विरासत के सामान्य सिद्धांत

विरासत के सामान्य सिद्धांत

वसीयत या  विरासत क्या होती है, क्या हैं इसके नियम? 

विरासत, किसी मृत व्यक्ति के नाम से जीवित व्यक्ति के  नाम पर प्रापर्टी के ट्रांसफर करने की प्रक्रिया होती है। जब भी किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उसकी सारी प्रापर्टी उसके उत्तराधिकारी को मिलती है। कई बार व्यक्ति जिंदा रहते ही अपनी सारी प्रापर्टी को अपने उत्तराधिकारी के नाम पर कर देता है उस प्रक्रिया को वसीयत कहते हैं लेकिन भारत में अधिकतर प्रापर्टी व्यक्ति के मरने के बाद ही उत्तराधिकारी के नाम पर आती है। विरासत की प्रापर्टी किस तरह से उत्तराधिकारी के नाम पर आती है, इसके कुछ नियम व सिद्धांत होते हैं। जिन्हें विरासत के सिद्धांत कहा जाता है।   विरासत के सिद्धांत सामाजिक, धार्मिक, और कानूनी मान्यताओं पर आधारित होते हैं और एक देश से दूसरे देश में भिन्न हो सकते हैं। यह सिद्धांतों का संग्रह विशेषतः पारिवारिक और सम्पत्ति के बारे में धार्मिक और सामाजिक आदर्शों पर आधारित होता है। सरल शब्दों मेे कहें तो विरासत मृत व्यक्तियों की संपत्ति के कब्ज़े में जीवित व्यक्तियों का प्रवेश है। आज अपने इस ब्लॉग पोस्ट में जानेंगे कि आखिर विरासत के सिद्धांत कौन-कौन से हैं।

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कुछ महत्वपूर्ण विरासत के सामान्य सिद्धांत निम्नलिखित हैं

  • संपत्ति का स्वामित्व: यह सिद्धांत कहता है कि एक व्यक्ति की संपत्ति उसके मरने के बाद उसके अधिकारी या उत्तराधिकारियों में बराबर वितरित होगी।
  • नियमित और अनियमित विरासत:  नियमित विरासत में मृतक व्यक्ति ने एक वसीयत या विरासत के रूप में एक व्यक्ति को अपने धन का निर्धारण किया होता है, जबकि अनियमित विरासत में कोई वसीयत या विरासत निर्धारित नहीं होती है और संपत्ति का वितरण नियमों  के अनुसार होता है। अर्थात  इससे पता चलता है कि मृतक ने अपनी सम्पत्ति किसी के नाम की है या नहीं| 
  • मृतक की संपत्ति, अंतिम संस्कार के खर्च, और अगर मृतक के सर पर कोई ऋण हैं तो उसके भुगतान के बाद ही संपत्ति उसके उत्तराधिकारी को  विरासत में मिलती है।
  • विरासत में चल और अचल संपत्ति के साथ वंश परंपरा से चले आ रहे नियमों को आधार बनाया जाता है । अगर मृतक का कोई सगा उत्तराधिकारी जैसे पुत्र आदि नहीं है तो विरासत उसके नजदीकी नातेदार यानी रिश्तेद्दार को भी  मिल सकती है। बशर्ते मालिक के उत्तराधिकारी की भी मृत्यु हो गयी हो या उत्तराधिकारी हो ही ना।
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हिंदू विरासत अधिनियम क्या है ? 

हिंदू विरासत कानून भारतीय संपत्ति विवादों और विरासत के मामलों को नियंत्रित करने के लिए बनाए गए कानूनों का संग्रह है। हिंदू विरासत कानून में विभिन्न नियम और सिद्धांत शामिल होते हैं, जो हिंदू धर्म के अनुसार विरासत के वितरण और संपत्ति के प्रबंधन को निर्धारित करते हैं। हिंदू विरासत कानून का मुख्य उद्देश्य न्यायिक और कानूनी संघर्षों का समाधान करना है और विरासत के वितरण में न्यायिक निष्पक्षता सुनिश्चित करना है।

कुछ महत्वपूर्ण हिंदू विरासत कानून सिद्धांतों को निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जा सकता है:

हिंदू संपत्ति विनियमन अधिनियम, 1956

इस अधिनियम के अंतर्गत, हिंदू व्यक्ति की मृत्यु के बाद, उनकी संपत्ति का वितरण और विरासत में समानता सुनिश्चित की जाती है। यह अधिनियम हिंदू परिवारों में संपत्ति के वितरण, संपत्ति का प्रबंधन और संपत्ति की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

कॉपरेशन के अनुसार विरासत

हिंदू विरासत कानून में, एक व्यक्ति के विरासत में संपत्ति का वितरण उसके निजी कॉपरेशन के अनुसार होता है। इसका अर्थ है कि हिंदू धर्म को मानने वाले किसी भी व्यक्ति की संपत्ति में है उसके ना रहने के बाद उसके पिता, माता, पति, पत्नी, बच्चे और पौत्रों का पहले अधिकार मिलता है।

हिंदू विवाह अधिनियम, 1955

यह अधिनियम भी  विवाहित हिंदू जोड़ों के विरासत अधिकारों के बारे में विस्तार से बताता है। इसमें विवाहित पति और पत्नी के बीच संपत्ति के वितरण के नियम और प्रक्रिया का प्रावधान है।

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