दो पार्टियों के मध्य कोई भी कॉन्ट्रेक्ट एक औपचारिक लिखित दस्तावेज होता है जो समझौते में पार्टियों की भूमिका और जिम्मेदारियों को परिभाषित करता है। साथ ही यह पार्टियों को ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर करने के उद्देश्य को भी निर्दिष्ट करता है। यानि एक बार समझौते का मसौदा तैयार हो जाने के बाद और इसे दोनों पक्षों द्वारा मैन्युअल रूप से डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक रूप से हस्ताक्षरित किया जाना आवश्यक होता है। दोनों पक्षों द्वारा समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद यह समझौता कानूनी रूप से बाध्यकारी हो जाता है।
सवाल ये है कि दो पार्टियों के बीच कॉन्ट्रेक्ट ड्राफ्टिंग कैसे करें? आज के आलेख में हम इस बात पर ही प्रकाश डालेंगे कि दो पार्टियों के बीच कॉन्ट्रेक्ट ड्राफ्टिंग कैसे करें।इसके लिए क्या चरण होते हैं? और किन बातों का ध्यान रखा जाना जरूरी होता है।
किसी भी कॉन्ट्रेक्ट की ड्राफ्टिंग के लिए पहले भारतीय कॉन्ट्रेक्ट अधिनियम 1872 के तहत कानूनी समझौते के निर्दिष्ट तत्वों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। ऐसा कोई भी कॉन्ट्रक्ट जहां इन तत्वों को ध्यान में नहीं रखा जाता है अवैध कहलाता है।
प्रस्ताव एवं स्वीकृति:
किसी भी एक पार्टी द्वारा दूसरी पार्टी को प्रस्ताव देना किसी भी को-कॉन्ट्रेक्ट की शुरुआत होती है। प्रस्ताव पेश करते समय प्रत्येक पक्ष के सभी नियम और शर्तें, भूमिकाएं और जिम्मेदारियां शामिल होनी चाहिए। और साथ ही कॉन्ट्रेक्ट का उद्देश्य भी स्पष्ट होना चाहिए। एक पार्टी द्वारा प्रस्ताव दिये जाने के बाद दूसरी पार्टी द्वारा स्वयं के विवेक से प्रस्ताव की स्वीकृति भी एक अहम हिस्सा है। यदि प्रस्ताव और स्वीकृति होंगे तो प्रस्ताव स्वीकार किया जा सकता है।
विचार:
दोनों ही पार्टियों को कॉन्ट्रेक्ट ड्राफ्टिंग करने हेतु विचार या कंसिडरेशन किया जाना बेहद आवश्यक होता है।
सक्षमता:
दोनों पार्टियां जिनके बीच कॉन्ट्रेक्ट किया जाना है विधिक रूप से सक्षम होनी चाहिए। इसका अर्थ है कि कोई भी पार्टी अवयस्क, मानसिक अक्षम या विधि द्वारा अयोग्य न ठहराई गई हो।
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स्वतंत्र सहमति:
दोनों ही पार्टियों द्वारा किसी भी कॉन्ट्रेक्ट में प्रवेश करने के लिए स्वतंत्र सहमति की आवश्यकता होती है।
वैध उद्देश्य:
दोनों पार्टियों द्वारा किया जा रहा कॉन्ट्रेक्ट एक वैध उद्देश्य के तहत ही किया जाना चाहिए।
इन सभी तत्वों को पूर्ण करने के पश्चात दो पार्टियों के मध्य कॉन्ट्रेक्ट ड्राफ्टिंग के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातें ध्यान रखी जानी चाहिए । आइये समझते हैं:
दोनों पार्टियों के मध्य कॉन्ट्रेक्ट लिखिति हो
एक अनुबंध हमेशा लिखित में होना चाहिए और वैध कानूनी समझौते की सभी कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करके दोनों पक्षों द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए। लिखित कानूनी समझौते में प्रत्येक पक्ष के सभी नियम और शर्तें, उद्देश्य, अधिकार और दायित्व शामिल होते हैं। यह कानूनी कार्यवाही में सहायक होता है।
कॉन्ट्रेक्ट को सरल रखा जाना चाहिए
किसी भी कॉन्ट्रेक्ट को तैयार करते वक़्त इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि इसकी भाषा को सरल रखा जाए। ताकि दोनों ही पार्टियों को अनुबंध को समझने में किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पड़े।
प्रत्येक विवरण प्रदान करना
एक कॉन्ट्रेक्ट हमेशा स्पष्ट होना चाहिए। इसमें किसी भी समझौते के सभी नियम और शर्तों का उल्लेख होना चाहिए। समझौते का उद्देश्य भी निर्दिष्ट किया जाना चाहिए। कॉन्ट्रेक्ट में प्रत्येक पक्ष के अधिकारों और दायित्वों का उल्लेख किया जाना चाहिए। कार्यकाल, मध्यस्थता का स्थान, अधिकार क्षेत्र का भी समझौते में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिए। स्थानीय क्षेत्राधिकार के अनुसार इसे स्टाम्प पेपर पर रखना और फिर हस्ताक्षर करना हमेशा एक बेहतर विकल्प होता है।
भुगतान के दायित्वों का उल्लेख
दो पार्टियों के बीच कॉन्ट्रेक्ट ड्राफ्टिंग करते समय भुगतान के दायित्वों का उल्लेख किया जाना बेहद आवश्यक होता है। यह निर्दिष्ट करना हमेशा बेहतर होता है कि कौन कब और कितनी राशि का भुगतान करेगा।
टर्मिनेशन क्लॉज का उल्लेख
दो पार्टियों के बीच कॉन्ट्रेक्ट में टर्मिनेशन क्लॉज महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस क्लॉज में इस बात का उल्लेख होना चाहिए कि किस आधार पर प्रत्येक पक्ष द्वारा एक कानूनी समझौते को समाप्त किया जा सकेगा।
विवाद का समाधान
किसी भी अनुबंध में यह उल्लेख करना आवश्यक है कि अगर समझौते की अवधि के दौरान कुछ भी गलत हो जाता है तो विवाद समाधान के लिए क्या तरीका होना चाहिए। इस में इस बात का स्पष्टीकरण होना चाहिए कि विवाद के समाधान के लिए न्यायालय या मध्यस्थता में से किसी एक का रूख़ किया जाएगा।
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