चाहे वह सीधे यूनियन द्वारा नियोजित हों या किसी प्राइवेट कंपनी द्वारा।

फिक्स्ड-टर्म कॉन्ट्रैक्ट:

एक निश्चित समय का कॉन्ट्रैक्ट उन श्रमिकों के लिए होता है जो केवल थोड़े समय के लिए काम करते हैं या जब तक वे एक निश्चित काम पूरा नहीं करते हैं।

एट-विल कॉन्ट्रैक्ट:

एट-विल समझौते एक प्रकार का एम्प्लॉयमेंट एग्रीमेंट होता है जो एक कॉन्ट्रैक्ट की तरह ही होता है लेकिन कर्मचारियों को बहुत सारे लाभ प्रदान नहीं करता है। एट-विल एग्रीमेंट्स अक्सर सभी विषयों/टॉपिक्स को कॉन्ट्रैक्ट के रूप में कवर करते हैं, लेकिन वह शायद ही कभी काम करने की अवधि (Time period) को परिभाषित करते हैं।

एट-विल एग्रीमेंट्स एक विसंगति के मामले में लागू करना इसलिए मुश्किल है क्योंकि वे श्रमिकों को किसी भी समय अपनी नौकरी छोड़ने की अनुमति देते हैं और नियोक्ता को उन्हें बिना किसी वजह के नौकरी से निकालने की अनुमति देते हैं।

कंसल्टेंसी एग्रीमेंट:

एक सलाहकार समझौते का उपयोग आमतौर पर कंपनियों द्वारा उन लोगों की भर्ती के लिए किया जाता है जो उनके लिए काम नहीं करते है बल्कि किसी और कंपनी के लिए काम करते है। अगर कोई व्यक्ति खुद के लिए काम करने के बारे में सोंच रहा है, तो लगभग हमेशा एक कंसल्टेंसी एग्रीमेंट बनवाने की जरूरत पड़ती है। शब्द “सेवाओं के लिए अनुबंध” (contract for services) कानून में अक्सर प्रयोग किया जाता है, लेकिन इसे कहीं भी स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है। दूसरी तरफ, सेवा के अनुबंध को टैक्स और रोजगार कानूनों में एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट के रूप में बताया जाता है।

इसे भी पढ़ें:  इल्लीगल टर्मिनेशन के लिए शिकायत कैसे दर्ज करें?

सेकेंडमेंट:

सेकेंडमेंट एग्रीमेंट की शर्तों के तहत, एक कर्मचारी को उसके नियोक्ता द्वारा उसी कंपनी के दूसरे डिवीजन या शाखा या किसी बाहरी कंपनी के लिए लीज़ पर रखा जाता है। सेकेंडमेंट के दौरान भी व्यक्ति पहली कंपनी द्वारा ही नियोजित/हायर किया गया माना जाता है। उसका पद (position) बदली नहीं जाती है।

Social Media