झूठी एफआईआर कैसे रद्द कराएं?

क्या करें अगर कोई एफआईआर फाइल करने का प्लैन करे?

फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट या एफआईआर क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, 1974 (इसके बाद सीआरपीसी) के सेक्शन 154 के तहत आपराधिक कार्यवाही/क्रिमिनल प्रोसीडिंग्स की तरफ उठाया गया पहला कदम है। यह संज्ञेय/कॉग्निजेबल अपराधों के बारे में पूरी जानकारी रखने वाला एक डॉक्यूमेंट होता है। एक वैलिड एफआईआर के लिए, कम्प्लेनेंट की पहचान उसके साइन के साथ प्रकट की जानी चाहिए अन्यथा यह एफआईआर वैलिड नहीं मानी जाती है।

एफआईआर लोगों को अपनी कम्प्लेन फाइल कराने का अधिकार देती है। एक पुलिस ऑफ़िसर बिना वेरिफिकेशन के एफआईआर फाइल करने के लिए बाध्य है। कई लोग इसका फायदा उठाते हैं और झूठी कम्प्लेन फाइल कराते हैं। आमतौर पर इसका मकसद किसी व्यक्ति को बदनाम करना या बदला लेना होता है। भारतीय संविधान में कई प्रोविजन्स हैं जो झूठी एफआईआर के मैटर्स से डील करने में मदद करते हैं।

एंटीसिपेटरी बेल  – 

ऐसे केसिस में एफआईआर फाइल होने के बाद जब तक गिरफ्तारी नहीं होती है तो व्यक्ति सीआरपीसी के सेक्शन 438 के तहत अग्रिम/एंटीसिपेटरी बेल के लिए अप्लाई कर सकता है। इसे गैर-जमानती अपराधों में सेशन कोर्ट या हाई कोर्ट में भी फाइल किया जा सकता है। एंटीसिपेटरी बेल देने का उद्देश्य है कि एक कम्प्लेनेंट के केवल पर्सनल बदला लेने के भाव की वजह से किसी निर्दोष व्यक्ति को अपमानित या परेशान ना होना पड़े। कोर्ट एंटीसिपेटरी बेल पास करने या ना करने के लिए फैसला लेते समय कई बातों पर ध्यान देती है। साथ ही, विक्टिम पर भी कुछ शर्तें लागू की जाती है।

झूठी एफआईआर –

अगर झूठी एफआईआर के मैटर में अरेस्ट किया गया है या चार्ज शीट फाइल की गयी है, तो व्यक्ति सीआरपीसी के सेक्शन 482 के तहत झूठी एफआईआर को रद्द करने के लिए एप्लीकेशन फाइल करके या भारतीय संविधान के सेक्शन 226 या 32 के तहत निषेध रिट या परमादेश की रिट फाइल करके हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। 

हरियाणा राज्य v. भजन लाल 1992 एससीसी (सीआरएल) 426 के केस में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एफआईआर या कंप्लेंट में लगाए गए आरोप इतने बेतुके और स्वाभाविक रूप से असंभव थे कि यह एफआईआर को रद्द करने के लिए पर्याप्त थे क्योंकि इन आरोपों पर कोई भी उचित व्यक्ति कभी भी न्यायपूर्ण फैसले पर नहीं आ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि एफआईआर को बाहर निकाला जा सकता है जहां एक क्रिमिनल प्रोसेस स्पष्ट रूप से द्वेष से प्रेरित होती है, और जब यह जानबूझकर आरोपी से बदला लेने के इरादे से शुरू की जाती है और एक पर्सनल रंजिश के परिणामस्वरूप उसे चिढ़ाने के लिए किया जाता है।

मानहानी का केस – 

ऐसे व्यक्ति के अगेंस्ट विक्टिम द्वारा ‘सेक्शन 499 के साथ सेक्शन 500’ के तहत आपराधिक मानहानी का केस भी फाइल किया जा सकता है। इसके तहत अपर्ताधि को 2 साल तक की जेल, या जुर्माना, या दोनों हो सकता है। आईपीसी का सेक्शन 220 किसी भी व्यक्ति को 7 साल जेल या जुर्माना या दोनों से दंडित करती है, जो किसी व्यक्ति को आपराधिक केस के लिए गलत तरीके से फंसाता है या गलत तरीके से अपने कानूनी अधिकार का दुरुपयोग/मिसयूज़ करके उसे परेशान करता है।

मुआवज़ा – 

ज्यादातर केसिस में बदला लेने की नीयत से दूसरे व्यक्ति को प्रताड़ित या परेशान करने के लिए झूठे केस फाइल किए जाते हैं। ऐसे केसिस में, पीड़ित/विक्टिम द्वारा सिविल प्रोसीजर कोड, 1908 के सेक्शन 19 के तहत कम्प्लेनेंट के कपटपूर्ण दावे के परिणामस्वरूप हुई मानहानि के लिए मुआवजे/कंपनसेशन लेने के लिए कार्यवाही की जा सकती है। 

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झूठी एफआईआर किसी व्यक्ति को केस में फंसाने के लिए कानून का दुरुपयोग करना है। यह व्यक्ति को मानसिक, आर्थिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है। एफआईआर के साथ एक कलंक जुड़ा हुआ है। झूठी एफआईआर के केसिस पर सख्त कार्रवाई करके रोक लगाई जानी चाहिए।

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