नकली फार्मेसियों और अस्पताल नागरिकों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं

नकली फार्मेसियों और अस्पताल नागरिकों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं

जज श्री शाह और एमएम सुंदरेश की बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि एक नकली फार्मासिस्ट, जो पंजीकृत नहीं है, उसके द्वारा किसी भी मेडिकल स्टोर, अस्पताल या फार्मेसी चलाना, आम लोगों या नागरिकों के स्वास्थ्य को गलित तरीके से प्रभावित कर सकता है।

मुकेश कुमार नाम के व्यक्ति के द्वारा माननीय पटना हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका/पिटीशन फाइल की थी। इस पिटीशन में मुकेश कुमार द्वारा आरोप लगाया कि कुछ सरकारी अस्पताल/हॉस्पिटल ऐसे भी हैं जहां एक बिना वेरिफ़ायड़ फार्मासिस्ट एक सही और रजिस्टर्ड वेरिफ़ायड़ फार्मासिस्ट के रूप में अपना कर्तव्य निभा रहा है। कहीं-कहीं क्लर्कों, नर्सों को इस प्रकार की ड्यूटी दी जाती है, जिसे केवल एक पंजीकृत फार्मासिस्ट द्वारा ही किया जाना चाहिए, इसलिए इस पिटीशन को माननीय हाई कोर्ट द्वारा प्रस्तुत करते हुए डिस्पोज़ किया गया और कोर्ट द्वारा यह बात पूरी तरह से स्पष्ट किया गया कि केवल वही व्यक्ति एक फर्मिस्ट बनने के लिए एलिजिबल हैं जो बिहार फार्मेसी परिषद राज्य की सभी शर्तों को पूरा करता हो और इसके द्वारा ही पंजीकृत हो। 

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कोर्ट की बेंच ने कहा कि फर्जी या नकली फार्मासिस्ट को मेडिकल स्टोर में काम करने की अनुमति देने से नागरिकों के स्वास्थ्य और नागरिकों के जीवन पर भी बहुत बुरा असर पड़ेगा, इसीलिए राज्य को इस पर ध्यान देना चाहिए और ऐसे नकली फार्मासिस्टों को रोकने के लिए नियम बनाने चाहिए और इनपर बैन लगाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को बिहार राज्य और बिहार राज्य फार्मेसी कॉउंसिल से रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए भी निर्देश दिया, जिस रिपोर्ट में निम्नलिखित चीजे शामिल होनी चाहिए – 

  1. ऐसे सरकारी अस्पताल, प्राइवेट अस्पताल और मेडिकल स्टोर की संख्या, जो नकली फार्मासिस्ट या गैर-पंजीकृत फार्मासिस्ट द्वारा चलाए जा रहे हैं।
  2. अगर कोई फर्जी फार्मासिस्ट है। 
  3. ऐसे नकली को रोकने के लिए ऐसी कोई कार्रवाई। 
  4. अगर फार्मेसी प्रैक्टिस रेगुलेशन का पालन किया जा रहा है।
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सुप्रीम कोर्ट ने यह तय किया कि ऐसे नकली फार्मासिस्टों के काम को ख़ारिज कर दिया जाना चाहिए जो फार्मासिस्ट के रूप में योग्य नहीं हैं, जज शाह ने सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि राज्य का कोई भी अस्पताल पंजीकृत वेरिफ़ायड़ फार्मासिस्ट की मदद के बिना किसी भी दवा को बेच या बाँट नहीं सकता है। अगर ऐसे अनधिकृत/अनऑथोरायज़ड़ व्यक्ति या अप्रशिक्षित व्यक्ति किसी भी बीमारी की कोई भी दवा बाँटते हैं क्योंकि गलत खुराक से गंभीर स्वास्थ्य परेशानियाँ हो सकती हैं, और फिर इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा, और इस प्रकार कोर्ट ने कहा कि वह सभी राज्य सरकार को लोगों और नागरिकों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दे सकते हैं।

इस केस में, बिहार की राज्य सरकार ने बिहार राज्य फार्मेसी कॉउंसिल को दोष दिया, सरकार ने कहा कि यह कॉउन्सिल का कर्तव्य है कि वह रजिस्टर बनाए रखे और फार्मासिस्ट के नामांकन को देखभाल करे, यह कॉउंसिल का कर्तव्य और जिम्मेदारी है कि ऐसे अपंजीकृत और गैर-सत्यापित (unregistered and non-verified) फार्मासिस्ट के खिलाफ कार्रवाई करें, क्योंकि इससे नागरिकों का जीवन गलत तरीके से प्रभावित हो सकता है।

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