भारत में महिलाओं के लिए शादी की उम्र 18 साल और पुरुषों के लिए 21 साल है। लेकिन, इससे कम उम्र के लोग “लिवइन रिलेशनशिप” में रह सकते हैं। यह शादी के कानूनों के तहत नहीं आता, लेकिन कुछ कानूनी मान्यता मिलती है। ऐसे रिश्तों में लोग बिना शादी किए साथ रह सकते हैं। फिर भी, यह जानना ज़रूरी है कि ऐसे रिश्तों में भी कुछ कानूनी अधिकार और जिम्मेदारियाँ होती हैं।
लंबे समय तक, भारतीय समाज ने लिव-इन रिलेशनशिप को स्वीकार नहीं किया था। पहले, बिना शादी किये एक साथ रहना अयोग्य माना जाता था और कल्चरल नॉर्म्स के खिलाफ था। अब जैसे-जैसे लोगों की सोच बदल रही है, नई पीढ़ियाँ अब उन बातों को स्वीकार कर रही हैं जो पहले गलत मानी जाती थीं।
क्या है लिव-इन रिलेशनशिप?
लिव-इन रिलेशनशिप एक ऐसा समझौता है जहां एक कपल शादी किए बिना लंबे समय तक एक साथ रहता है। इसमें दोनों एक ही घर में रहते हैं और शादीशुदा कपल की तरह जिम्मेदारियाँ बांटते हैं, लेकिन इसका कोई कानूनी दर्जा नहीं होता। इस तरह का रिश्ता न तो अपराध है और न ही पाप।
2010 में, भारत के लीगल सिस्टम ने पहली बार लिव-इन रिलेशनशिप को मान्यता दी, जब सुप्रीम कोर्ट ने खुशबू बनाम कन्नियम्मल केस में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप न तो अवैध है और न ही अमान्य, और कपल को बिना शादी किए एक साथ रहने का हक है।
लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए कपल एक वकील की मदद से लिव-इन एग्रीमेंट बना सकते हैं। यह समझौता उनके रिश्ते के नियम और शर्तें तय करता है। यह कपल्स को सिक्योरिटी, स्टेबिलिटी और फाइनेंसियल फ्रीडम प्रदान करता है।
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लिव-इन एग्रीमेंट के क्या फायदे होते हैं?
- यह हर कपल के अधिकार और जिम्मेदारियाँ स्पष्ट करता है, जिससे झगड़े कम होते हैं।
- यह खर्चे और संपत्ति के बंटवारे को सही तरीके से तय करता है, जिससे पैसों को लेकर विवाद नहीं होते।
- यह संपत्ति और अन्य संसाधनों की मालिकाना हक तय करता है, खासकर यदि रिश्ता खत्म हो जाए या किसी साथी का निधन हो जाए।
- यह कानूनी मामलों जैसे कि इन्हेरिटेंस और बीमारी की स्थिति में निर्णय लेने के अधिकार को स्पष्ट करता है।
- अगर इस रिलेशनशिप के दौरान कोई बच्चा पैदा हो जाता है, तो यह पालन-पोषण और कस्टडी की व्यवस्था तय करता है।
- यह विवाद सुलझाने के लिए एक तरीका बताता करता है, जिससे रिश्ते में स्थिरता बनी रहती है।
लिव-इन रिलेशनशिप के लिए कानूनी उम्र सीमा क्या है?
भारत में, लिव-इन रिलेशनशिप के लिए कानूनी उम्र 18 साल है। इसका मतलब है कि दोनों पार्टनर की उम्र कम से कम 18 साल होनी चाहिए और वे पूरी तरह से अपनी मर्जी से इस रिश्ते के लिए सहमत हों। हलाकि, इसमें माता-पिता की अनुमति की जरूरत नहीं होती।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि 18 साल से कम उम्र के लोग लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रहे सकते। कोर्ट ने यह भी बताया है कि ऐसे रिश्ते एथिकल और कानूनी रूप से सही नहीं हैं।
लिव-इन रिलेशनशिप में महिलाओं की सुरक्षा के लिए क्या कानूनी प्रावधान हैं?
द प्रोटेक्शन ऑफ़ वूमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट, 2005, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं के लिए कई महत्वपूर्ण कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है, ताकि उनके अधिकारों की रक्षा की जा सके।
- मेंटेनेंस – इस एक्ट के तहत, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को भी मेंटेनेंस मिल सकती है, अगर रिश्ता खत्म हो जाए। मेंटेनेंस की रकम कई बातों पर निर्भर करती है, जैसे पार्टनर्स की आर्थिक स्थिति और रिश्ता के दौरान की लाइफस्टाइल। स.र बत्रा बनाम तरुण बत्रा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप में भी मेंटेनेंस का अधिकार होता है, जिससे महिला को आर्थिक सहायता मिल सके।
- प्रोटेक्शन फ्रॉम एब्यूज – यह कानून लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को हर तरह के दुर्व्यवहार से बचाता है, जैसे कि शारीरिक, मानसिक, और आर्थिक। इससे महिलाएं हिंसा या परेशानियों के खिलाफ कानूनी मदद ले सकती हैं। इंद्रा शर्मा बनाम व्. क.व् शर्मा केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप में भी महिलाओं को इस कानून के तहत सुरक्षा मिलती है, जिससे उनकी सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित हो सके।
डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005,का उपयोग
डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005, जीवनसाथी संबंधों में भी लागू हो सकता है, यदि आप एक साथ रहते हैं और हिंसा का सामना कर रहे हैं। इस अधिनियम के तहत सुरक्षा आदेश, संरक्षण आदेश और अन्य राहत प्राप्त की जा सकती है।
लिव-इन रिलेशनशिप में जन्मे बच्चों की सुरक्षा के लिए क्या कानूनी प्रावधान हैं?
लिव-इन रिलेशनशिप में जन्मे बच्चों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उन्हें कस्टडी और मेंटेनेंस से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।
विद्याधरी बनाम सुखरना बाई केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 16 के अनुसार, लिव-इन रिलेशनशिप में जन्मे बच्चों को “वैध” माना जाएगा। इसका मतलब है कि इन बच्चों को अपने माता-पिता की संपत्ति में हिस्सेदारी का अधिकार होता है।
इन बच्चों को ऐन्सेस्ट्रल प्रॉपर्टी के साथ-साथ सेल्फ अक्वायर्ड प्रॉपर्टी का भी हक होता है। जबकि लिव-इन रिलेशनशिप में जन्मे बच्चों की देखभाल के लिए कोई खास कानून नहीं है, फिर भी कानून उन्हें सुरक्षा और उनके अधिकार प्रदान करता है।
शादी V/S लिव-इन रिलेशनशिप
आजकल भारत में तेजी से बदलाव हो रहा है। जो चीजें पहले समाज में गलत मानी जाती थीं, जैसे लिव-इन रिलेशनशिप, अब भारत में भी देखी जा रही हैं। पहले शादी को ही प्रायोरिटी दी जाती थी और शादीशुदा लोगों को बहुत से अधिकार और सुविधाएं मिलती थीं। लेकिन लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों को ये सब अधिकार नहीं मिलते। ऐसे कपल्स भी शादीशुदा कपल्स की तरह कुछ समस्याओं का सामना करते हैं, लेकिन उनके सामने कुछ अलग समस्याएं भी आती हैं। अभी लिव-इन रिलेशनशिप आमतौर पर ऊंची सोसाइटी में देखी जाती है। अगर लिव-इन पार्टनर को भी शादीशुदा पत्नी की तरह अधिकार मिलने लगें, तो इससे बिगेमी के मामले बढ़ सकते हैं और कपल्स के बीच झगड़े भी हो सकते हैं।
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