देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने हिन्दू महिला के संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिन्दू विवाहिता के मायके पक्ष से जुड़े लोगो को बाहरी व्यक्ति नहीं हैं और वो उसकी संपत्ति में हिस्सा ले सकते हैं। दरअसल हिन्दू विवाहिता के संपत्ति के अधिकार का ये मामला जगनो से जुडा है। 1953 में जगनो के पति की मृत्यु के बाद उनके हिस्से में संपत्ति आई। जगनो के संतान ना होने के कारण उन्होंने अपनी सम्पत्ती अपने भाई के बच्चो के नाम कर दी। इसके बाद उनके देवर के बच्चो ने जगनो के इस फैसले के खिलाफ कोर्ट में केस कर दिया। कोर्ट में उन्होंने याचिका दी कि यह संपत्ति जगनो को पारिवारिक समझौते के तहत दी गयी थी और जगनो के भाई के बच्चे परिवार में नहीं आते।
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लेकिन निचली अदालतों ने जगनो के पक्ष में फैसला दिया। इसके बाद जगनो के देवर के बच्चो ने इन फैसलों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। यहाँ सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों के फैसले को कायम रखते हुए इस मामले पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 (1)(डी) में हिन्दू विवाहिता के मायके पक्ष को परिवार में शामिल किया गया है अत: उन्हें बाहरी नहीं कहा जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने इसके पहले के दिए कई फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि कोर्ट इसके पहले भी ऐसे केसों में इस तरह के पहलुओं पर विचार कर चुका है। यहाँ हमें परिवार को व्यापक अर्थो में देखने की जरूरत है। परिवार सीमित लोगो का नहीं होता जिसमे केवल नजदीकी रिश्तेदार उत्तराधिकारी आते हैं बल्कि परिवार में वो सभी आयेंगे जिनका उस संपत्ति में थोडा भी मालिकाना हक बनता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 15 में हिंदू महिला के उत्तराधिकारियों को विस्तार से बताया गया है। कोर्ट ने कहा कि धारा 15(1)(डी) में बताया गया है कि हिन्दू महिला के पिता के उत्तराधिकारी भी परिवार का हिस्सा है। कोर्ट ने कहा कि इस सेक्शन में जब पिता के उत्तराधिकारी उन लोगों में आते हैं जिन्हें उत्तराधिकार मिला है तो ऐसे में उन्हें बाहरी नहीं कहा जा सकता।