कई बार अपराध महिलाओं से भी हो जाता है, और उन्हें भी सजा होती है। लेकिन अगर महिला अपराधी माँ हो तो उनके बच्चों का क्या होता है?
कई बार ऐसा होता है कि महिला कैदी के रिश्तेदार उसके बच्चे को रखने से मना कर देते हैं। या फिर कई बार ऐसा भी होता है कि उनके बच्चों की देखभाल करने वाला ही कोइ नहीं होता।
हमारे क़ानून में कैदी माँ के लिए कुछ नियम हैं। अगर बच्चा 6 साल या उससे कम उम्र का है तो उसे संभालने के लिए जेल में क्रच बने होते हैं।
कैदी माँ अपने बच्चे को वहां रख सकती है। ऐसे बच्चों के लिए जेल प्रशासन सरकार की मदद से क्रच का इंतजाम करता है।
इतना ही नहीं हर जेल में मैन्युअल होता है। महिला कैदियों के लिए भी नियम कायदे होते हैं। आइये जानते हैं क्या हैं वो नियम।
भारतीय जेल मैन्युअल के अनुसार गर्भवती महिला कैदियों के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए।
गर्भावस्था और बच्चा पैदा होने के बाद उनको अन्य महिला क़ैदियों से अधिक खाना दिया जाना चाहिए। इतना ही नहीं गर्भवती कैदियों को उनकी सेहत के अनुसार खाना दिया जाना चाहिए।
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अगर महिला कैदी का बच्चा छह साल या उससे कम उम्र का है तो वो उसे अपने साथ जेल में रख सकती है। जेल मैनुअल में ऐसी महिला अपराधियों के लिए ‘मदर सेल’ का प्रावधान है जिसमे वो अपने बच्चे के साथ रह सकती हैं।
लेकिन मदर सेल में उन्ही महिला अपराधियों को जगह मिल पाती है जिनके परिवार या बच्चों के पिता उन्हें अपनाने से इनकार कर देते हैं। जेल मैनुअल में इतने प्रावधान होने के बावजूद भी जेलों में महिला कैदियों की दशा दयनीय है खासतौर से उन महिलाओं की जो विचाराधीन कैदी हैं।
ज्यादातर महिला कैदियों को जेल मैनुअल की जानकारी ही नहीं है। यहाँ तक कि उन्हें ये भी पता नहीं होता कि उनका केस कहाँ तक पहुँचा। जानकारी के अभाव में कई माँ ऐसी हैं जो अपने बच्चो से बिछड़ गयीं हैं। देश में बहुत सी एनजीओ हैं जो महिला कैदी माँओ के लिए काम कर रही हैं। लेकिन जरूरी नहीं कि वो उन्हें उनके खोये हुए बच्चो से मिलवा पाएं।