भारत के संविधान के अनुसार एक लड़का और लड़की की शादी होने के बाद, उनके बच्चों की सारी जरूरतों को पूरा करने की ज़िम्मेदारी बच्चों के पिता की होती है। तो अब सवाल यह है कि अगर हस्बैंड और वाइफ अलग-अलग धर्मों से बिलोंग करते हो। मतलब कपल की इंटर-रिलीज़न मैरिज हुई हो, तो क्या वह पुरुष अपने बच्चों को मेंटेनेंस देने से मना कर सकता है? देखते है कोर्ट के इस पर क्या विचार है।
केस क्या है?
कोझीकोड में रहने वाले जे डब्ल्यू अरागदान ने फैमिली कोर्ट, नेदुमनगड में एक पिटीशन फाइल की थी। पिटीशन फाइल करने वाला व्यक्ति हिंदू और उसकी वाइफ मुस्लिम है। उनकी बेटी को एक मुस्लिम लड़की के रूप में ही पाला गया है। इसीलिए पिता ने बेटी की शादी का खर्च देने से मना कर दिया। इस पर फैमिली कोर्ट ने पिता को ऑर्डर दिया की वह अपनी बेटी की शादी के खर्च के रूप में 14,66,860 रुपये और उसकी पढ़ाई के खर्च के लिए 96,000 रुपये दे। ऑर्डर के बाद पिटीशनर पिता ने फैमिली कोर्ट के आर्डर से असहमति जताते हुए कहा कि “फैमिली कोर्ट का आर्डर इनवैलिड है”।
इसके बाद, पिता ने केरल हाई कोर्ट में पिटीशन फाइल की। पिटीशन पर जज ए मोहम्मद मुस्ताक और जज कौसर एडप्पागथ की बेंच ने आर्डर जारी किया। बेंच ने आर्डर में स्पष्ट रूप से कहा कि “एक इंटर-रिलीज़न मैरिज से पैदा हुए बच्चों को भी अपने पिता से मेंटेनेंस लेने का पूरा अधिकार है, जैसे बाकि सभी बच्चों को मिलता है।”
हाईकोर्ट के अनुसार, पिता की जाति, आस्था या धर्म उसके बच्चे के प्रति उसकी पेरेंटल ड्यूटी को ख़त्म नहीं कर सकती है। सभी बच्चे अपने पेरेंट्स के भरपूर प्यार और सुरक्षा के हकदार है। सभी बच्चों के साथ एक जैसा व्यवहार होना चाहिए। साथ ही “एक इंटर-रिलीज़न मैरिज से पैदा हुई, अनमैरिड बेटी को भी अपने पिता से अपनी शादी का खर्च लेने का पूरा हक़ है।” लेकिन शादी का खर्च कितना होना चाहिए। इस बात पर कोर्ट के क्या विचार है देखते है।
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अब सामाजिक शादियां केवल दिखावे का ज़रिया है:-
कोर्ट ने अनुसार, आजकल सामाजिक शादियों को केवल दिखावा करने का, अपनी हैसियत दिखने का और अपने पैसे का बखान करने का एक बेहतरीन मौका समझा जाता है। जबकि, कोरोना महामारी ने समाज को सीख दी है कि बिना किसी बड़े और दिखावटी उत्सव के भी शादियां की जा सकती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने बेटी की शादी के लिए “मिनिमम मैरिज कॉस्ट” “मतलब न्यूनतम शादी का खर्च” तय कर दिया है।
बेटी की शादी की “मिनिमम मैरिज कॉस्ट”:-
हाई कोर्ट ने बेटी की शादी के खर्च के तौर पर फैमिली कोर्ट के द्वारा तय किये गए अमाउंट को कम करके 3 लाख रुपये कर दिया है। कोर्ट ने यह सपष्ट कर दिया है कि अगर कोई अनमैरिड बेटी अपनी शादी के खर्च का दावा करते हुए, अपने पिता के खिलाफ पिटीशन फाइल करती है। तो कोर्ट पिता को सिर्फ मिनिमम मैरिज कॉस्ट देने का ही आर्डर करे। वह भी केवल उस सिचुएशन में, जब बेटी का पिता खर्च उठाने में सक्षम हो और बेटी भी केवल उस खर्च पर ही निर्भर हो।
हालाँकि, कोई भी पिता अपनी ख़ुशी से अपनी बेटी या बेटे की शादी भव्य रूप से कर सकते है। लेकिन, कोई भी अनमैरिड बेटी कानूनी रूप से अपने पिता से उसकी शादी को भव्य करने की मांग नहीं कर सकती है। भव्य शादी करना गलत नहीं है। लेकिन अपने पिता से एक भव्य शादी की जबरदस्ती माँग करना गलत है।