दहेज प्रथा का इतिहास भारतीय समाज में क्या है।

दहेज प्रथा का इतिहास भारतीय समाज में क्या है।

भारतीय समाज में पुराने समय से बहुत सारी प्रथाएं चली आ रही हैं। ज्यादातर प्रथाएं किसी अच्छे उद्देश्य से बनाई थी। लेकिन समय बदलने के साथ इन प्रथाओं को भी बदल देना चाहिए था। क्योंकि इनमे बदलाव ना करने से ये प्रथाएं पुरानी और सड़ी-गली सोंच की हो गयी है। पारिवारिक और सामाजिक तौर पर भी ये मान्यताएं गलत साबित हो गयी है। और कुछ प्रथाएं तो समय के साथ भयानक रुप ले चुकी है। जैसे दहेज़ प्रथा एक कुरीति बनकर उभरी है। इससे पढ़े-लिखे और संपन्न परिवार भी नहीं बच पाए है।

दहेज़ प्रथा क्या है –

दहेज़ प्रथा के अनुसार लड़की की शादी के समय उसका पिता अपनी इच्छानुसार लड़की को पैसे और गिफ्ट्स देता है। इस प्रथा की शुरुवात उत्तरवैदिक काल में हुई थी। उस काल में यह प्रथा बुरी नहीं थी। आईये देखते है इसकी शुरुवात कैसे हुई थी। 

(1) उत्तर वैदिक काल –

अथर्ववेद के अनुसार, दहेज़ प्रथा ”वहतु” के रूप में उत्तर वैदिक काल में शुरू हुयी थी। उस समय लड़की का पिता उसे ससुराल विदा करते समय कुछ तोहफे देता था, जिसे वहतु कहते थे। यह सिर्फ अपनी ख़ुशी से दिए हुए तोहफे होते थे। इसे दहेज़ नहीं माना जाता था। इन तोहफों में क्या दिया जायेगा, ये पहले से तय नहीं किया जाता था। इस वहतु पर लड़की के ससुराल या पति का कोई मालिकाना अधिकार नहीं होता था। अगर कोई पिता अपनी बेटी को वहतु नहीं देता था, तो भी लड़के वाले उसकी मांग नहीं करते थे और ना ही वहतु के लिए लड़की को परेशान करते थे।

(2) मध्य काल – 

उत्तर वैदिक काल के वहतु को, मध्य काल में ‘’स्त्रीधन’’ का नाम दिया गया था।  स्त्रीधन भी वहतु के जैसा ही था। इसमें भी लड़की का पिता अपनी इच्छानुसार पैसे और तोहफे अपनी बेटी को देकर ससुराल के लिए विदा करता था। इस स्त्रीधन का उद्देशय था कि यह धन बुरे समय में काम आएगा। स्त्रीधन पर केवल लड़की का ही मालिकाना हक़ होता था। इस प्रथा को राजस्थान के संपन्न परिवारों के राजपूतों ने ज्यादा बढ़ावा दिया था। इसके पीछे उनका मानना था कि वो जितना ज्यादा पैसा लड़की की विदाई में देंगे उतनी ही उनकी मान और प्रतिष्ठा बढ़ेगी। इसके बाद दहेज प्रथा की शुरूआत हुई। जिसमें स्त्रीधन शब्द गायब हो गया। 

(3) आधुनिक काल –

आज के इस मॉडर्न जमाने में दहेज़ प्रथा एक ऐसा रूप ले चुकी है। जिसमे लड़की के माता-पिता और परिवारवालों की इज्जत दहेज़ में दिए गए धन-दौलत पर ही डिपेंड करती है। आजकल लड़के वाले भी एक दम खुलकर शादी के दहेज़ के रूप में मुहमांगे पैसे और संपत्ति मांगते है। उन्हें इस बात में कोई शर्म नहीं है कि वो अपने बेटे को दहेज़ के नाम पर दौलत के लिए बेच रहे है।

परंपराओं के नाम पर लड़की वालों को बेइज्जत किया जाता है, उनपर ज्यादा खर्चा करने के लिए दबाव डाला जाता है, उन्हें मजबूर महसूस कराया जाता है, और लड़के वालों से कम आँका जाता है। इस प्रथा से संपन्न परिवारों को भी कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि वह इसे इन्वेस्टमेंट का जरिया मानते है, जिससे वह 10-15 साल में कमाया जाने वाला ध,न एक बार में ही लड़की वालों से दहेज के नाम पर हड़प लेते है। और दहेज़ ना मिलने पर लड़की को शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करते है। और कई बार तो उसे सुसाइड करने पर मजबूर कर देते है। 

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भारत सरकार ने दहेज़ की इस कुप्रथा को ख़त्म करने के लिए बहुत से नियम और कानून लागू किये है। आईये जानते है वह नियम और कानून क्या है। 

दहेज़ के लिए नियम और कानून:- 

1961 में, भारत में दहेज़ निषेध अधिनियम, 1961 को कोगु करके दहेज़ प्रथा को रोकने की सबसे पहली कोशिश हुई थी।

(1) आईपीसी के सेक्शन 498-ए  के तहत, अगर हस्बैंड या ससुराल वाले दहेज़ की मांग करते है, तो 3 साल की जेल और जुर्माना हो सकता है। 

(2) सेक्शन 406 के तहत अगर लड़की का हस्बैंड या ससुराल वाले उसका स्त्रीधन उसे देने से मना करते है, तो जेल और जुर्माना दोनों हो सकता है।

(3) इस अधिनियम के तहत दहेज लेना और देना दोनों ही गैरकानूनी है। अगर कोई दहेज़ का लेन-देन करता है या इसमें सहयोग करता है, तो 5 साल की जेल और 15,000 रुपए जुर्माना भरना पड़ सकता है। 

(4) अगर किसी लड़की की शादी होने के सात साल के अंदर असामान्य परिस्थितियों में मृत्यु हो जाये और जांच में साबित हो जाये कि मृत्यु से पहले उसे दहेज के लिए परेशान किया गया है। तो आईपीसी के सेक्शन 304-बी के तहत, लड़की के हस्बैंड और ससुराल वालों को सात साल से लेकर जिंदगी भर की जेल हो सकती है।

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