दोस्तों हाल ही में एक बेहद चिंताजनक घटना सामने आई जिसमें उत्तर प्रदेश की एक महिला जज ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को एक लेटर लिखकर अपने साथ हुई यौन उत्पीड़न की घटना का हवाला देते हुए इच्छा मृत्यु की अनुमति मांगी। घटना दर्दनाक है लेकिन इसके बारे में जानकारी होना बहुत आवश्यक है। इच्छा मृत्यु क्या है? और भारत में इच्छा मृत्यु पर कौन से नियम और कानून हैं?
आज अपने इस ब्लॉग पोस्ट में हम इसी बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।
क्या था पूरा मामला
इच्छा मृत्यु मांगने वाली महिला उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में बतौर जज तैनात हैं। पिछले दिनों इन महिला जज का एक लेटर वायरल हुआ जिसमें महिला जज ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर अपने साथ हुए सेक्सुअल हैरेसमेंट का जिक्र किया था।
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इस पत्र में बड़े भाव अंदाज में महिला जज ने लिखा था कि मैं दूसरों को न्याय दिलाती हूं लेकिन अदालत में हमारा खुद का शारीरिक शोषण किया गया। आम आदमी की तरह जब मैंने इंसाफ की गुहार लगाई तो पूरे मामले को अनसुना कर दिया गया। पत्र में आगे महिला ने लिखा कि मैंने न्यायिक सेवा इसीलिए ज्वाइन की थी कि मैं लोगों को न्याय दिला सकूं लेकिन मैं खुद ही यहां पर सुरक्षित नहीं हूं और खुद को न्याय नहीं दिला पा रही हूं। इन सब बातों से मैं अंदर तक टूट चुकी हूं और मेरे पास सुसाइड का कोई ऑप्शन नहीं है इसलिए मुझे इच्छा मृत्यु की इजाजत दे दी जाए।
इच्छा मृत्यु का क्या मतलब है ?
एक्टिव यूथेनेशिया यानी सक्रिय इच्छामृत्यु और पैसिव यूथेनेशिया यानी निष्क्रिय इच्छामृत्यु –
इच्छामृत्यु का मतलब होता है किसी व्यक्ति की इच्छा से उसे मृत्यु दे देना। इसमें डॉक्टर की मदद से उसके जीवन को खत्म किया जाता है, ताकि मौत के दौरान उसे उस तकलीफ या दर्द से छुटकारा दिलाया जा सके, जो असाध्य है। इच्छामृत्यु दो तरह से दी जाती है:
एक्टिव यूथेनेशिया यानी सक्रिय इच्छामृत्यु – एक्टिव यूथेनेशिया या सक्रिय इच्छामृत्यु में, किसी मरीज़ को सक्रिय तरीकों से मारा जाता है। उदाहरण के लिए, मरीज़ को दवा की घातक खुराक का इंजेक्शन लगाना। एक्टिव यूथेनेशिया में, मरीज़ की मंज़ूरी के बाद जानबूझकर ऐसी दवाइयां दी जाती हैं जिससे मरीज़ की मौत हो जाए। यह केवल नीदरलैंड और बेल्जियम में वैध है।
पैसिव यूथेनेशिया यानी निष्क्रिय इच्छामृत्यु – पैसिव यूथेनेशिया (Passive Euthanasia) को निष्क्रिय इच्छामृत्यु भी कहते हैं. यह एक ऐसा तरीका है जिसमें किसी मरीज़ को वे चीज़ें देना बंद कर दिया जाता है जिस पर वह ज़िंदा है। उदाहरण के लिए पैसिव यूथेनेशिया में, चिकित्सा उपचार को रोका या वापस लिया जाता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो एक्टिव यूथेनेशिया वह है, जिसमें मरीज़ की मृत्यु के लिए कुछ किया जाए, जबकि पैसिव यूथेनेशिया वह है जहां मरीज़ की जान बचाने के लिए कुछ न किया जाए।
भारत में इच्छा मृत्यु पर क्या कानून हैं?
यूथेनेशिया यानी इच्छा मृत्यु पर भारत के संविधान में कोई भी उल्लेख नहीं किया गया है। देश की संसद ने भी इस विषय पर कभी कोई बिल नहीं पारित किया है। जिस किसी व्यक्ति को इच्छा मृत्यु चाहिए होती है उसे इसके लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2018 में इच्छामृत्यु की मंज़ूरी दी थी। हालांकि, भारत में सिर्फ़ पैसिव यूथेनेशिया यानी निष्क्रिय इच्छामृत्यु की ही मंज़ूरी है सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ऐसे मामलों में इच्छामृत्यु को वैध घोषित किया था। लेकिन, डर था कि कहीं इस आदेश का दुरुपयोग न होने लगे। इसी आशंका को दूर करने के लिए इजाज़त की प्रक्रिया कठिन बनाई गई थी। इसमें इच्छामृत्यु मांगने वाले व्यक्ति का वसीयतनामा कराया जाता है। इस वसीयतनामा को लिविंग विल कहा जाता है।
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार जिस व्यक्ति को इच्छा मृत्यु चाहिए उसके पूरे परिवार को इसकी जानकारी होनी चाहिए।
खास तौर पर भारत में इच्छा मृत्यु का प्रावधान असाध्य रोगियों के लिए किया गया है। कई बार व्यक्ति को कुछ ऐसे असाध्य रोग हो जाते हैं जिनका ठीक हो पाना संभव नहीं होता ऐसे में वह आदमी इच्छा मृत्यु मांग सकता है।
कई बार इच्छा मृत्यु और आत्महत्या को एक साथ देखा जाता है लेकिन हकीकत में यह दोनों अलग-अलग होते हैं। भारतीय दंड संहिता आईपीसी की धारा 309 के तहत आत्महत्या को भारत में अपराध घोषित किया गया। आत्महत्या की कोशिश करने वाले व्यक्ति को जुर्माना और एक साल तक की सजा का प्रावधान भी किया गया है।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इच्छा मृत्यु को पूर्णतया वैध बताया था लेकिन इच्छामृत्यु हर किसी को नहीं मिल सकती इसके लिए एक व्यापक पैमाना तय किया है। जैसे –
- इच्छा मृत्यु कोमा में जा चुके मरीज जिनके बचने की संभावना ना के बराबर हो उसे दी जा सकती है।
- एड्स या कैंसर जैसे भयानक पीड़ा दाई रोग हों।
उम्मीद है इस ब्लॉग पोस्ट से आपकी जानकारी इस संवेदनशील विषय पर बढ़ी होगी। किसी भी तरह की लीगल हेल्प के लिए आज ही हमारी कंपनी लीड इंडिया से संपर्क करें।