म्यूच्यूअल डाइवोर्स, कंटेस्टेड डाइवोर्स से बेहतर कैसे है?

म्यूच्यूअल डाइवोर्स, कंटेस्टेड डाइवोर्स से बेहतर कैसे है?

मैरिज को एक मजबूत बंधन माना जाता है जो पति-पत्नी को एक-दूसरे के प्रति समर्पित रखता है। लेकिन कभी-कभी, कई समस्याओं के कारण मैरिज ठीक से नहीं चलती और साथ रहने की कोई सम्भावना नहीं होती, इसीलिए अलग होना सबसे अच्छा समाधान हो सकता है। भारत में डाइवोर्स के लिए दो मुख्य तरीके हैं: म्यूच्यूअल डाइवोर्स, जिसमें दोनों पार्टनर मिलकर अलग होने पर सहमत होते हैं और कंटेस्टेड डाइवोर्स, जिसमें दोनों के बीच विवाद होता है और आखिरी में कोर्ट फैसला करती है। हलाकि, डाइवोर्स एक जटिल प्रक्रिया है जिसके लिए एक विशेषज्ञ वकील की मदद की ज़रूरत होती है।

म्यूच्यूअल डाइवोर्स क्या है?

इस प्रकार के डाइवोर्स में, दोनों पार्टनर मिलकर अपनी मैरिज को समाप्त करने पर सहमत होते हैं। कोर्ट में किसी भी पक्ष को साबित करने या झगड़ने की जरूरत नहीं होती और दोनों पार्टनर मिलके कुछ टर्म्स एंड कंडीशन तय करते है:

  • दोनों पार्टनर मिलकर बच्चों की कस्टडी तय करते हैं।
  • एलुमनी या मेंटेनेंस पर सहमत होते हैं।
  • संपत्ति के बंटवारे पर भी फैसला करते हैं।

ऐसे मामलों में, वे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13B के तहत पेटिशन फाइल कर सकते हैं, और कोर्ट उन्हें डाइवोर्स का आदेश दे सकती है। डाइवोर्स को मान्यता देने के लिए इसे फ़ैमिली कोर्ट के माध्यम से ही पूरा करना होगा।

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कंटेस्टेड डाइवोर्स क्या है?

कंटेस्टेड डाइवोर्स में, एक पार्टनर डाइवोर्स लेना चाहता है लेकिन दूसरा पार्टनर सहमत नहीं होता। इस मामले में दोनों पक्ष अपने वकील को नियुक्त करते हैं और अपने-अपने पक्ष को साबित करने के लिए लड़ते हैं। अगर दोनों के बीच समझौता नहीं होता, तो कोर्ट अंतिम फैसला सबूत और तर्कों के आधार पर करता है। यह डाइवोर्स प्रक्रिया भावनात्मक और वित्तीय रूप से कठिन हो सकती है।

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ऐसे मामलों में, वे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13(1) के तहत पेटिशन फाइल कर सकते हैं, इसमें डाइवोर्स लेने के कई कारण हो सकते है जैसे:

  • अडल्टरी
  • क्रुएलटी
  • डिज़र्शन
  • रिलीजियस कन्वर्शन
  • लेपोरसी
  • कम्युनिकेबल डिसीसेस
  • मानसिक समस्या

म्यूच्यूअल डाइवोर्स बेहतर क्यों है?

गति और प्रभावशीलता – म्यूच्यूअल डाइवोर्स आमतौर पर जल्दी होता है क्योंकि दोनों पार्टनर मिलकर सभी शर्तों पर सहमत होते है। इससे प्रक्रिया जल्दी पूरी हो जाती है, और डाइवोर्स कुछ महीनों में पूरा हो जाता है। दूसरी ओर, कंटेस्टेड डाइवोर्स में समय ज्यादा लगता है। दोनों पक्ष अदालत में अपना मामला लड़ते हैं, जिससे कई सुनवाई और बहुत सारे कानूनी झगड़े होते हैं। इस वजह से, कंटेस्टेड डाइवोर्स में एक या उसे ज्यादा साल लग सकते है।

कॉस्ट कन्सिडरेशन – म्यूच्यूअल डाइवोर्स में कम खर्च होता है क्योंकि दोनों पार्टनर मिलकर एक ही वकील करते हैं, जिससे वकील की फीस और कोर्ट के खर्च कम हो जाते हैं। इसके विपरीत, कंटेस्टेड डाइवोर्स में ज्यादा खर्च आता है। इसमें दोनों पक्ष अपने-अपने वकील करते हैं और उन्हें कई बार कोर्ट में जाना पड़ता है, जिससे खर्च बढ़ जाता है। इस तरह, कंटेस्टेड डाइवोर्स की लागत म्यूच्यूअल डाइवोर्स की तुलना में बहुत ज्यादा होती है।

भावनात्मक प्रभाव – म्यूच्यूअल डाइवोर्स कम तनावपूर्ण होता है, जिससे पूरी प्रक्रिया थोड़ी आसान और कम तनावपूर्ण होती है। दूसरी तरफ, कंटेस्टेड डाइवोर्स ज्यादा तनावपूर्ण होता है क्योंकि इसमें झगड़े और लंबे कोर्ट केस शामिल होते हैं, जो भावनात्मक रूप से बहुत भारी पड़ते हैं।

प्राइवेसी – म्यूच्यूअल डाइवोर्स ज्यादा निजी होता है क्योंकि इसमें कोर्ट में कम सुनवाई होती है और सब बातें मिलकर तय होती हैं। इस वजह से आपकी निजी जानकारी सार्वजनिक नहीं होती। लेकिन कंटेस्टेड डाइवोर्स में कई बार कोर्ट की सुनवाई होती है और रिकॉर्ड सार्वजनिक होते हैं, जिससे आपकी जानकारी दूसरों के सामने आ सकती है और आपकी प्राइवेसी कम हो जाती है।

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शर्तों पर नियंत्रण – म्यूच्यूअल डाइवोर्स में दोनों पार्टनर महत्वपूर्ण फैसले, जैसे बच्चों की कस्टडी, एलुमनी, और संपत्ति का बंटवारा, खुद तय कर सकते हैं। दूसरी ओर, कंटेस्टेड डाइवोर्स में कोर्ट फैसला करती है अगर दोनों पार्टनर आपस में सहमत नहीं होते। इस वजह से, दोनों को ऐसी शर्तें मिल सकती हैं जो उनके लिए पूरी तरह से सही न हों।

म्यूच्यूअल डाइवोर्स और कंटेस्टेड डाइवोर्स की कोर्ट की प्रक्रिया क्या है?

म्यूच्यूअल डाइवोर्स

  • डाइवोर्स पेटिशन फाइल करना
  • कूलिंग ऑफ पीरियड
  • सेकंड मोशन फाइल करना
  • डाइवोर्स डिक्री

कंटेस्टेड डाइवोर्स

  • डाइवोर्स पेटिशन फाइल करना
  • दूसरे पक्ष को कोर्ट का नोटिस भेजना
  • बयान दर्ज करना
  • सबूत और गवाहों की जाँच और परख
  • डाइवोर्स डिक्री

क्या म्यूच्यूअल और कंटेस्टेड डाइवोर्स को विड्रोल किया जा सकता है?

भारत में दोनों तरीके के डाइवोर्स विड्रोल किये जा सकते हैं। अगर म्यूच्यूअल डाइवोर्स के दौरान किसी एक पार्टनर का मन बदल जाए और वह शादी को बचाना चाहें, तो वे कोर्ट से अनुरोध कर सकते हैं जहां उनका डाइवोर्स चल रहा है। इस अनुरोध में वे कह सकते हैं कि वे डाइवोर्स की पेटिशन वापस लेना चाहते हैं और मैरिज को एक और मौका देना चाहते हैं। अगर पति और पत्नी दोनों इस पर सहमत हों, तो वे मिलकर डाइवोर्स का मामला वापस ले सकते हैं और कोर्ट उस पेटिशन को रद्द कर देगा।

यदि कंटेस्टेड डाइवोर्स में दोनों पार्टनर मिलकर शादी को बचाने का निर्णय लेते हैं और तलाक नहीं लेना चाहते, तो उन्हें मिलकर डाइवोर्स वापस लेनी होगी। इसके लिए एक पार्टी या उनके वकील को कोर्ट में एक औपचारिक अनुरोध दाखिल करना होगा। कभी-कभी कोर्ट की सुनवाई भी हो सकती है, खासकर अगर कुछ मुद्दे अभी भी अनसुलझे हों। कोर्ट अनुरोध की समीक्षा करेगा और सब कुछ सही होने पर मामले को रद्द करने का आदेश देगा। इस दौरान किसी भी मौजूदा कानूनी आदेश, जैसे अस्थायी कस्टडी या एलुमनी, को भी ध्यान में रखना होगा।

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जयश्री रमेश लोंधे बनाम रमेश भिकाजी मामले में, कोर्ट ने फैसला किया कि अगर दोनों पार्टनर मिलकर डाइवोर्स की पेटिशन दायर करते हैं, तो कोई भी अकेला उस पेटिशन को वापस नहीं ले सकता। पेटिशन वापस लेने के लिए दोनों को साथ में सहमत होना पड़ेगा।

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