भारत में मुस्लिम कपल तलाक कैसे ले सकते है?

भारत में मुस्लिम कपल तलाक कैसे ले सकते है

मुस्लिम लॉ के तहत, पार्टनर की मृत्यु या फिर डाइवोर्स के द्वारा शादी ख़त्म होती है। वाइफ की मृत्यु के बाद, हस्बैंड तुरंत दूसरी शादी कर सकता है। लेकिन विधवा को “इद्दत” नाम का फिक्स टाइम पीरियड पूरा होने के बाद ही दूसरी शादी करने की अनुमति दी गयी है। मुस्लिम लोगों का डाइवोर्स स्वयं दोनों पार्टनर्स के द्वारा या कोर्ट के फैसले के द्वारा हो सकता है।

डाइवोर्स के प्रकार:-

हस्बैंड के द्वारा डाइवोर्स: तलाक, इला और जिहार।
वाइफ के द्वारा डाइवोर्स: तलाक-ए-तफ़वीज़ और लियान।
आपसी सहमति से डाइवोर्स: आपसी सहमति से भी तलाक हो सकता है।

हस्बैंड द्वारा तलाक:-

मुस्लिम लॉ के अनुसार, हस्बैंड का अधिकार वाइफ की तुलना में बहुत ज्यादा होता है। हस्बैंड अपनी इच्छा से वाइफ के साथ अपनी शादी को ख़त्म कर सकता है। हस्बैंड इन तरीकों से डाइवोर्स दे सकता है –

तलाक: इसका मतलब तुरंत शादी के बंधन से आज़ाद होना। इसके बाद दोनों पार्टनर्स को अलग अपने हिसाब से रहने का अधिकार मिल जाता है।

इला: जहां पति पूरे होश में यह फैसला करता है कि वह अपनी पत्नी से सारे रिश्ते तोड़ रहा है।

ज़िहार: जहां एक एडल्ट हस्बैंड अपनी वाइफ की तुलना अपनी मां या किसी अन्य महिला से निषिद्ध संबंधों में करता है।

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वाइफ द्वारा तलाक:-

मुस्लिम लॉ के अनुसार, एक मुस्लिम वाइफ अपने हस्बैंड की परमिशन के बिना उसे डाइवोर्स नहीं दे सकती है। हालाँकि, तफ़वीज़ द्वारा वाइफ भी हस्बैंड को डाइवोर्स देकर शादी को ख़त्म कर सकती है।

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अगर हस्बैंड अपनी वाइफ पर बेवफाई या अडल्ट्री के झूठे आरोप लगाता है, तो इसे “चरित्र की हानि” माना जाता है। उस सिचुएशन में, वाइफ ‘’लियान’’ (मुस्लिम तलाक का एक प्रकार) के द्वारा इन आधारों पर डाइवोर्स की मांग कर सकती है।

जुडिशीयल डाइवोर्स:-

मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 के तहत, कोर्ट के फैसले से शादी को ख़त्म कर सकते है। इस अधिनियम के तहत वाइफ कोर्ट के फैसले से डाइवोर्स की मांग कर सकती है। यह अधिनियम केवल मुस्लिम मैरिड वाइफ पर ही लागू होता है।

डाइवोर्स का अधिकार:-

मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 के तहत, मुस्लिम महिला इन सभी आधारों पर अपने हस्बैंड से डाइवोर्स ले सकती है।

(1) अगर 4 साल से हस्बैंड का पता नहीं चल पाया है।
(2) अगर हस्बैंड को 7 साल या उससे ज्यादा टाइम के लिए जेल की सजा सुनाई गई है।
(3) अगर हस्बैंड 2 साल से ज्यादा समय से उसे भरण-पोषण नहीं दे पा रहा है।
(4) अगर हस्बैंड 2 साल से मानसिक रूप से बीमार है या कुष्ठ रोग से पीड़ित है।
(5) अगर शादी के समय हस्बैंड नपुंसक था और अब भी है।
(6) हस्बैंड 3 साल से ज्यादा समय के लिए अपने वैवाहिक दायित्व को पूरा करने में विफल रहा है।
(7) जिन महिलाओं की शादी उनके पिता या किसी अन्य अभिभावक के द्वारा 15 साल की आयु से पहले कर दी गई थी। और अब 18 साल की उम्र से पहले उन्होंने शादी को मानने से मना कर दिया है।

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